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सोमवार, 31 मार्च 2014

ये कैसी मुसीबत है..

 

     सौम्या आज कई दिनों बाद फ्री हुई है तो सोचा क्यूँ ना अलमारी ही ठीक कर ली जाए।  बच्चों की परीक्षाएं चल रही थी तो बस बच्चे और उनकी पढाई दो ही काम थे। सर्दी भी जा रही है।सर्दी  के कपड़े भी अलग कर लेगी। सभी कपड़े ठीक से अलमारी में रखने के बाद उसने हैंगर में टंगी साड़ियों पर नज़र डाली तो उसे लगा उसकी पिंक साड़ी नहीं है वहाँ। उसके साथ पहनने वाले वस्त्र तो टंगे है लेकिन साड़ी नहीं है।
     वह सोच में पड़  गई कि  साड़ी किसको दी है उसने। बिल्कुल भी याद नहीं आया कि उससे साड़ी कौन ले गया। दूसरी अलमारी भी देख आई कि कहीं  उसमे ना रख दी हो। वहाँ भी नहीं ! याद करने लगी कि शायद ड्राई क्लीनर के पास होगी। उसकी इतनी भी कमज़ोर याददाश्त नहीं कि उसे याद ना रहे।
     साड़ी थी भी नई थी, ज्यादा पहनी ही नहीं थी। अभी मायके के कोई समारोह में तो पहनी ही नहीं। साड़ियां भी कौनसी सस्ती होती है। सोचे जा रही थी और घर की  सारी अलमारियों में नज़र मारे जा रही थी।
    किसी बाहर वाले पर भी शक कैसे किया जा सकता है  और जो भी आता वह उसकी अलमारी में क्यूँ हाथ मारता। सिर्फ काम वाली ही आती थी सफाई करने। तो क्या काम वाली की  हाथ की सफाई है यह !वह सोच में पड़ गई।
   काम  वाली को पूछे या ना पूछे। अगर पूछेगी तो कौनसा सच बोलेगी वह। उल्टा काम छोड़ कर और चली जाएगी। उफ्फ़ ! ये कैसी मुसीबत है। एक तो साड़ी नहीं मिल रही और किसी से पूछ भी नहीं सकती।
    फिर कुछ सोचते हुए तक ठंडी सांस ली कि काम वाली से पूछना ठीक नहीं रहेगा कहीं भाग गई तो ! साड़ी तो कई बार पहनी हुई तो है ही ,कौनसी एकदम नयी है। मिल गई तो ठीक है और  न मिली तो सोचूंगी कि ननद को ही दे दी। सौम्या के चेहरे पर अब मायूसी भरी मुस्कान थी।

उपासना सियाग

शनिवार, 8 मार्च 2014

जीवन में असंतुष्टि और ईर्ष्या से पैदा होती है महिलाओं में कर्कशता

      स्वर मधुर ही अच्छे लगते हैं। कर्कश  कानों को चुभने वाले स्वर कब किसे अच्छे लगे हैं। ऐसे ही वाणी  भी मीठी ही अच्छी लगती है। कर्कश बोल जो कानो को चभते हुए सीधे हृदय को शूल से बींध देते हैं। किसको भाते हैं भला !
   कर्कश ! मतलब  खड़ी  बोली।  बिना लाग  लपेट जो मुहं में आया कह दिया। सामने वाला जो समझे वो समझे। अच्छा या बुरा उनको नहीं मालूम।
      हम आस पास नज़र दौड़ाएं तो हमें बहुत  सारे  लोग दिख जायेंगे जो अपनी वाणी के द्वारा पसंद या नापसंद किये जाते हैं। इनमे से अधिकतर औरतें होती है जो अपनी कर्कश बोली से माहोल खराब किये रहती है ना केवल घर का ही बल्कि उस समूह का भी जहाँ वह बैठती है।
    कर्कशता जैसे कि शिकायती लहज़ा। हर बात में उलाहना , ताने और असंतुष्टि दर्शाते हुए वचन बोलना उनकी विशेषता होती है।  ऐसी औरतें अक्सर कहती है कि उनका मन तो साफ है ,बोली ऐसी है तो क्या किया जा सकता है। लेकिन ऐसी बोली क्यूँ है उनकी ?  वे अपने खास प्रियजनों से ऐसे रुखाई से नहीं बोलती तो यह कैसे माना जा सकता है कि उनकी बोली या बोलने का तरीका ही ऐसा है। उनके शब्दों के तीर जाने  कितने दिलों को बेध देते  है ! उनको यह नहीं मालूम शायद ! और एक दिन ऐसा भी आता है कि उनके पास कोई भी बैठने से ही कतराता है।
  मेरी एक परिचिता है  जिनको कि हर बात में नुक्स -शिकायत की  आदत है। घर वाले तो आदत समझ कर टाल देते हैं लेकिन नौकर नहीं टिक पाता।
     चलिए माना  कि ऐसी बोली है तो क्यूँ है ऐसी बोली ! आखिर क्या कारण हैं ऐसे व्यवहार का ! अगर गौर से सुना जाये तो इनकी बात  में एक शिकायत होती है कि उनके साथ कभी अच्छा व्यवहार नहीं हुआ। उनको हर दृष्टि से दबाया गया है या हीन समझा गया है। उनकी आवाज़ कहीं न कहीं एक अवसाद से घिरी होती है। जैसे प्रेम को खोज़ रही हैं।
     कोई भी औरत जो कि ममता की मूरत होती है वह इतनी ईर्ष्यालु और शिकायती क्यूँ हो जाती है। किस कारण वह इतनी जहर बुझी वाणी बोलने लगती है। अगर मनोवैज्ञानिक रूप से देखा जाय तो ऐसी औरतें नफरत नहीं बल्कि सहानुभूति की  पात्र है। वे अपने दिल में ना जाने कितनी इच्छाएं और हसरतें मन में दबाये होती है।
       जैसा कि हमारे समाज का चलन है कि औरतों को कमतर समझा जाता है। सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि विवाह के बाद भी उसे अपने आप को स्थापित करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। यहाँ उनको महिलाओं में ही अपना वर्चस्व स्थापित करना होता है।
      समाज के तीनों वर्गों में मध्यम वर्गीय औरतें ही अधिकतर सहन करती है। क्यूंकि उच्च वर्गीय महिलाओं को सब सहज उपलब्ध होता है तो वे किसी बात की  मोहताज़ नहीं होती। इसी तरह निम्न वर्ग की  महिलाएं अपनी चादर और सीमित  आसमान देख कर जिंदगी से समझोता कर लेती है।
लेकिन मध्यम वर्गीय महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह अपने आपको साबित करने के कारण और घर में भी ज्यादा महत्व न दिए जाने  के कारण अपनी सहनशक्ति खो देती है और हृदय में द्वेष और ईर्ष्या पनपने लगती है ।  एक मध्यम वर्ग की  महिला जो कि घर के हालात बेहतर बनाने के लिए घर के पुरुषों से कंधे से कन्धा मिला कर चलती है। उसे ना केवल घर की  महिलाओं की ही बल्कि पुरुषों की  अपेक्षाओं पर भी खरा उतरना पड़ता है। घर और बाहर का संतुलन बना कर चलती वह अपने दिमाग का संतुलन खोने लगती है। उसे समझ नहीं आता कि उसकी गलती क्या है। तब दिल पर उदासी सी घिर जाती है जब वह सारा दिन खट  कर घर आती है और उसे एक गिलास पानी तो दूर की  बात है , प्यार की  मीठी और ठंडी नज़र भी नसीब नहीं होती। यहाँ पुरुष उत्तरदायी कम होते हैं बल्कि औरतें ही अधिक उत्तरदायी  होती है।  पुरुष खामोश रहते हैं जो कि सर्वथा अनुचित है और असहनीय भी।
     जब सहनशक्ति असहनीय हो जाती है तब सारी  खीझ -क्रोध वाणी के माध्यम से ही निकलता है। सबसे पहले वह अपने पति और फिर बच्चों पर अपना क्रोध जाहिर करती है। ऐसा कर के शायद उनको बहुत सुकून मिलता है। धीरे -धीरे उनकी ये आदत में शुमार हो जाता है।जो भी उसे खुद से कमज़ोर नज़र आता है उसी से कर्कश व्यवहार करती है। जिन औरतों में आत्मविश्वास की  कमी होती है वे ही धीरे -धीरे हीनता का शिकार बनती रहती है।
     घरेलू मोर्चे पर डटी महिला अपनी कर्कशता से सारे घर का माहोल  ख़राब  किये तो रहती ही है और अपनी यही कर्कशता आने वाली पीढ़ी को विरासत में दे जाती हैं।  हालाँकि सभी जगह ऐसा नहीं होता है  क्यूंकि कुछ औरतें हालत से समझोता कर के खुश रह लेती है। लेकिन जो अति संवेदन शील होती है वे एक दिन उग्र रूप धारण कर लेती है। लेकिन जब  औरत कर्कशता धारण ही कर ले  तो क्या किया जाये !
      सबसे पहले तो  किसी भी औरत को अपने ऊपर होने वाले कटु व्यवहार को खुद ही रोकना होगा। अपना आत्मविश्वास बना कर रखे। जब तक आप इजाज़त नहीं देते आप से कोई दुर्व्यवहार नहीं कर सकता है। जीवन  पर सभी को जीने का अधिकार है तो क्यूँ न शांति से , प्रेम से ही जिया जाय। अगर किसी औरत के साथ ना -इंसाफी होती भी है तो परिवार की  दूसरी महिलाएं आगे हो कर उसे सम्भाले और गलत का विरोध करें।
       जो औरत ऐसा व्यवहार करती है उसे स्पष्ट रूप से कहा जाय कि उसका व्यवहार असहनीय है। उसे अपना यह व्यवहार बदलना ही होगा।
     उसके जीवन में जो कमी रही हो या उसके मान सम्मान में जहाँ कमी रह गयी हो वहाँ उसे यकीन दिलाया जाए कि उसे सभी प्रेम करते हैं और उसका रुतबा बड़ा ही है।
    एक औरत को दूसरी औरत ही समझ सकती है। कर्कशता एक तरह से मानसिक रोग ही है। जो कि प्यार और सम्मान से ही ठीक किया जा सकता है। नहीं तो एक दिन यह किसी भी औरत को गहन अवसाद की और धकेल देता है।घर  हर किसी के लिए एक आरामगाह होता है तो एक औरत ही क्यूँ इससे महरूम रहे। उसे क्यूँ नहीं मान और सम्मान दिया जाय !


उपासना सियाग
(पंजाब) 


 
  

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

अब हर दिन उसका है..



  शराबी पति की मार से तंग आ कर सड़क किनारे  गोद में बेटी लिए कमली सोच रही थी कि अब वह क्या करे !कहाँ जाए ? चेहरे को तो धूप से ढक लिया लेकिन जिंदगी कि हकीकतों की धूप से सामना तो अब करना ही था। सर पर छत ना सही लेकिन हौसले तो है ही। उसी हौसले ने उसे नई उड़ान भरने का संकल्प दिए। उसे क्या मतलब कि महिला दिवस क्या है और कब है ! अत्याचारी से मुक्ति मिली। अब हर दिन उसका है।