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रविवार, 13 जनवरी 2013

निरुत्तर सवाल .......

निरुत्तर सवाल ...

कोमल अपने चिकने हाथ धोते -धोते रुक सी गयी। वह अभी दाल के लड्डू बना कर गर्म पानी से हाथ धोने वाशबेसिन के आगे खड़ी थी। लेकिन ध्यान सासू  माँ की बातों में अटका हुआ था। बहुत आहत हुई  है वह आज ...!
  लड्डू के मिश्रण में जैसे ही चीनी मिलाने को हुई तो माँ ने हाथ रोक दिया और बोली , "जरा इसके दो हिस्से कर लो। एक हमारा यानि मेरा और तुम्हारे ससुर जी का और एक अंकुश का।  अंकुश के लिए जरा कम चीनी का कर दो और हमारे लिए मीठा पूरा ही रखना बल्कि थोडा ज्यादा ही।  तुम्हारे ससुर जी को मीठा तेज़ ही पसंद है।"

     कोमल के मन में कहीं कुछ चुभ सा गया।

     " और उसका हिस्सा ...!"

"मेहनत भी भी वही कर रही है और उसी  का ही हिस्सा नहीं है ...! आज 20 बरस हो गए इस घर में आये हुए और उसका किसी भी चीज़ में हिस्सा नहीं है। क्या सास एक औरत नहीं होती जो दूसरी औरत के मन को नहीं समझती ?या बहू परायी ही रहती है सारी उम्र !या जब तक वह सास नहीं बन जाती तभी तक वह औरत रहती है ...? सास बनते ही क्या औरत , औरत नहीं रहती ?इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है ...! "
आंसू रोकते हुए हुए , हाथ पौंछते हुए अपने कमरे में बैठ गयी।  मन में बहुत सारे  सवाल थे लेकिन जवाब उसके पास नहीं थे।