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शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

विचार कीजिये, कन्या पूजन के समय

           सभी को शारदीय नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ। अब से नौ दिन देवी पूजा के साथ-साथ कन्या पूजन भी होगा। हमारे भारत देश में यह कैसी विडम्बना है कि हम स्त्री को, कन्या को देवी मान कर पूजते तो है लेकिन सम्मान नहीं करते।
           यहाँ अब भी स्त्री मात्र देह ही है,सम्पूर्ण व्यक्तित्व नहीं । तभी तो हम मूर्तियों को पूजते हैं, हाड़ -मांस की प्रतिमूर्ति का तिरस्कार करते हैं। उसे अश्लील फब्तियों से ,नजरों से ताका जाता है। हर घर में बेटी है, बहन है।  अपने घर की बहन -बेटी का ही सम्मान और सुरक्षा क्यों ? जब तक दूसरों की बेटियों का सम्मान /सुरक्षा नहीं सोची जाएगी तब तक कन्या भ्रूण हत्या नहीं रुकेगी। यह पहला कारण है कन्या भ्रूण -हत्या का। क्योंकि हमारे अवचेतन मन में यही होता है कि बेटियां सुरक्षित नहीं है। लेकिन क्यों नहीं है, इस पर विचार कीजिये, कन्या पूजन के समय।
            बेटी का जन्म मतलब , दहेज़ की चिंता ! और दहेज़ देने के बाद भी उसे यह आवश्यक नहीं है कि बेटी को सुख या सम्मान मिलेगा ही , चाहे शारीरिक प्रताड़ना ना मिले, उसे मानसिक सुख भी तो नहीं मिलता ! यहाँ भी हर घर में बेटी है। अपनी बेटी के लिए सब कुछ उत्तम चाहिए तो जो बहू बना लाये हैं उसके लिए सब उत्तम क्यों ना हो ! यह दूसरा कारण है कन्या भ्रूण -हत्या का। क्योंकि हम दूसरे की बेटी जब बहू बना कर लाते हैं तो बेटी जैसा व्यवहार चाह के भी नहीं कर पाते। क्यों नहीं करते, जबकि वह तो अपने परिवार के लिए समर्पित होती है। इस पर भी विचार कीजिये, जब कन्या पूजन करें !
             बेटियां सभी को प्यारी होती है। मेरे विचार में कोई भी बेटी पर जुल्म करना या गर्भ में ही समाप्त करना होगा। बेटी के भविष्य से डर कर ही ऐसा कठोर कदम उठाता होगा। लेकिन डर कैसा ! कारण पर विचार कीजिये। अपने बेटों को सदविचार दें। एक खुली सोच दें जिससे वह स्त्री को बराबर का दर्जा दें।
             
           
         
       
           

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

इतिहास अपने को दोहराता है ....( लघुकथा )

    इतिहास अपने को दोहराता है ..

   दरवाजे पर घंटी बोली तो राधे मोहन जी ने पत्नी भगवती जी को आवाज़ लगायी।
     " देखो तो, कहीं मिनी ही ना आई हो ! "
    " हां लगता तो है ...."
      दरवाजा खोला तो सामने मिनी के पति और सास खड़े थे।
        आवभगत के साथ-साथ मिनी के ना आने की वजह भी  पूछी गई।
       " जब बच्चों की छुट्टियां होंगी तब मिनी भी आ जायेगी। अभी तो हम किसी रिश्तेदारी में मिलने जा रहे थे  तो सोचा आपसे मिलते चलें।पता चला था कि आपके पैर में फ्रेक्चर हो गया है।  " मिनी की सास ने सहजता से कहा।
राधामोहन जी की आंखे नम हो आई। आँखे नम, पैर के दर्द से कम और मिनी के ना आने से अधिक हुयी।
       भगवती जी से यह छुप ना सका।
       रसोई में मेहमानों के लिए चाय-नाश्ता तैयार करते हुए उन्होंने भी आँखे पोंछ ली। सहसा उनकी स्मृति में बहुत साल पहले की आज से मिलती जुलती घटना तैर गई। कुछ ऐसा ही मंजर था। उनके पिता जी भी  बीमार थे और राधेमोहन जी अकेले ही मिल आये थे, कि उनकी बेटी छुट्टियों  में ही आ पायेगी। भगवती जी और उनके पिता रो कर, मन मसोस कर रह गए थे।
         मेहमानों के चले जाने के बाद राधेमोहन जी मायूसी से बोले, " मिनी नहीं आयी ! "
" तकलीफ तो मुझे भी है उसके ना आने पर, लेकिन मास्टर जी ! सारी उम्र इतिहास पढ़ाते रहे हो और यह भी याद नहीं रहा कि ' इतिहास अपने को दोहराता है .....'

( उपासना सियाग , अबोहर )