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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

मरने का मन करता है , तो मर जाईये !

    "मरने का मन करता है , तो मर जाईये !"
 चौंकिए नहीं ! मैं ऐसा ही कहती हूँ , जो लोग मुझे यह वाक्य कहते हैं।
 हम बहुत सारे लोगों से कहते सुनते हैं कि 'हम मर जाएँ तो अच्छा है ! क्या पड़ा है जीने में ! हमारे जीने की वजह बच्चे हैं , नहीं तो अब तक खुद को कभी का ख़त्म कर लेते!'
    बच्चे ही नहीं , और भी बहुत सारी वजहें होती है मरने वालों के पास। कितने सारे कारण गिना देते हैं , जिसकी वजह से वे लोग ज़िंदा रहते हैं , वरना उनको कोई जीने का शौक ही नहीं होता। उनको लगता है कि वे अगर जिन्दा हैं तो दुनिया चल रही है। उनके ना रहने से  प्रलय ही आ जाएगी।
        लेकिन ,जब जीने का शौक नहीं है ,तो मर जाना ही बेहतर है। किसलिए धरती का बोझ बढ़ा रखा है। एक तो शरीर रूपी भार  और दूसरा जो मन पर 'मन भर ' भार  लाद रखा है।
   किसी के मर जाने से यह संसार रुका है क्या ? मरने वाला जो अपने पीछे परिवार छोड़ कर जाता है क्या वह जीना छोड़ देता हैं ? तो फिर मरने से डर कैसा ? मरिए ना !
     "ईश्वर ने जिसे चोंच दी है ,चून ( दाना/भोजन )भी देगा। " मेरी माँ के इस वाक्य से मैं भी सहमत हूँ।
फिर कैसा अहसान किसी पर कि हम किस वजह से जिन्दा है।
     ईश्वर ने इतनी सुन्दर दुनिया बनाई है। इतनी सारी  खुशियां दी हैं तो उनमे कुछ गम भी दिए हैं। हर किसी  को अपना  दुखः बड़ा ही लगता है। समय पर किसी का भी बस नहीं चलता है बुरे के बाद अच्छा समय भी आता ही है तो हम सुख के आने की सब्र से प्रतीक्षा क्यों नहीं करते। मरने के ही गीत क्यों गाते हैं।
       जो इंसान खुद से ही प्रेम नहीं करता , पल-पल मरने की सोचता है उसके  जिन्दा रहने  या मर जाने में फर्क ही क्या है। अपने आस पास नकारात्मकता फ़ैलाने से अच्छा ही है कि वह  ख़ुशी -ख़ुशी दुनिया से विदा ले ले और दूसरों को बे-मौत मरने से बचा दे।