सौम्या आज कई दिनों बाद फ्री हुई है तो सोचा क्यूँ ना अलमारी ही ठीक कर ली जाए। बच्चों की परीक्षाएं चल रही थी तो बस बच्चे और उनकी पढाई दो ही काम थे। सर्दी भी जा रही है।सर्दी के कपड़े भी अलग कर लेगी। सभी कपड़े ठीक से अलमारी में रखने के बाद उसने हैंगर में टंगी साड़ियों पर नज़र डाली तो उसे लगा उसकी पिंक साड़ी नहीं है वहाँ। उसके साथ पहनने वाले वस्त्र तो टंगे है लेकिन साड़ी नहीं है।
वह सोच में पड़ गई कि साड़ी किसको दी है उसने। बिल्कुल भी याद नहीं आया कि उससे साड़ी कौन ले गया। दूसरी अलमारी भी देख आई कि कहीं उसमे ना रख दी हो। वहाँ भी नहीं ! याद करने लगी कि शायद ड्राई क्लीनर के पास होगी। उसकी इतनी भी कमज़ोर याददाश्त नहीं कि उसे याद ना रहे।
साड़ी थी भी नई थी, ज्यादा पहनी ही नहीं थी। अभी मायके के कोई समारोह में तो पहनी ही नहीं। साड़ियां भी कौनसी सस्ती होती है। सोचे जा रही थी और घर की सारी अलमारियों में नज़र मारे जा रही थी।
किसी बाहर वाले पर भी शक कैसे किया जा सकता है और जो भी आता वह उसकी अलमारी में क्यूँ हाथ मारता। सिर्फ काम वाली ही आती थी सफाई करने। तो क्या काम वाली की हाथ की सफाई है यह !वह सोच में पड़ गई।
काम वाली को पूछे या ना पूछे। अगर पूछेगी तो कौनसा सच बोलेगी वह। उल्टा काम छोड़ कर और चली जाएगी। उफ्फ़ ! ये कैसी मुसीबत है। एक तो साड़ी नहीं मिल रही और किसी से पूछ भी नहीं सकती।
फिर कुछ सोचते हुए तक ठंडी सांस ली कि काम वाली से पूछना ठीक नहीं रहेगा कहीं भाग गई तो ! साड़ी तो कई बार पहनी हुई तो है ही ,कौनसी एकदम नयी है। मिल गई तो ठीक है और न मिली तो सोचूंगी कि ननद को ही दे दी। सौम्या के चेहरे पर अब मायूसी भरी मुस्कान थी।
उपासना सियाग
वाह
जवाब देंहटाएंक्या खूब सोच से अंत किया कहानी को आदरणीय आपने
हाँ ! वाकई में आज सोच कुछ इसी तरह कि हो गई है। सुन्दर लेखनी