शुक्रवार, 16 जनवरी 2015
शुक्रवार, 9 जनवरी 2015
बहार की उम्मीद....
"ओह्ह !! आज फिर ये फूल पड़े है !! "
"कौन रखता है इनको ?"
" पतझड़ के मौसम में बहार की किसको उम्मीद है !!"
" इन पत्तों के साथ इन महकते फूलों को फेंकते मुझे बहुत दुःख सा होता है !!"बलबीर खुद से ही जैसे बात कर रहा हो।
" बलबीर बेटे !! तुम दुखी ना हुआ करो , मेरी आशा को मैं रोज़ ताज़ा फूल ला देता हूँ। मेरी जीवन साथी आशा जो न हो कर भी यहाँ इन फूलों की महक लेने आ ही जाती है। "प्रकाश जी भावुक हुए जा रहे थे।
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