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रविवार, 11 अगस्त 2013

धूप छाँव

कई दिनों  अस्वस्थ चल रही थी  कनिका। चल क्या रही थी महसूस ज्यादा कर रही थी मन से । और फिर रात वाली बात ने भी उदास कर दिया। आज सुबह बिस्तर पर से  उठने को मन ही नहीं कर रहा था उसका। रात की घटना पर सोच रही थी। बात कोई बड़ी भी नहीं थी।  ऐसे ही हंसी  मजाक की बात को दिल से लगा बैठी थी वह। यह विचार उसके पति के थे। लेकिन क्या वह सचमुच मजाक था या उसकी अवहेलना ही थी।
   पिछली रात को वह बच्चों के साथ बैठी बात कर रही थी। उसने बातों ही बातों में कहा , " एक औरत माँ और बाप दोनों की जगह ले सकती है लेकिन पिता , माँ की जगह नहीं ले सकता। "
इस बात पर दोनों बच्चे एक साथ बोल पड़े। " नहीं , आप गलत हो इस बात पर  …. ! आपको क्या मालूम कितने काम होते हैं बाहर के , कमाई करनी होती है ,बैंक जाना होता है और भी कितने काम होते हैं , खाने का क्या नौकर रख लो  … .! "
" और नहीं तो क्या ! कपड़े धोने के के लिए वाशिंग मशीन है ना  …! " बच्चों के पापा ने भी सुर में सुर मिलाया।तीनों ने हाथ पर हाथ हुए जोर से ठहाका लगाया।
" अच्छा तो मैं सिर्फ खाना और कपडे धोने के लिए ही हूँ ? मेरी यही कीमत है  ? अरे सारा जीवन गला दिया तुम लोगों के लिए और आज  हो  …… ! " आगे के स्वर रुंध गए।
 नाराज़ हो कर अपने कमरे में  गयी।  बच्चों ने पुकारा लेकिन अनसुनी कर , चुप हो बिस्तर पर जा लेटी।   आँखों से आंसू बह निकले।
 पति ने भी समझाया कि एक औरत से ही घर बनता है। तुम हो तो हम है।  यह तो ऐसे ही हंसी -मजाक की बात थी।  लेकिन बात तो दिल पर तीर की तरह लगी थी।
" माँ , यूनिफार्म तो निकाल दो।  नाश्ते में क्या दोगी। आज उठना नहीं है क्या ? स्कूल को देर हो जाएगी हमें।
एक बार तो गुस्से में कुछ बोलने वाली थी। लेकिन सुबह ही सुबह वह बात बढ़ाना नहीं चाहती थी।
बच्चों को स्कूल भेज कर उसने पति से कहा की वह आज डॉक्टर  को दिखा ही आये।  जल्दी से काम निपटा कर सोचा कि जब तक बच्चे स्कूल से आयेंगे तब तक वह लौट आएगी।
लेकिन वहां भीड़ होने के कारण उसे थोड़ी देर लगने वाली थी। ध्यान फिर से रात की बात पर चला गया और खुद की अहमियत पर भी। तभी बेटे का फोन आ गया कि उसे क्या हुआ है और इतनी देर क्यूँ लग रही है डॉक्टर के पास। उसने भीड़ होने की बात कही और फोन काट दिया। लेकिन बेटे की आवाज़ में उसके लिए चिंता मन ही मन सुकून दे गयी और रात को लगे दिल पर घाव पर थोडा मलहम भी लगा गयी।
 घर पहुँच कर देखा तो बच्चे टीवी देख रहे थे।  आज जूते , युनिफोर्म और बेग भी अपनी जगह पर थे। बच्चों को लगा था की आज माँ की तबियत शायद ज्यादा खराब है तो वह उसका काम बढ़ाना नहीं चाहते थे। वह जल्दी से हाथ -मुहं धोकर रसोई में गयी की जल्दी से खाना बना दूँ। सब्जी बना कर गयी थी बस फुलके ही सेकने थे।
रसोई में जा कर देखा तो आज फुलके बाज़ार से आ गए थे बस उसी का इंतजार हो रहा था।
" माँ , डॉ ने क्या कहा ? आपके क्या हुआ है ? " छोटे बेटे ने पास आ कर गले लगते हुए कहा।  कनिका का मन भीग गया।  उसने कहा की डॉक्टर ने कहा की केल्सियम की कमी है ज्यादा कोई डरने वाली बात नहीं है।
" लो  इसमें डरने वाली बात नहीं तो क्या बात है , आपको मालूम है की इसकी कमी से हड्डियाँ कमज़ोर हो जाती है और आप कहते हो कि.…. , छोटे बेटे ने बात अधूरी छोड़ दी।
" आपको दूध पीना चाहिए जिससे आपकी केल्सियम की कमी पूर्ति हो सके  ," बड़े बेटे ने भी सुर में सुर मिलाया।
इतनी चिंता इतना प्यार देख वह रात वाली बात भूल गयी और सोचने लगी कि यह धूप छाँव तो जिन्दगी का हिस्सा है। थोड़ी देर में सारा परिवार खाना खा रहा था और किसी बात पर हंसी -मजाक भी चल रहा था।