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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

मुझे पागल ही बने रहने दो ( लघु कथा )



रागिनी ने अपने बेटे विक्रम को बताया , वह आगरा जाने वाली है तो वह शरारत से मुस्करा उठा और बोला , " माँ  , वहां पर अस्पताल बहुत अच्छा है ...!'
 रागिनी थोडा चौंकी , क्यूंकि वह तो कोई और ही काम जा रही थी। बीमार तो नहीं थी वह।
बेटे के चेहरे को देख वह भी हंस पड़ी  ," अच्छा मजाक है ...!"
शाम को पति से कहा जोकि शहर से बाहर थे।
वह भी बोल पड़े , " अच्छे  से चेक करवा कर आना।"
इस बार रागिनी को बात चुभ सी गयी। सोचने लगी कि आधी से ज्यादा जिन्दगी  घर - गृहस्थी में गुज़ार दी , कभी खुद के लिए सोचा भी नहीं।और अब भी  जरुरी काम है तब ही जा रही हूँ फिर भी पागल करार दी जा रही हूँ।

बोल पड़ी  , " आदरणीय पति जी , आपको और बच्चों को लगता है कि  मैं पागल हूँ ...! तो जी हाँ ...! मैं थोड़ी पागल तो हूँ ! आप, बच्चों और अपनी  गृहस्थी के लिए  ...! जरा सोचिये अगर मेरा दिमाग ठीक  हो कर सेट हो गया तो आप सब का क्या होगा। "
  उधर से एक जोर से हंसी की आवाज़ गूंजी जिसमे ढेर सारा प्यार था।

विवाह के निमन्त्रण -पत्रों का बदलता स्वरूप और प्रारूप

कोई भी समारोह चाहे पारिवारिक या व्यवसायिक हो , अपने सभी परिचितों , मित्रगणो और रिश्तेदारों को निमंत्रित करने की प्रथा तो है ही। बहुत सारे तरीके हो सकते हैं निमंत्रित करने के , लेकिन इन सब में निमन्त्रण - पत्र अति आवश्यक है यह सभी जानते है।

अन्य समारोहों में  जहाँ ये निमन्त्रण -पत्र साधारण स्वरूप और प्रारूप लिए हो सकते हैं पर जो विवाह समारोह के लिए छपवाए या  भेजे  जाते है उनका रंग - रूप और ही होता है।विवाह - शादी में निमन्त्रण या न्योता देना जितना  अति आवश्यक है  तो  उतना ही आवश्यक निमन्त्रण- पत्र  भी है।

राजाओं के ज़माने में उनके निमन्त्रण - पत्र  जहाँ सोने चांदी  के होते थे वहीं  जन साधारण पीले- चावल भेज कर निमंत्रित कर दिया करते थे। समय बदला वैसे ही विचार - धारा भी बदली।

जब घर में किसी का विवाह तय कर दिया जाता है तो सबसे पहले निमन्त्रण की ही बात जेहन में आती है।उसके बाद निमन्त्रण -पत्र  का।

ये भी बहुत सारी  विविधता लिए होते है। अलग रंगों , डिज़ाइन और आकर के , सबकी अपनी  - अपनी पसंद  ,हैसियत और सहूलियत के अनुसार भी होते हैं। कोई बहुत साधारण सा  छपवाते हैं तो कोई बहुत भड़कीला।
कई पृष्ठों और कई रंगों का समावेश यहाँ दिख जाता है। कई तो भारी -भरकम पुस्तिका जैसे भी होते हैं।

90 के दशक तक ये लगभग एक जैसा ही रूप लिए होते थे। जैसे गणेश जी की तस्वीर , डोली में बैठी दुल्हन  घोड़ी पर बैठा दूल्हा और साथ -साथ चलती बारात की की भी तस्वीर होती थी।

लेकिन जमाना जैसे - जैसे हाई -टेक हो रहा है तो निमन्त्रण - पत्र  कैसे अछूते रहेंगे।यहाँ भी बदलाव हो रहा है।
कई लोग इनमे अपने कुल देवता की फोटो भी लगाने लगे हैं।यह कुछ उचित नहीं लगता क्यूँकि  ऐसे में  देवता का अपमान ही अधिक होता है। जिस घर में उन देव को पूजा जाता है वहां तक तो ठीक है लेकिन हर कोई उनका मान नहीं रख पाता।   यह भी क्या जरुरी है जिसके पास कार्ड जाता है वह हाथ धो कर या शुद्धता से ही कार्ड पढेगा। देव तो आशीर्वाद ही देते हैं फोटो लगाने का क्या औचित्य है।

निमन्त्रण - पत्र के साथ मिठाई या सूखे मेवे देने का प्रचलन भी है।इन डिब्बों की बहुत सारी   सज्जा के साथ ही पैकिंग होती है। मिठाई  या सूखे मेवे तक तो ठीक था कुछ अति आधुकिन लोग  इसके साथ एक डिब्बे में शराब की बोतल और चोकलेट भी देने लगे है। अब विवाह जैसे पवित्र कर्म में शराब जैसी चीज़ का क्या काम ...! डिब्बे में  ऊपर तो गणपति की तस्वीर के साथ विवाह -समारोह के कार्यक्रम का विवरण और  नीचे शराब और चोकलेट ...!

निमन्त्रण - पत्र  पर यह दिखावे भरा खर्च करने के बजाय अपनी बेटी या बेटा , जिसकी भी शादी हो , उसके नाम रूपये ही जमा करावा दिया जाये , जोकि उसके भविष्य में काम तो आ पाए। ये कार्ड्स तो कुछ दिन ही याद रहते है।बाद में तो कबाड़ ही है चाहे जितने रूपये लगाये जाए।

निमन्त्रण - पत्र  साधारण और जो भी कायर्क्रम हो उसे सुस्पष्ट तरीके से लिखा जाय तो ही ठीक रहता है।ज्यादा  भडकीला कार्ड होने पर कई बार लोग उसकी चमक -दमक और साथ मिले उपहार में ही उलझ कर रह जाते है और समारोह में शामिल होने के अंतिम क्षण तक कार्यक्रम सूचि को तलाशते है के कौनसा कार्यक्रम कब और किस समय है।

कार्ड का  रूप बदला तो थोडा सा प्रारूप भी बदला - बदला सा है। यहाँ भी किसका नाम लिखाया जाय या किसका नहीं।इससे भी व्यक्ति के उस परिवार के खास होने या न होने का पता चलता है।
आज कल जो सबसे ज्यादा हास्यप्रद है वह है कि कई लोग कार्ड्स में जो उनके पूर्वज स्वर्गजो कि  में निवास कर रहे  हैं , उनके भी नाम लिखवाने लगे है ..., जैसे "स्वर्गीय ......और स्वर्गीया ....., स्वर्ग से आशीर्वाद भेज रहे हैं।"अब उनका तो आशीर्वाद हमेशा ही रहता है चाहे वे ( स्वर्गीय आत्माये ) जीवित रहते हुए एक गिलास पानी को भी तरसे हों। उनके बच्चों ने कार्ड पर सबसे उपर नाम लिखवा कर अपना फ़र्ज़ पूरा करके उनकी आत्मा को शांति तो पहुंचा ही दी।

निमन्त्रण-पत्र पर कैसे नाम लिखा गया है ...जैसे किसी व्यक्ति का अकेले का नाम है या सपरिवार ...या कार्ड देने वाला कौन है और किस तरह से निमंत्रित करके गया है या महज़ औपचारिकता से भरा आमन्त्रण मात्र  ही है, यह भी बहुत मायने रखता है।

आज के ज़माने में प्रेम - स्नेह की बजे दिखावा ही ज्यादा मायने रखता है।अब तो यह  भी लगने लगा है के एक दिन ऐसा  भी आएगा जब लोग इंटरनेट पर अपने मित्रों और सम्बन्धियों को एक ही निमन्त्रण - पत्र में टैग कर देंगे। ऐसे में आशीर्वाद भी वहीँ मिल जायेगा।

उपासना सियाग