बहुत साल हुए हम लोग पटियाला जा रहे थे कि छोटे बेटे प्रद्युम्न जो कि चार साल का था, ने रोना शुरू कर दिया। उसकी मांग और जिद थी कि वह कार की सीट के नीचे घुसेगा और वहीँ सोयेगा भी। मनाने पर भी मान नहीं रहा था। तभी मेरी नज़र माइल -स्टोन पर पड़ी। जिस पर लिखा था, 'गिदड़बाहा 'पांच किलोमीटर !
मुझे अचानक एक युक्ति सूझी और बोल पड़ी, " देखो मानू अब गीदड़ गाँव ( गिदड़बाहा निवासियों से क्षमा सहित ) आएगा ! यहाँ हर जगह गीदड़ ही गीदड़ होते हैं। ट्रक में, ट्राली में, सब जगह गीदड़ ही दिखाई देंगे। "
वह मान भी गया। कार से बाहर झांकते -झांकते कब उसको नींद आ गई और हमने चैन की साँस ली।
संयोगवश उस दिन धनौला में पशु मेला था। वापस आते हुए हमें ट्रक ,ट्रालियों आदि में गायें जाती हुई दिखी। हम भूलचुके थे कि हमने क्या कहा था। मानू बहुत ध्यान से देखते हुए, मेरे मुहं को अपनी तरफ करते हुए बोला, " मम्मा अब गाय गाँव आएगा क्या ?"
मुझे अचानक एक युक्ति सूझी और बोल पड़ी, " देखो मानू अब गीदड़ गाँव ( गिदड़बाहा निवासियों से क्षमा सहित ) आएगा ! यहाँ हर जगह गीदड़ ही गीदड़ होते हैं। ट्रक में, ट्राली में, सब जगह गीदड़ ही दिखाई देंगे। "
वह मान भी गया। कार से बाहर झांकते -झांकते कब उसको नींद आ गई और हमने चैन की साँस ली।
संयोगवश उस दिन धनौला में पशु मेला था। वापस आते हुए हमें ट्रक ,ट्रालियों आदि में गायें जाती हुई दिखी। हम भूलचुके थे कि हमने क्या कहा था। मानू बहुत ध्यान से देखते हुए, मेरे मुहं को अपनी तरफ करते हुए बोला, " मम्मा अब गाय गाँव आएगा क्या ?"