क्या वो प्यार था
तीसरी बार डोर बेल बजाने बाद भी दरवाज़ा नहीं खुला तो मैं चौंकी ,क्या बात हो सकती है कुहू दरवाज़ा क्यूँ नहीं खोल रही ,उसी ने तो बुलाया था फोन कर के," आजाओ जूही , आज फ्री हूँ उमंग तो बिजनस टूर पर गए हैं ,बातें करेंगे बहुत सारी... लंच भी यही कर लेना बस आ जाओ तुम "...........एक सांस में कितनी सारी बातें करने की आदत जो थी उसको !
यहाँ आसाम में मेरे ज्यादा कोई जानकर भी नहीं थे। पति के कार्यालय में काम करने वालों की पत्नियों के अलावा , एक कुहू ही थी बस अपनी कहने को या पुरानी जानकार कह लो। हम ने इंदौर में एक साथ हॉस्टल में तीन साल एक ही कमरे में बिताये थे तो एक दूसरे के राज़ दार भी थे और पक्की वाली सहेलियां भी।
शादी के बाद भी फोन -खतों से जुड़े रहे और फिर जब मेरे पति की पोस्टिंग यहाँ हुई तो हम दोनों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था और अब ...
मेरी सोच को विराम देते हुए कुहू ने दरवाज़ा खोला तो मुख पर वही उजली किरन सी निश्छल मुस्कान थी और हाथ पकड़ कर खींच लिया आओ- आओ ,जल्दी आओ जूही ! मुझे भांपते देर नहीं लगी कि आज वो बहुत रो चुकी है , चेहरे पर हलकी उदासी के साथ एक निश्चिंत भाव भी था।
मैं मुसुकुराने लगी और बोली ,"एक बात तो उमंग सच कहते है कि तुम्हारी आँखे रोने के बाद और भी खुबसूरत हो जाती है ! "
उसके चेहरे पर हलकी सी मुस्कान के साथ आँखों के कोर भी भीगते दिखे , वह बात बदलते बोली चलो खाना खाते हैं। खड़ी होने का उपक्रम किया तो मैंने हाथ पकड लिया, " बात क्या है कुहू ?"
वह हंस कर बोली, " अरे कुछ नहीं यार ,आज मैंने एक वाइरस को खत्म कर दिया जो मेरी लाइफ की विंडो को खा रहा था। "
बात तो बड़े बिंदास तरीके से शुरू की पर ख़त्म करते -करते उसका गला भर आया . मैंने धीरे से पूछा" क्या पराग की बात कर रही हो तुम ? वह धीरे से गर्दन हिला कर बोली, "हाँ ..."
पराग कौन था उसका या वो पराग की वो कौन थी ये बात दोनों ही नहीं जानते और एक दूसरे से जुड़े भी रहे बरसों तक... ! और कुहू !उसकी तो हर बात अनूठी थी ! ज्यादा सुंदर नहीं थी पर एक चुम्बकीय आकर्षण था उसकी बड़ी बड़ी काली आँखों में जो एक बार देख ले वो बस कहीं खो ही जाता। मासूम सी मुस्कान ,कभी किसी से झगड़ा करते नहीं देखा। एक अच्छी मददगार भी थी। मन में दूसरों के लिए तो करुणा का अथाह सागर था।
किसी का भी बुरा तो सोच भी नहीं सकती थी। शरारती और चंचल तो बहुत थी पर किसी को सताना उसका काम नहीं था। बस हँसना और हँसाना सभी को...!
और इसी हंसी मजाक में एक दिन दोपहर में जब हॉस्टल का फोन खाली पड़ा था तो उसने यूँ ,ही रोंग नम्बर मिला लिया। कभी किसी से तो कभी किसी से बात करने लगी और एक फ़ोन नंबर मिला तो दूसरी तरफ एक मर्दाना आवाज़ (बहुत अच्छी और कर्ण प्रिय, दिल को छूने वाली भी ये बात मुझे कुहू ने बाद में बताई थी ) आयी। कुहू तो ऐसे बातें करने लगी जैसे उसको जानती हो।
फिर बड़े ही खुश अंदाज़ में फोन रखते हुई बोली," अच्छा पराग आपसे फिर और भी बातें करुँगी !"
मेरी तरफ घूमकर मेरे गले में बाहें डाल कर बोली चल "आज तो मज़ा ही आ गया बातें कर के यार, पहली बार किसी लड़के से बात की है !"
"अच्छा तुझे क्या पता वो लड़का ही है तूने देखा था क्या?" मैंने डांटते हुए कहा।
"पराग ने बताया था कि वह वकालत कर रहा है ,तो लड़का ही हुआ न ....."
" अच्छा अब मुझे जाने दे पढाई भी करनी है तेरी तरह इंटेलिजेंट नहीं हूँ !"मैंने कहा और अपने कमरे में आ गयी। पीछे -पीछे वह भी। वह तो बहुत खुश थी कि आज उसने कोई बड़ा काम ही कर दिया। वह ज्यादा नहीं पढ़ती फिर भी नम्बर अच्छे ही आते थे और मुझे बहुत पढने के बाद ही नम्बर आते थे।
और उस दिन के बाद से कुहू ने पराग से फोन पर बातें शुरू कर दी। कभी दिन में एक बार या कभी दो बार ! और एक दिन तो वह बहुत खुश थी। जिस दिन पराग हॉस्टल आने वाला था ; थोड़ी घबराई भी हुई थी क्यूंकि उसने सिर्फ बातें ही बनाई थी। किसी लड़के से कभी आमने-सामने बैठ कर मिली या बातें तो की ही नहीं थी।
लेकिन पराग तो आने वाला था ...!
बड़ी घबराई सी थी कुहू। हॉस्टल के चौकीदार ने आवाज़ लगाईं कि कुहू मेहता कोई मिलने आया है। मैं भी भागी कुहू के पीछे -पीछे अरे जरा देखूं तो कैसा है कुहू का बॉय -फ्रेंड (वो खुश हो कर मुहं टेढ़ा कर के ऐसा ही बताया करती थी ) .
पराग को देखा तो वह भी कुछ घबराया हुआ सा था। गोरा रंग ,कुछ भूरापन लिए आँखे और घुंघराले सुनहरी आभा लिए बाल, बहुत सुन्दर नौजवान था। वो दोनों होस्टल के गार्डन में पेड़ के नीचे आमने सामने बैठे थे और मैंने देखा कि पराग तो शायद सोच रहा था कि क्या बात करूँ। वैसे बातूनी तो वो भी कम नहीं था पर मुलाक़ात पहली ही थी उसकी भी किसी लड़की से और वो भी गर्ल्स -हॉस्टल में ,आखिर वो अपनी रिस्क पर ही आया होगा वहां पर।
लेकिन कुहू से भी ना बस ,रहा नहीं गया और उसके हाथ पर बने एक बड़े काले निशान के बारे में पूछ ही लिया" ये क्या है ,ग्रीस लगा है क्या स्कूटर का ,या जल गया था या क्या हुआ था ...बस एक सांस में ही बोल गयी सब और पराग के चेहरे पर हंसी सी दौड़ गयी आखिर उसको भी तो बोलने का बहाना मिल गया था बताया कि ये उसका 'बर्थ -मार्क 'है .फिर थोड़ी देर बाद इधर उधर की बातें करके चला गया।
वह संगीत का बहुत शौकीन था। वहीं कुहू को संगीत से ज्यादा लगाव नहीं था ; बस सुन लिया !उसे शौक था तो सोने का , नींद लेने का !
ऐसे ही एक दिन जब वह सो रही थी तो चौकीदार की आवाज़ आयी , "कुहू मेहता का फोन आया है !"
जब कई देर बाद वो आयी तो जोर जोर से हंस रही थी और बताने लगी आज तो पराग ने गाना सुनाया आवाज़ तो अच्छी है उसकी।
मेरे पूछने पर उसने बताया, "बड़े अच्छे लगते है ये धरती ,ये नदिया ये रैना ,और तुम !वाला गाना सुनाया और पिक्चर देखने का भी बोल रहा था। मुझसे मना नहीं किया गया यार कितना भोला सा है ना थोडा सा बुद्धू भी है पर यार जूही तू साथ चलना अकेले तो मैं नहीं जाउंगी बड़ा अजीब सा लग रहा है "वो फिर एक सांस में शुरू हो गयी।
"ठीक है बाबा "मैंने उसको चुप करते हुए कहा चलूंगी !
एक दिन हमें वह ओ पी नैयेर के संगीत से सजी पिक्चर दिखाने ले गया। बाद में मैंने कुहू को छेड़ा, "क्या उसने तेरा हाथ नहीं पकड़ा अँधेरे में !"
तो वो हैरानी से बोली" क्यूँ कोई डरावनी पिक्चर थी क्या जो वो डर के मारे मेरा हाथ पकड़ता ? मुझे बड़ी जोर से हंसी आयी पर वह नहीं समझी। लेकिन मुझे थोड़ा -थोड़ा समझ आ गया था ;जब उसने बताया कि यार जूही ये पराग तो बहुत बड़ा गायक बनेगा ;अगर इसकी वकालत नहीं चली तो !आज उसने फिर एक गाना सुनाया था " आपकी आँखों में कुछ महके हुए से राज़ है आपसे भी खूबसूरत आपके अंदाज़ है ..."
मैंने उसे धीरे से टटोला "कहीं उसको तुमसे प्यार तो नहीं हो गया ? " वह हंस -हंस कर दोहरी हो गयी थी । बोली" देख जूही ,ये प्यार -व्यार कुछ नहीं होता है , बस एक केमिकल रिअक्शन ही होता है यार !तू छोड़ ये बातें और चल मैस में खाना खाने ...!"
उसके बाद हम सब पढाई में व्यस्त हो गए और एक्जाम्स की तैयारी में जुट गए। कुहू के पेपर पहले खत्म हो गए। वह घर जाने की तैयारी में लगी थी। अगले दिन सुबह सात बजे उसकी बस थी। उसको बस स्टेंड छोड़ने के लिए हमारे साथ हमारी सहेली बिंदु भी थी। पराग भी आया था। चलते हुए उसने बड़े बिंदास तरीके से मुझसे और बिंदु से हाथ मिलाया और पराग से भी और चली गयी।
"पर जूही मैं जा ही नहीं पायी वहां से अभी भी वहीँ खड़ी हूँ उसका हाथ थामे ,जब मैंने उसकी तरफ हाथ बढाया तो तो मैंने उसकी आँखों वो देखा जो मैं कभी समझ ही नहीं पायी, उसकी बातें उसके सुनाये हुए गाने और क्यूँ उसका मुहं उतर गया था मेरी सगाई की खबर सुन कर ... वहां से मेरा शरीर जरुर गया पर मेरी आत्मा वहीं है अभी भी ...!"आंसू पोंछते हुए कुहू ने बताया और चाय बनाने चली रसोई में।
मैं उसके पीछे -पीछे ही आ गयी और पूछा अच्छा कुहू फिर तुम उसके बाद अभी मिली हो क्या उससे फेस बुक पर ...! उसने हाँ मैं सर हिला दिया और बताने लगी।
हॉस्टल से घर आने के कुछ समय बाद कुहू का विवाह उमंग से हो गया ,उमंग एक बहुत अच्छा और सच्चा इंसान था। उसका एक ही फंडा था लाइफ का 'जियो और जीने दो' ....पार्टियाँ करने का शौकीन ,बाहर घूमने घुमाने का भी बहुत शौक है उसे ,जहाँ जाता कुहू जरुर उसके साथ होती। कई बार दोनों विदेश भी जा चुके है।
बेटे की पढ़ाई खराब ना हो इसके लिए उसको भी होस्टल भेज रखा है पर कुहू का साथ नहीं छोड़ सकता। कुहू अक्सर बताया करती है विवाह के पन्द्रह साल होने के बाद भी उमंग का हनीमून नहीं ख़त्म हुआ। पर कभी- कभी हंसती हुयी कुहू की आँखों के आगे एक जोड़ी कुछ भूरी कुछ काली आँखे सामने आ जाती तो वो संजीदा भी हो जाती।
ऐसे ही एक दिन उमंग ने कहा चलो कुहू हम भी फेसबुक पर अपना अकाउंट बनाते है अपने सारे पुराने फ्रेंड्स को ढूंढेंगे। ये अच्छा जरिया है। दोनों ने अपना -अपना अकाउंट बना लिया। एक दिन कुहू अकेली थी और अपने फ्रेंड्स सर्च कर रही थी तो एक दम से ख्याल आया कि कही पराग ने भी तो अपना अकाउंट नहीं बना रखा और लगी ढूंढने पर यहाँ तो सेंकडो पराग थे ! अब उसका वाला कौनसा है ?तभी एक चेहरे पर नज़र पड़ी तो चौंकी क्या ये हो सकता है !अब उसकी कोई फोटो तो थी नहीं उसके पास(बस याद ही थी ) ! उसने उसके प्रोफाइल खोल कर देखा ,अरे हाँ वही जन्म तारीख, शहर ........उसने झट से उसके मेसेज -बॉक्स में एक सन्देश छोड़ दिया अपना परिचय देते हुए और ये भी लिख डाला "क्या मैं अभी भी तुम्हें याद हूँ ?"
उसके बाद उसे थोडा सा संकोच भी हुआ, "अरे ये कोई और निकला तो ! मुझे कितना गलत समझेगा उसने फिर से उसका प्रोफाइल चेक किया और उसकी फोटो देखने लगी तो देख कर बस कुहू रो ही पड़ी ख़ुशी के मारे कि ये तो वही पराग है ! फोटो में उसके हाथ पर उसका काला निशान यानि 'बर्थ -मार्क 'था उसने धीरे से माउस के तीर से वो निशान छू दिया।
पंद्रह दिन बाद पराग का सन्देश आया "हाँ !"
अब ये हाँ का मतलब दोनों तरह से लिया जा सकता है के "हां, मैं पराग ही हूँ या ये भी कि तुम मुझे अभी भी याद हो !"
पर कुहू को तो दोनों ही मतलब से हाँ ही दिखा ...
कुहू ने सन्देश के उत्तर मैं अपना फोन नंबर दे दिया। कुछ देर बाद पराग ऑन लाइन दिखा तो एक दोनों ही भूल गए के उनका जीवन अब पंद्रह साल आगे निकल चुका है ! कुहू एक बेटे की माँ तो पराग दो बच्चों का पिता बन चुका था। फिर एक दिन फोन पर भी बात हुई तो उसने पूछा "पराग तुमने अपने घर में मेरे बारे में बताया क्या ? "
क्यूँ कि पराग की माँ को उसके बारे में पता था कि वह कुहू से बात करता था। जब उसने अपनी माँ को कुहू की सगाई के बारे में बताया था तो उसकी माँ ने एक राहत की सांस ली थी। यह पराग ने ही कुहू को बताया था। इस पर बिना पराग की प्रतिक्रिया जाने वो बहुत हंसी थी और वह उसका मुहं ही देखता रहा बस ...
हाँ तो, जब कुहू के यह पूछने पर कि क्या उसने घर पर बताया है उसके बारे में तो पराग हंस पड़ा कि नहीं बताया और बताऊंगा भी नहीं ! माँ तो रही नहीं कई सालों से बीमार थी ,और मेरी पत्नी मुझे ले कर बहुत शक्की है ऐसे में मेरी हिम्मत ही नहीं है बताने की ..!
फिर कई दिन चैटिंग का सिलसिला चलता रहा पराग अक्सर उससे शिकायत कर बैठता के वो भाग निकली बीच में ही। इस बात पर कुहू को बहुत अफ़सोस सा होता। एक दिन उसने भी नाराज़ हो कर कह ही दिया "क्यूँ नहीं जाती क्या तुमने रोका था ,किसके भरोसे रूकती !"
पराग बोला एक बात पूछता हूँ अब हालाँकि इस बात का कोई भी मतलब भी नहीं है और तुम क्या जवाब दोगी ये भी मैं जानता हूँ फिर भी बताओ ,अगर मैं तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ता तो तुम इनकार तो नहीं करती और आज कहानी कुछ और ही होती। "
और कुहू के पास सच में ही कोई जवाब भी नहीं था ,और होता भी क्या ..!
एक दिन पराग हंस कर बोला "कुहू अगर कोई टाइम मशीन होती तो हम वापिस पंद्रह साल पीछे चले जाते !"
कुहू ने अपने वही चिरपरिचित अंदाज़ में बोली (लिखा ),"अरे मैं तो कई दिनों से वहीँ हूँ और तुम कहाँ हो ....!"
पराग भी भूल गया और जोर से हंस पड़ा, "अरे तुम तो मेरे पीछे ही खड़ी हो और मैंने देखा नहीं बहुत शरारती हो .
और फिर एक गीत गुनगुनादिया"बंदा-परवर थाम लो जिगर .........." कुहू भी जोर से हंसी कि तुम्हारी ये गानों की आदत गयी नहीं !"
लेकिन अब वह इन सबका मतलब खूब समझ रही थी लेकिन अब उसके मायने भी क्या थे !
दिल की सच्ची और इमानदार कुहू को अब थोड़ी आत्म -ग्लानी महसूस हुई। ये गलत था।उसने उमंग को बताने का फैसला किया और रात को खाने के बाद उसने सब सच बता दिया और कहा कि ये सारा मेरा ही कुसूर है ; पहले भी मैंने ही पराग को ढूंढा था और अब भी मैंने ही ! मुझसे झूठ नहीं बोला जाता अब आप चाहे जो सोचो !"
उमंग भी थोड़े से संजीदा हो कर बोले, "तुम मज़ाक कर रही या सच बोल रही हो ,देखो मेरी दिल की धड़कन रुक रही है !
" यह सच है !" लेकिन गीत सुनाने और साथ पिक्चर जाने की बात बताने की उसमे हिम्मत नहीं थी। उमंग ने भी बहुत हलके से लिया बोला, " कोई बात नहीं ऐसा होता है .ये जीवन चलता रहता है जाने दो ....."
अगले दिन कुहू ने पराग को सारी बात बताई तो उसे बहुत अचम्भा सा हुआ बोला ,"बहुत किस्मत वाली हो कुहू ऐसा जीवन साथी मिला ,नहीं तो मोनिका ने मुझे एक कैद सी में जकड रखा है !
कुहू बोली , "ये तुम्हारा ही फाल्ट है जो अपने साथी में विश्वास जमा नहीं पाए !"
" नहीं ऐसा नहीं है मैंने बहुत कोशिश की है वह भी मेरे साथ वकील ही है ,फिर भी ना जाने क्यूँ ऐसा करती है !" पराग का जवाब था।
एक दिन कुहू की बात मोनिका से करवा ही दी पराग ने। उसने कुहू से तो बहुत मीठी -मीठी बातें की पर पराग की जान सांसत में डाल दी बोली या तो वह जान दे देगी नहीं तो उसको बाहर निकालो ,अगले दिन पराग का फोन पर मेसेज आया कि मैं तुमसे कोई भी बात नहीं करना चाहता मोनिका को सख्त ऐतराज़ ह। और कुहू जोर से रो पड़ी। उस समय वो खाना खा रही थी। उमंग के पूछने पर वह वो क्या बताती। बेटे की याद आ रही है कह कर बात टाल दी। कई दिन उखड़ी सी रही। फोन भी मिलाया पर पराग ने नहीं बात की। हार कर कुहू ने मेसेज किया कि एक बार तो बात करनी ही होगी। आखिर मुझे भी तो पता चले के क्या हुआ है ..!
इतने में फोन भी आ गया पराग का बोला ,"वहां कुछ भी ठीक नहीं है तीन दिन हो गए है किसी ने भी सो कर नहीं देखा,मोनिका को हमारी निर्दोष मित्रता से सख्त ऐतराज़ है , अब मैं तुमसे प्रार्थना ही कर सकता हूँ कि मुझे माफ़ करदो ,मुझे पता है तुम्हें कितनी तकलीफ हो रही है और मुझे ये कहते हुए भी, पर विधि का विधान भी यही है हम उससे बंधे हुए है ! "
कुहू ने बहुत मुश्किल से बोला गया "कोई बात नहीं अब मैं तुमसे मिलने का पंद्रह साल और इंतजार करुँगी। और पराग ने यही सही रहेगा कह कर फोन काट दिया।
कुहू ने भी उसका फोन नम्बर डिलीट कर दिया उसे भी अपनी लिस्ट से बाहर कर दिया।
"लेकिन जूही ...." अब कुहू मेरा हाथ पकड कर बोल रही थी ,"मैंने उसका नंबर डिलीट कर दिया लेकिन जो नम्बर मैं पिछले पंद्रह साल से नहीं भूली तो ये कैसे भूल जाऊं ,मुझे नहीं पता क्या कारण है ,कुछ बातें इंसान के बस में कहाँ होती है ,मुझे उससे प्यार नहीं था ,फिर भी मैं उसे नहीं भूली , क्यूँ ? ये भी मुझे नहीं पता लेकिन मेरा दिल बहुत दुखा है और मैं इसको समझाने के लिए क्या करूँ ,ये भी नहीं मुझे पता !"और उसने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया ,जब उसको ये मालूम था तो मुझे पहचाना ही क्यूँ उसने ,फिर जब तक उसको सहूलियत लगी बातें करता रहा और जब जान पर बन आयी तो "तू कौन मैं खामख्वाह ..!"
वो कितनी ही देर रोती रही और मैंने रोका भी नहीं ये सोच कर के आज जितना भी बोझ दिल पर है आंसुओं की राह से निकल कर बह जाएगा ......
एक बार उसने खुद ही कहा था कि" हम औरतों के दिल में कई चेम्बर होते है एक में उसकी गृहस्थी और एक में उसका मायका ,सखियाँ होती है और जो दिल का जो तिकोना हिस्सा होता है न ,उसमे उसकी अपनी कुछ छुपी हुई यादें होती है जिनको वो कभी फुरसत में निकाल कर देख कर धो -पोंछ कर वापस रख देती है !"
मैंने सोचा जो लड़की प्यार को सिर्फ केमिकल -रिएक्शन मानती थी और दिल को खून सप्लाई का साधन, उसने दिल कि ऐसी व्याख्या कर दी और कहती है उसे पराग से प्यार नहीं है !
मैं उसे क्या बताती और वह खुद जानती ही थी कि वो प्यार ही था जो वह भूल नहीं पाई कभी पराग को। फिर भी उसे तो मैंने यही समझाया और वो भी ये समझती - जानती थी कि कोई भी विधि का विधान नहीं बदल सकता है जो जिसे मिला है वो सबसे अच्छा ही मिला है।