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शनिवार, 18 अगस्त 2018

मन्नत

     दादी रोज मंदिर जाती और अपने परिवार की खुशियाँ , सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना कर आती। और सोचती कि प्रभु से माँगना  क्या ! उसको तो सब पता ही है।
         लेकिन कल से सोच में डूबी है। कल जब वे  रोज़ की तरह दोपहर में धार्मिक चैनल पर प्रसारित होती भागवत कथा सुन रही थी तो उसमें , कथा वाचक बोल रहे थे , " एक गृहस्थ को ईश्वर की पूजा सकाम भाव से करनी चाहिए। जैसे , क्या आपको मालूम भी होता है  कि  आपके बच्चे को कब क्या चाहिए ! वह भी तो बोल कर बताता है ; उसे यह चाहिए या वह चाहिए ! तो वैसे ही प्रभु को क्या मालूम कि  आपको कब -क्या  चाहिए ! उसके सामने तो सारा ब्रह्माण्ड होता है !"
             दादी को भी बात जँचती सी लगी।
     सोच में पड़ी बुदबुदाने लगी , " तभी मैं सोचूं , मेरे घर में इतनी परेशानियां क्यों है ! बेटा परेशान , पोती की शादी नहीं हो रही , पोते को नौकरी नहीं मिल रही ! यह तो भगवान से कभी माँगा ही नहीं  ! ठीक है भई , आज ही लो ! इतने दिन हो गए मंदिर जाते हुए , अब तो प्रभु मेरी भी पुकार सुनेंगे ही। मेरी मन्नत भी सुनेगे और इच्छा-पूर्ण होगी ! "
          उत्साह से पूजा की टोकरी तैयार की और मंदिर चल दी।
          मंदिर का सुवासित वातावरण और बजते घंटे दादी को हमेशा की तरह बहुत सुहा रहे थे। सोमवार होने के कारण कुछ ज्यादा ही भीड़ थी। उनको लगा की उनकी बारी आने में अभी समय है तो वे एक कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
         सभी आने-जाने वाले भक्तों का जायजा लेने लगी।
           सोच रही थी ," संसार में कितना दुःख है , मंदिर में आने वाले सभी अपनी आँखे बंद कर के ,अपना-अपना दुःख भगवान को सुना रहे हैं ! क्या किसी को भगवान की सुन्दर -मुस्कुराती हुई मूर्ति नहीं दिख रही  ? सब आंखे मूंदे हुए अपना ही राग अलाप रहे हैं !यह तो सभी जानते ही हैं कि  सुख- दुःख तो हमारे कर्म फल हैं। मंदिर तो मन की शांति खोजने का तो साधन है फिर यहाँ क्यों अशांति फैलाई जाये।एक बार मुस्कराती मूरत को मन में बसा ले तो शायद कोई हल मिल भी जाये। अरे ! जब प्रभु सारे ब्रह्माण्ड का दुःख हँस कर झेल रहे हैं तो इंसान ऐसा क्यों नहीं करता ! " जोर से बजे घण्टे ने दादी की तन्द्रा भंग की तो उनको लगा कि अब उनकी बरी आ जाएगी।
         बारी आने पर दादी ने भी पूजा की और बोली , " हे प्रभु तेरे द्वार आने वाले हर एक की इच्छा पूर्ण करना। "
          और फिर दादी अपने घर लौट गई।

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

द्विजा..

मेघा की आँखे बरसना तो चाह रही थी पर संयमित रहने का दिखावा कर रही थी | कुछ देर पहले की बातें कानों में गूंज रही है |
       " यह क्या आज टिफिन में परांठे -आचार ! और माँ को सिर्फ खिचड़ी ? "
     " हाँ , आज उठने में जरा देर हो गई तो यह सब ही बना पाई | "
" तो जल्दी उठा करो ना ... ! " रजत भड़क कर बोला
   " अरे जाने दे बेटा ! सारा दिन भाग-दौड़ में थक जाती है !"
मांजी, बेटे के सामने तो अच्छी बन रही थी लेकिन मेघा को देख कर बड़बड़ाने लगी , " छह महीने हुए है शादी को और रंग दिखाने लगी , बना के रख दी खिचड़ी , खा लो भई... हुँह !"
      कॉलेज के आगे बस रुकी | वह मन को संयत कर ,अनमनी सी आगे बढ़ी कि लॉन में लगे गमले का पौधा कुछ मुरझाया सा खड़ा था | पास ही खड़े माली से पूछा," भैया इस पौधे को क्या हुआ ! शनिवार को तो बहुत खिला-खिला था ! और इसे लॉन से उठा कर यहाँ क्यों रख दिया ? "
  " वो क्या है कि मैडम जी ... यह धरती में जड़ें फैलाने लगा था ! "