मेरे वेलन्टाइन मेरी गुरु महाराज मथुरा बाई है। मैंने जब उनको पहली बार देखा तो उनसे मुहब्बत हो गयी। .एक सीधा सादा सा चेहरा मोहरा पर असाधारण व्यक्तित्व ...!
मैंने उनको पहली बार मेरी शादी के बाद देखा था जब माँ उनका आशीर्वाद दिलवाने पास के घर ले कर गयी थी। उनका प्यार से मेरे सर पर हाथ रखना मुझे अंतर्मन तक महसूस हुआ और मुझे लगा जैसे मेरे मन के तार उनसे जुड़ गए हो हालांकि मैंने उनको १० साल बाद गुरु धारण किया था पर उनसे प्यार उसी दिन हो गया था.
महाराज जी का जीवन भी मुझे बहुत कारुणिक और मार्मिक लगता है। एक संपन्न परिवार में जन्मी और विवाहित मथुरा ,एक हादसे का शिकार हो कर एक टांग गवां बैठी तो पति ने त्याग दिया और मायके में रहने लगी। जहाँ उनके पति ने दूसरा विवाह कर के नई दुनिया बसा ली वहीँ मथुरा ने भी अपने ही गाँव में अपनी गुरु के माध्यम से ईश्वर से प्रीत जोड़ कर एक नई दुनिया में खो गयी।
कुछ साल बाद उनके पति को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ तो किसी ने उसको याद करवाया कि हो सकता है ये मथुरा का श्राप हो और मैं भी मानती हूँ कि होता भी क्यूँ नहीं जिस के साथ सुख -दुःख निभाने का वादा किया था। उसको मुश्किल में अकेला छोड़ दिया।
तब उनके पति को भी लगा और सपत्नीक माफ़ी मांगने आया। तब तक मथुरा हर मोह माया से मुक्त थी और उनको ना केवल माफ़ी दी और आशीर्वाद भी दिया।
बाद में जब बेटा हुआ तो वह ,बेटे को भी आशीर्वाद दिलवाने लाया और कहा कि वह उनके गाँव में आ कर रहे और वह उनके लिए एक आश्रम का निर्माण भी करवा देगा पर उन्होंने मन कर दिया के जो गलियां छोड़ दी वहां पर अब बसेरा नहीं होगा। लेकिन उनके पति एक पत्नी के तो गुनहगार तो थे ही। उन्होंने एक मासूम ह्रदय को तो दुखाया ही था। अपने अंतिम समय में बहुत ही नारकीय यातना झेल कर गए है वे ...!
जब मैं उसने पहली बार मिली तो उन्होंने मुझे औरतो की तीन श्रेणी समझाई कि "औरते तीन तरह की होती है " शंखिनी , हंसिनी और डंकिनी "
'हंसिनी '.. वह होती है जो कि हंसमुख तो होती ही है और हंस की तरह होती है जो मोती चुनती ही है।
'शंखिनी'... वह जो दिखावे में कुछ और होती है अंदर से कुछ और होती है और
'डंकिनी '.....वह जो हर बात में डंक सा मारती रहती है सामने वाले के गले पड़ कर बोलती है।
वो बोली कि ये तुम्हें देखना है कि कैसे औरत बनना है ,तो मैंने तो हमेशा हंसिनी बनने का प्रयास ही किया है अब मुझे नहीं पता कि मैं इसमें कामयाब हुई या नहीं .............:)
एक और बात जो मुझे उनकी पसंद आयी, वो कहते है नारी को अपने शरीर की सुरक्षा करनी ही चाहिए हमेशा सावधान रहना चाहिए।
मैं एक बार उनके आश्रम गयी तो उन्होंने स्वयं चाय बना कर पिलाई और साथ में बिस्किट्स भी खिलाये ,अपना काम वे खुद ही करती थी। एक पैर होने के बावजूद किसी की भी सहायता नहीं लेती थी। दिन में आश्रम में रहती थी पर शाम होते ही अपने मायके के परिवार में चली जाती है। उनका मानना था कि आखिर उनका शरीर नारी का ही है तो उसकी रक्षा करनी ही होगी तभी वह घर चली जाती थी। आत्मा शुद्ध होती है उसे कोई रोग नहीं छू सकता लेकिन यह जो हमारा शरीर है इसे कर्मो के अनुसार व्याधियां झेलनी ही होती है। महाराज जी भी मधुमेह और उच्च रक्तचाप से ग्रसित थे। यही बीमारियां उनके शरीर के अंत का कारण बनी। शरीर का अंत ही होता है आत्मा का नहीं। वो आज भी हमारे आस -पास ही मौजूद है। आज-कल जहाँ ढोंगी साधू वेशधारी चहुँ ओर मिल जायेंगे वहीँ मेरी गुरु महाराज मथुरा बाई जैसे पवित्र आत्माएं भी मिलेगी जिनको अपने प्रचार कि कोई जरूरत ही नहीं हुई। ईश्वर करे हमें उनका आशीर्वाद सदैव मिलता रहे।
उपासना जी मैं भी एक सच्ची पत्नी और अच्छी माँ बनाने का आशीर्वाद चाहती हूँ महराज जी से .....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पूर्णिमा जी ............,आपने कहा और मिल भी गया उनका आशीर्वाद आपको ....:))
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