भारत जैसे कृषि प्रदान देश में ,किसानो की जैसी दुर्दशा है वैसी कही भी नहीं है ,क्या किसी ने सोचा है की ऐसा क्यूँ है .........क्यूँ की हमारा किसान अनपढ़ है ,और अनपढ़ इंसान दिशाहीन ही तो होता है ,उसे कैसे ही हांक लो ,शिक्षा के बिना जागरूक कैसे होगा वह ......
नहीं तो कभी कोई वस्तु का उत्पादन इतना कम होता है कि उसकी महंगाई हो जाती है और कभी इतना ज्यादा कि सड़कों पर फेंकनी पड़ती है , क्या ये एक भेड़ चाल सी नहीं लगती किसी को ! क्यूँ कि वो सोचता है कि पिछली बार इस वस्तु कि मांग ज्यादा थी तो वह भी इस वर्ष ये ही अपने खेत उगाएगा .......और फिर दाम गिर जाता है तो ......!!!
एक अनपढ़ किसान अपने संतानों को भी पढ़ने में रूचि नहीं दिखाता वो कहता है कि आखिर जाना तो खेत ही है ,और पढ़ा लिखा किसान खेतों की तरफ जाना नहीं चाहता क्यूँ की उसे शहर की सुख -सुविधाएँ भाती है ,अब सोचने वाली बात ये है कि करोड़ों कि भूमि का मालिक कुछ हजारों के लिए दूसरों की चाकरी करता है ,वह अपने खेत में नए प्रयोग भी तो कर सकता है और उत्पादन को बढ़ा कर देश की अर्थ -व्यवस्था में सुधार ला सकता है ,पर हमें तो आदत है की बस सरकार को कोसा जाये ,और कोस कर अपना फ़र्ज़ पूरा कर लिया जाये कि ये सरकार किसानो की नहीं है ,..........,अब इसमें सरकार भी क्या करेगी वह तो योजनायें ही लागू करेगी और अनपढ़ किसान को मालुम ही नहीं होगा की क्या उसके लिए अच्छा है तो फिर तो कुछ भी नहीं होगा .....किसानी की खून -पसीने की कमाई ऐसे ही सड़कों पर गिराई जाएगी .......
सच कहा उपासना जी ........पढने लिखने के बाद भी अगर नौजवान कृषि की और भी ध्यान दें तो समस्या किसी हद तक सुलझ सकती है ....वैसे हरियाणा और पंजाब काफी खुशहाल राज्य रहे हैं पर आज कल वहां भी किसान आत्महत्या पर उतारू हैं .......दुखद है हमारे कृषि प्रधान देश का ये पहलू.....
जवाब देंहटाएंपिछले दिनों पढ़ते रहे ..आलू किसानो की समस्या ..
sach hai ki kisan ka kewal bhagwan mailk hai
जवाब देंहटाएंyadi waha khati karna chod de to kai beroggar ho
jayange.
Saath hi apni majdoori ka hisab lagaye to kuch
nahi bachta kewal roti .
बहुत शुक्रिया जी ..........
जवाब देंहटाएं