दादी रोज मंदिर जाती और अपने परिवार की खुशियाँ , सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना कर आती। और सोचती कि प्रभु से माँगना क्या ! उसको तो सब पता ही है।
लेकिन कल से सोच में डूबी है। कल जब वे रोज़ की तरह दोपहर में धार्मिक चैनल पर प्रसारित होती भागवत कथा सुन रही थी तो उसमें , कथा वाचक बोल रहे थे , " एक गृहस्थ को ईश्वर की पूजा सकाम भाव से करनी चाहिए। जैसे , क्या आपको मालूम भी होता है कि आपके बच्चे को कब क्या चाहिए ! वह भी तो बोल कर बताता है ; उसे यह चाहिए या वह चाहिए ! तो वैसे ही प्रभु को क्या मालूम कि आपको कब -क्या चाहिए ! उसके सामने तो सारा ब्रह्माण्ड होता है !"
दादी को भी बात जँचती सी लगी।
सोच में पड़ी बुदबुदाने लगी , " तभी मैं सोचूं , मेरे घर में इतनी परेशानियां क्यों है ! बेटा परेशान , पोती की शादी नहीं हो रही , पोते को नौकरी नहीं मिल रही ! यह तो भगवान से कभी माँगा ही नहीं ! ठीक है भई , आज ही लो ! इतने दिन हो गए मंदिर जाते हुए , अब तो प्रभु मेरी भी पुकार सुनेंगे ही। मेरी मन्नत भी सुनेगे और इच्छा-पूर्ण होगी ! "
उत्साह से पूजा की टोकरी तैयार की और मंदिर चल दी।
मंदिर का सुवासित वातावरण और बजते घंटे दादी को हमेशा की तरह बहुत सुहा रहे थे। सोमवार होने के कारण कुछ ज्यादा ही भीड़ थी। उनको लगा की उनकी बारी आने में अभी समय है तो वे एक कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
सभी आने-जाने वाले भक्तों का जायजा लेने लगी।
सोच रही थी ," संसार में कितना दुःख है , मंदिर में आने वाले सभी अपनी आँखे बंद कर के ,अपना-अपना दुःख भगवान को सुना रहे हैं ! क्या किसी को भगवान की सुन्दर -मुस्कुराती हुई मूर्ति नहीं दिख रही ? सब आंखे मूंदे हुए अपना ही राग अलाप रहे हैं !यह तो सभी जानते ही हैं कि सुख- दुःख तो हमारे कर्म फल हैं। मंदिर तो मन की शांति खोजने का तो साधन है फिर यहाँ क्यों अशांति फैलाई जाये।एक बार मुस्कराती मूरत को मन में बसा ले तो शायद कोई हल मिल भी जाये। अरे ! जब प्रभु सारे ब्रह्माण्ड का दुःख हँस कर झेल रहे हैं तो इंसान ऐसा क्यों नहीं करता ! " जोर से बजे घण्टे ने दादी की तन्द्रा भंग की तो उनको लगा कि अब उनकी बरी आ जाएगी।
बारी आने पर दादी ने भी पूजा की और बोली , " हे प्रभु तेरे द्वार आने वाले हर एक की इच्छा पूर्ण करना। "
और फिर दादी अपने घर लौट गई।
लेकिन कल से सोच में डूबी है। कल जब वे रोज़ की तरह दोपहर में धार्मिक चैनल पर प्रसारित होती भागवत कथा सुन रही थी तो उसमें , कथा वाचक बोल रहे थे , " एक गृहस्थ को ईश्वर की पूजा सकाम भाव से करनी चाहिए। जैसे , क्या आपको मालूम भी होता है कि आपके बच्चे को कब क्या चाहिए ! वह भी तो बोल कर बताता है ; उसे यह चाहिए या वह चाहिए ! तो वैसे ही प्रभु को क्या मालूम कि आपको कब -क्या चाहिए ! उसके सामने तो सारा ब्रह्माण्ड होता है !"
दादी को भी बात जँचती सी लगी।
सोच में पड़ी बुदबुदाने लगी , " तभी मैं सोचूं , मेरे घर में इतनी परेशानियां क्यों है ! बेटा परेशान , पोती की शादी नहीं हो रही , पोते को नौकरी नहीं मिल रही ! यह तो भगवान से कभी माँगा ही नहीं ! ठीक है भई , आज ही लो ! इतने दिन हो गए मंदिर जाते हुए , अब तो प्रभु मेरी भी पुकार सुनेंगे ही। मेरी मन्नत भी सुनेगे और इच्छा-पूर्ण होगी ! "
उत्साह से पूजा की टोकरी तैयार की और मंदिर चल दी।
मंदिर का सुवासित वातावरण और बजते घंटे दादी को हमेशा की तरह बहुत सुहा रहे थे। सोमवार होने के कारण कुछ ज्यादा ही भीड़ थी। उनको लगा की उनकी बारी आने में अभी समय है तो वे एक कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
सभी आने-जाने वाले भक्तों का जायजा लेने लगी।
सोच रही थी ," संसार में कितना दुःख है , मंदिर में आने वाले सभी अपनी आँखे बंद कर के ,अपना-अपना दुःख भगवान को सुना रहे हैं ! क्या किसी को भगवान की सुन्दर -मुस्कुराती हुई मूर्ति नहीं दिख रही ? सब आंखे मूंदे हुए अपना ही राग अलाप रहे हैं !यह तो सभी जानते ही हैं कि सुख- दुःख तो हमारे कर्म फल हैं। मंदिर तो मन की शांति खोजने का तो साधन है फिर यहाँ क्यों अशांति फैलाई जाये।एक बार मुस्कराती मूरत को मन में बसा ले तो शायद कोई हल मिल भी जाये। अरे ! जब प्रभु सारे ब्रह्माण्ड का दुःख हँस कर झेल रहे हैं तो इंसान ऐसा क्यों नहीं करता ! " जोर से बजे घण्टे ने दादी की तन्द्रा भंग की तो उनको लगा कि अब उनकी बरी आ जाएगी।
बारी आने पर दादी ने भी पूजा की और बोली , " हे प्रभु तेरे द्वार आने वाले हर एक की इच्छा पूर्ण करना। "
और फिर दादी अपने घर लौट गई।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-08-2018) को "सिमट गया संसार" (चर्चा अंक-3068) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत शुक्रिया जी
हटाएंबहुत शुक्रिया जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर 👌 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंएक जगह बरी को बारी कर लें।
जवाब देंहटाएंसुंदर
Sunder kahani
जवाब देंहटाएंसुंदर लेखन।
जवाब देंहटाएंपुराने दिनों की यादो में डुबो दिया।
सुंदर लेखन उपासना जी
जवाब देंहटाएंअक्सर लेखक अपनी पुस्तकों को बज़ट के अभाव में प्रकाशित नहीं करा पाते है। कई बार प्रकाशक की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते है। जिस कारण उनकी पांडुलिपी अप्रकाशित ही रह जाती है। ऐसी कई समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हम आपके लिए लाएं है स्पेशल स्वयं प्रकाशन योजना। इस योजना को इस प्रकार तैयार किया गया है कि लेखक पर आर्थिक बोझ न पड़े और साथ ही लेखक को उचित रॉयल्टी भी मिले। हमारा प्रयास है कि हम लेखकों का अधिक से अधिक सहयोग करें।
जवाब देंहटाएंअधिक जानकारी के लिए विजिट करें - https://www.prachidigital.in/special-offers/