जब से बहेलिये ने चिड़िया को अपना कर देख भाल करने का फैसला किया है ; तभी से चिड़िया सहमी हुई तो थी ही ,लेकिन में विचारमग्न भी थी ।वह कैसे भूल जाती बहेलिये का अत्याचार -दुराचार । उसने ना केवल उसके 'पर' नोच कर उसे लहुलुहान किया बल्कि उसके तन और आत्मा को भी कुचल दिया था।
अब फैसला चिड़िया को करना था । उसके पिंजरा लिए सामने बहेलिया था । " मेरे परों में अब भी हौसलों की उड़ान है !" कहते हुए उसने खुले आसमान में उड़ान भर ली ।
अशी ये एनिमेटेड-फिल्म देखते -देखते रो पड़ी। कुछ महीने पहले उसको भी चिड़िया की तरह ही बहेलिये ने नोचा था। और बहेलिये ने अपना बचाव करने लिए उस से विवाह का प्रस्ताव रख दिया था। उसके फैसले का इंतज़ार बाहर किया जा रहा था। यह एनिमेटेड फिल्म देख कर अशी को भी बहुत हौसला मिला।
सोचने लगी , " छोटी सी चिड़िया के माध्यम से कितनी अच्छी बात बताई है। परों में हौसला या आत्मबल खुद में होना चाहिए। किसी का सहारा क्यों लेना। और वह भी एक आततायी का ! हर एक में एक आत्मसम्मान और स्वभिमान तो होता ही है। "
उसने कमरे से बाहर आकर बहेलिये के प्रस्ताव पर इंकार कर दिया।
उपासना सियाग
उपासना सियाग
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसही में उपासना जी स्वयं का आत्मबल और आत्मसम्मान ही सबसे महत्वपूर्ण है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेरक रचना
बहुत ही सुन्दर और हृदय स्पर्शी, चिड़िया के माध्य्म से मिला आत्मबल. ..
जवाब देंहटाएंसादर
सचमुच हौसले की उड़ान।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सुंदर।