मेघा की आँखे बरसना तो चाह रही थी पर संयमित रहने का दिखावा कर रही थी | कुछ देर पहले की बातें कानों में गूंज रही है |
" यह क्या आज टिफिन में परांठे -आचार ! और माँ को सिर्फ खिचड़ी ? "
" हाँ , आज उठने में जरा देर हो गई तो यह सब ही बना पाई | "
" तो जल्दी उठा करो ना ... ! " रजत भड़क कर बोला
" अरे जाने दे बेटा ! सारा दिन भाग-दौड़ में थक जाती है !"
मांजी, बेटे के सामने तो अच्छी बन रही थी लेकिन मेघा को देख कर बड़बड़ाने लगी , " छह महीने हुए है शादी को और रंग दिखाने लगी , बना के रख दी खिचड़ी , खा लो भई... हुँह !"
कॉलेज के आगे बस रुकी | वह मन को संयत कर ,अनमनी सी आगे बढ़ी कि लॉन में लगे गमले का पौधा कुछ मुरझाया सा खड़ा था | पास ही खड़े माली से पूछा," भैया इस पौधे को क्या हुआ ! शनिवार को तो बहुत खिला-खिला था ! और इसे लॉन से उठा कर यहाँ क्यों रख दिया ? "
" वो क्या है कि मैडम जी ... यह धरती में जड़ें फैलाने लगा था ! "
गुरुवार, 2 अगस्त 2018
द्विजा..
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-08-2018) को "रोटियाँ हैं खाने और खिलाने की नहीं हैं" (चर्चा अंक-3053) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, चैन पाने का तरीका - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंSanchaip mei bahut kuch keh diya.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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