बंद दरवाज़े के आगे ठिठक गयी रूमा।
" अरे ! यह तो वही दरवाज़ा , जगह है , जो मैं रोज़ सपने में देखती हूँ। अहा ! वही महल !! "
तभी दरवाज़ा खुला। एक दरबान अंदर से बाहर आया और अदब से झुक कर रूमा से बोला , " आइये राजकुमारी जी आपका स्वागत है। "
वह रोमंचित सी अंदर चली। बहुत शानदार महल दूर से ही नज़र आ रहा था। सुन्दर सा बगीचा था। एक तरफ मंदिर था। वह मंदिर की तरफ बढ़ी। अपने आराध्य को सामने पा कर हाथ जुड़ गए और आँखे मुंद गई। बहुत सारी घंटियां बज़ रही थी वहां। इतनी तेज़ कि जैसे कान के पास बज़ रही हो। उसने घबराकर आँख खोली तो सड़क पर रिक्शेवाला घंटी बजा रहा था। चिल्ला कर बोला , " ओ मेडम , घर वालों को अलविदा बोल कर आयी हो क्या ?"
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, नौशेरा का शेर और खालूबार का परमवीर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंखुली आँखों से सपना देखना खतरनाक हैं लेकिन सपनो पर किसी का जोर नहीं चलता वह तो आ ही जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया