पुराने बक्से में झाँका तो बहुत कुछ पुराना सामान था। ये सामान पुराना तो था लेकिन कनिका की यादें नई कर गया। एक डिबिया में एक अंगूठी थी। जिस पर यीशु और मरियम की तस्वीर थी। आयरिश ने बहुत प्यार से दी थी उसे। विवाह के बाद जब एक बार ऊँगली में पहनी तो पति देव ने कहा सोने कि है क्या ये ! वह हंस कर बोल पड़ी थी कि नहीं ये तो प्लेटिनम से भी महंगी है।
यादें कभी पुरानी कब हुई है भला !नए युग में भी ख़त की महत्ता कैसे भूली जा सकती है। सोचती हुई कनिका ने बक्से में पड़े पुराने खतों का बंडल उठा लिया। मेज़ पर रख कर देखने लगी तो हल्की सी खांसी आ गई। उसे डस्ट -माइट्स से एलर्जी जो है। पर बेपरवाह हो खतों को सामने बिखेर लिया। नज़र का चश्मा लगा कर पढ़ने लगी। और पहुँच गई अपने होस्टल के दिनों में।भूल गई सब कुछ याद रहा तो अपना गुज़रा ज़माना जो एक -एक कर के खतों से बाहर निकल कर उसके आस-पास बह रहा था। कनिका भाव-विभोर हो रही थी कि ये ख़त ही हैं जिन्होंने उसे अतीत कि खूबसूरत वादियों में पहुंचा दिया। " टन -टन " की आवाज़ पास के मंदिर से आई तो कनिका की तन्द्रा भंग हुई। ख़तों में सिमटी यादों को सहेज़ कर फिर से रख दिया।
~ उपासना सियाग ~
वक्त गुजर जाता है लेकिन खत, तस्वीरों में बंद यादें हमेशा ताज़ी रहती हैं
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, स्कूली जीवन और बॉलीवुड के गीत - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 17 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंNice writing!!!
जवाब देंहटाएंhttp://jivanmantra4u.blogspot.in
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