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मंगलवार, 24 मार्च 2015

वह छिपकली की पूंछ थी....!

 

     घंटी की आवाज़ सुन कर  शिखा गैस बंद कर के दरवाज़े की ओर लपकी। कोरियर वाला था। अंदर पहुंचे , उससे पहले ही माँ की तकलीफ भरी आवाज़ सुन कर चौंक पड़ी। माँ की आवाज़ ऐसी थी जैसे उनके साथ बहुत छल किया जा रहा हो। बेचारगी वाले भाव , भरी आँखे जरा सी सिकोड़ कर कुछ गला भी भर्रा गया जैसे !
   " शिखा , मैंने कहा था बेटा कि मेरी सब्जी में प्याज़ मत डाल  देना , मेरा नवरात्री का व्रत है , फिर भी तूने एक टुकड़ा डाल ही दिया !! "
     " क्या कह रहे हो माँ जी ?  मैं ऐसा क्यों करुँगी ! आपका व्रत है तो प्याज़ डाल कर मैं पाप की भागीदार क्यों बनूँगी ?"
 " लेकिन मैंने देखा है !  आओ दिखाती हूँ !! "
  " चलिए दिखाइए , हो ही नहीं सकता ? "
शिखा ने देखा तो सच में एक गुलाबी रंग का टुकड़ा घी में तैर रहा था। वह हैरान थी कि उसने प्याज़ काटा  ही नहीं तो यह कहाँ से आया। यहाँ -वहां नज़र दौड़ाई तो कलेजा मुहं को आ गया। चिल्ला कर पीछे खड़ी सास के कस कर गले लग गई। काँप रही थी डर से।
     " अरी , क्या हुआ ? " माँ भी घबरा गई।
" माँ जी वह छिपकली की पूंछ है , प्याज़ नहीं ! जरा देखो तो स्टोव के उस तरफ छिपकली तड़फ रही है। मसालेदानी में भी देखो एक टुकड़ा पड़ा है। " वह अब भी काँप रही थी।
     शायद एक्जास्ट फैन से छिपकली कट कर गिर पड़ी थी। शिखा कई दिन तक सकते में रही कि अगर बेध्यानी में वह माँ को ऐसी सब्जी खिला देती तो !!

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