किशोर बहुत परेशान है श्यामा की नाराज़गी से। होली के दिन मायके से ले आया इसलिए वह मुहँ फुलाये घूम रही है। बात ही नहीं सुन रही है। वह भी क्या करता दादी ने एक दम से फरमान जारी कर दिया कि होली पूजन में बहू भी होनी चाहिए। उसका ससुराल ज्यादा दूर नहीं है। बस से जाओ तो दो घंटे ही लगते हैं।
श्यामा ने तो उसे देखते ही मुहं फुला लिया था। सारे राह बोली ही नहीं बल्कि चुप -चुप आंसू बहा रही थी। पूजा में भी चुप से लग रही थी। उदास सी घूंघट में होली को परिक्रमा देती हुई को काकी सास और जेठानी की आवाज़ सुन रही थी कि बेचारी को बेकार ही में त्यौहार पर बुलवा लिया। वह जल्दी से आँगन की तरफ चली। वहां परेशान सा किशोर अकेला ही खड़ा था।
" श्यामा , मुझे माफ़ कर दो ! मुझे तुम्हें आज के दिन नहीं लाना चाहिए था मगर मैं मज़.....! "
" पंद्रह दिन का बोल कर तू महीने बाद क्यूँ आया रे !! " श्यामा ने घूंघट पलट कर तैश में जवाब दिया।
बहुत सुंदर लघु कथा.
जवाब देंहटाएंहो ली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-03-2015) को "होली हो ली" { चर्चा अंक-1911 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर...लाज़वाब अप्रत्याशित अंत..शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंसुन्दर.....
जवाब देंहटाएंहोली की मंगलकामनाएं!