नन्ही चीनू ने खिड़की से बाहर उड़ती -फुदकती चिड़िया को देखा तो मचल पड़ी।
" माँ , मुझे भी चिड़िया होना है ! "
" क्यों चिड़िया होना है ? "
" चिड़िया कितनी आज़ादी से घूमती है , अपनी मर्जी से कहीं भी उड़ जाती है ! मैं कहाँ घूम पाती हूँ ! हर समय तुम मेरे इर्द गिर्द ही रहती हो ! "
" मैं नहीं चाहती कि तुम चिड़िया बनो और एक दिन बहेलिये के पिंजरे में जा फंसो। ईश्वर ने तुम्हें नारी रूप दे कर भेजा है तो कुछ सोच कर ही भेजा होगा। उसकी इच्छा का सम्मान करो !इतनी मज़बूत बनो कि कोई नारी चिड़िया होने की ना सोचे ! "
नन्ही चीनू माँ के गले लगी कुछ समझी ,कुछ नहीं समझी। लेकिन माँ की आँखों में एक दृढ निश्चय था।
" माँ , मुझे भी चिड़िया होना है ! "
" क्यों चिड़िया होना है ? "
" चिड़िया कितनी आज़ादी से घूमती है , अपनी मर्जी से कहीं भी उड़ जाती है ! मैं कहाँ घूम पाती हूँ ! हर समय तुम मेरे इर्द गिर्द ही रहती हो ! "
" मैं नहीं चाहती कि तुम चिड़िया बनो और एक दिन बहेलिये के पिंजरे में जा फंसो। ईश्वर ने तुम्हें नारी रूप दे कर भेजा है तो कुछ सोच कर ही भेजा होगा। उसकी इच्छा का सम्मान करो !इतनी मज़बूत बनो कि कोई नारी चिड़िया होने की ना सोचे ! "
नन्ही चीनू माँ के गले लगी कुछ समझी ,कुछ नहीं समझी। लेकिन माँ की आँखों में एक दृढ निश्चय था।
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन, बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित और सटीक लघुकथा ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं"इतनी मजबूत बनो कि कोई नारी चिड़िया होने की न सोचे।" एक ही वाक्य में कितनी गहरी बात। सारगर्भित आलेख आदरणीया।
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