लेखिका जी के चेहरे पर एक रंग आ रहा था , एक रंग जा रहा था। बहुत आवेश में थी और कुछ कहते नहीं बन रहा था।
कारण !
अभी -अभी उनकी ननद का फोन आया था कि उसे भी पिता की जायदाद से हिस्सा चाहिए। ननद की इतनी हिम्मत कैसे हुई यह सब कहने को ! सोच कर ही गुस्सा आ रहा था।
पानी पीने उठी तो सामने के मेज पर रखे अखबार में उनका ताज़ा तरीन लेख ," बेटियां भी पिता की जायदाद में बराबर की हिस्सेदार होती है " जैसे उनको मुहँ चिढ़ा रहा हो। जल्दी से अख़बार को पलट के रख दिया गया।
कारण !
अभी -अभी उनकी ननद का फोन आया था कि उसे भी पिता की जायदाद से हिस्सा चाहिए। ननद की इतनी हिम्मत कैसे हुई यह सब कहने को ! सोच कर ही गुस्सा आ रहा था।
पानी पीने उठी तो सामने के मेज पर रखे अखबार में उनका ताज़ा तरीन लेख ," बेटियां भी पिता की जायदाद में बराबर की हिस्सेदार होती है " जैसे उनको मुहँ चिढ़ा रहा हो। जल्दी से अख़बार को पलट के रख दिया गया।
हकीकत से रूबरू कराती रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : ओऽम नमः सिद्धम
Bhai ki toh baat hi chorhiye.hamare samaaj mei pita bhi toh beton ko jaydaad ka asli haqdaar samajhte hain.
जवाब देंहटाएंbahut shukriya ji
हटाएं