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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

बदलता रंग

    लेखिका जी के चेहरे पर एक रंग आ रहा था , एक रंग जा रहा था। बहुत आवेश में थी और कुछ कहते नहीं बन रहा था।
कारण !
   अभी -अभी उनकी ननद का फोन आया था कि उसे भी पिता की  जायदाद से हिस्सा चाहिए। ननद की इतनी हिम्मत कैसे हुई यह सब कहने को ! सोच कर ही गुस्सा आ रहा था।
      पानी पीने उठी तो सामने के मेज  पर रखे अखबार में उनका ताज़ा तरीन लेख ," बेटियां भी पिता की जायदाद में बराबर की हिस्सेदार होती है " जैसे उनको  मुहँ चिढ़ा रहा हो। जल्दी से अख़बार को पलट के रख दिया गया। 

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