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शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

बहार की उम्मीद....



"ओह्ह !! आज फिर ये फूल पड़े है !! "
"कौन रखता है इनको ?"
 " पतझड़ के मौसम में बहार की किसको उम्मीद है !!"
 " इन पत्तों के साथ इन महकते फूलों को फेंकते मुझे बहुत दुःख सा होता है !!"बलबीर खुद से ही जैसे बात कर रहा हो।
 " बलबीर बेटे !! तुम दुखी ना हुआ करो , मेरी आशा को मैं रोज़ ताज़ा फूल ला देता हूँ। मेरी जीवन साथी आशा जो न हो कर भी यहाँ इन फूलों की महक लेने आ ही जाती है। "प्रकाश जी भावुक हुए जा रहे थे। 

6 टिप्‍पणियां:

  1. दिल के जज्बातों को उकेरती कथा साभार! उपासना जी!
    धरती की गोद

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  2. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-01-2015) को "बहार की उम्मीद...." (चर्चा-1855) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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