"ओह्ह !! आज फिर ये फूल पड़े है !! "
"कौन रखता है इनको ?"
" पतझड़ के मौसम में बहार की किसको उम्मीद है !!"
" इन पत्तों के साथ इन महकते फूलों को फेंकते मुझे बहुत दुःख सा होता है !!"बलबीर खुद से ही जैसे बात कर रहा हो।
" बलबीर बेटे !! तुम दुखी ना हुआ करो , मेरी आशा को मैं रोज़ ताज़ा फूल ला देता हूँ। मेरी जीवन साथी आशा जो न हो कर भी यहाँ इन फूलों की महक लेने आ ही जाती है। "प्रकाश जी भावुक हुए जा रहे थे।
दिल के जज्बातों को उकेरती कथा साभार! उपासना जी!
जवाब देंहटाएंधरती की गोद
सुन्दर ज़ज्बात
जवाब देंहटाएंSunder katha reply me tipanni dena PDA comment per nahi ho raha tha....
हटाएंसार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-01-2015) को "बहार की उम्मीद...." (चर्चा-1855) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जजबात.
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