निरुत्तर सवाल ...
कोमल अपने चिकने हाथ धोते -धोते रुक सी गयी। वह अभी दाल के लड्डू बना कर गर्म पानी से हाथ धोने वाशबेसिन के आगे खड़ी थी। लेकिन ध्यान सासू माँ की बातों में अटका हुआ था। बहुत आहत हुई है वह आज ...!
लड्डू के मिश्रण में जैसे ही चीनी मिलाने को हुई तो माँ ने हाथ रोक दिया और बोली , "जरा इसके दो हिस्से कर लो। एक हमारा यानि मेरा और तुम्हारे ससुर जी का और एक अंकुश का। अंकुश के लिए जरा कम चीनी का कर दो और हमारे लिए मीठा पूरा ही रखना बल्कि थोडा ज्यादा ही। तुम्हारे ससुर जी को मीठा तेज़ ही पसंद है।"
कोमल के मन में कहीं कुछ चुभ सा गया।
" और उसका हिस्सा ...!"
"मेहनत भी भी वही कर रही है और उसी का ही हिस्सा नहीं है ...! आज 20 बरस हो गए इस घर में आये हुए और उसका किसी भी चीज़ में हिस्सा नहीं है। क्या सास एक औरत नहीं होती जो दूसरी औरत के मन को नहीं समझती ?या बहू परायी ही रहती है सारी उम्र !या जब तक वह सास नहीं बन जाती तभी तक वह औरत रहती है ...? सास बनते ही क्या औरत , औरत नहीं रहती ?इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है ...! "
आंसू रोकते हुए हुए , हाथ पौंछते हुए अपने कमरे में बैठ गयी। मन में बहुत सारे सवाल थे लेकिन जवाब उसके पास नहीं थे।
कोमल अपने चिकने हाथ धोते -धोते रुक सी गयी। वह अभी दाल के लड्डू बना कर गर्म पानी से हाथ धोने वाशबेसिन के आगे खड़ी थी। लेकिन ध्यान सासू माँ की बातों में अटका हुआ था। बहुत आहत हुई है वह आज ...!
लड्डू के मिश्रण में जैसे ही चीनी मिलाने को हुई तो माँ ने हाथ रोक दिया और बोली , "जरा इसके दो हिस्से कर लो। एक हमारा यानि मेरा और तुम्हारे ससुर जी का और एक अंकुश का। अंकुश के लिए जरा कम चीनी का कर दो और हमारे लिए मीठा पूरा ही रखना बल्कि थोडा ज्यादा ही। तुम्हारे ससुर जी को मीठा तेज़ ही पसंद है।"
कोमल के मन में कहीं कुछ चुभ सा गया।
" और उसका हिस्सा ...!"
"मेहनत भी भी वही कर रही है और उसी का ही हिस्सा नहीं है ...! आज 20 बरस हो गए इस घर में आये हुए और उसका किसी भी चीज़ में हिस्सा नहीं है। क्या सास एक औरत नहीं होती जो दूसरी औरत के मन को नहीं समझती ?या बहू परायी ही रहती है सारी उम्र !या जब तक वह सास नहीं बन जाती तभी तक वह औरत रहती है ...? सास बनते ही क्या औरत , औरत नहीं रहती ?इतनी निष्ठुर कैसे हो सकती है ...! "
आंसू रोकते हुए हुए , हाथ पौंछते हुए अपने कमरे में बैठ गयी। मन में बहुत सारे सवाल थे लेकिन जवाब उसके पास नहीं थे।
इस का जवाब किसी के पास नही होता ....एक अनजाने घर को अनजाने लोगो को अपना मान लेती है औरत फिर भी उसका कोई हक नही होता सबसे बड़ी बात की एक औरत ही नही समझ पाती उसकी वेदना ,जिससे शायद उसे भी गुजरना पड़ा हो .....
जवाब देंहटाएंकम शब्दो मे सुंदर रचना ....
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंइन सवालों का जवाब कभी नहीं मिलेगा!
शायद यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहेगा..........
जवाब देंहटाएं:( saabne bhugta hota hain yeh swal
जवाब देंहटाएंsach hai aurat hi aurat ki taklif samjna nai chati hai to koi kya kar sakta hai..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...यह भाव हर औरत मे होता है जब वो सास बनती है , और हर औरत इसे झेलती है जब वो बहू बनती है । कुछ अपवाद छोड़ दे तो औरत के मन मे निज स्वार्थ की भावना जल्दी घर करती है ।
जवाब देंहटाएंसच तो यही है की आज कोई किसी के दर्द नहीं समझना चाहता ! हक़ तो बहुत दूर की बात है !!
जवाब देंहटाएंहो सके तो इस ब्लॉग पर भी पधारे
पोस्ट
Gift- Every Second of My life.
मार्मिक चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति | सवाल का जवाब मिले तो बताइयेगा | आभार
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत सुंदर रचना
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