रागिनी ने अपने बेटे विक्रम को बताया , वह आगरा जाने वाली है तो वह शरारत से मुस्करा उठा और बोला , " माँ , वहां पर अस्पताल बहुत अच्छा है ...!'
रागिनी थोडा चौंकी , क्यूंकि वह तो कोई और ही काम जा रही थी। बीमार तो नहीं थी वह।
बेटे के चेहरे को देख वह भी हंस पड़ी ," अच्छा मजाक है ...!"
शाम को पति से कहा जोकि शहर से बाहर थे।
वह भी बोल पड़े , " अच्छे से चेक करवा कर आना।"
इस बार रागिनी को बात चुभ सी गयी। सोचने लगी कि आधी से ज्यादा जिन्दगी घर - गृहस्थी में गुज़ार दी , कभी खुद के लिए सोचा भी नहीं।और अब भी जरुरी काम है तब ही जा रही हूँ फिर भी पागल करार दी जा रही हूँ।
बोल पड़ी , " आदरणीय पति जी , आपको और बच्चों को लगता है कि मैं पागल हूँ ...! तो जी हाँ ...! मैं थोड़ी पागल तो हूँ ! आप, बच्चों और अपनी गृहस्थी के लिए ...! जरा सोचिये अगर मेरा दिमाग ठीक हो कर सेट हो गया तो आप सब का क्या होगा। "
उधर से एक जोर से हंसी की आवाज़ गूंजी जिसमे ढेर सारा प्यार था।