रागिनी ने अपने बेटे विक्रम को बताया , वह आगरा जाने वाली है तो वह शरारत से मुस्करा उठा और बोला , " माँ , वहां पर अस्पताल बहुत अच्छा है ...!'
रागिनी थोडा चौंकी , क्यूंकि वह तो कोई और ही काम जा रही थी। बीमार तो नहीं थी वह।
बेटे के चेहरे को देख वह भी हंस पड़ी ," अच्छा मजाक है ...!"
शाम को पति से कहा जोकि शहर से बाहर थे।
वह भी बोल पड़े , " अच्छे से चेक करवा कर आना।"
इस बार रागिनी को बात चुभ सी गयी। सोचने लगी कि आधी से ज्यादा जिन्दगी घर - गृहस्थी में गुज़ार दी , कभी खुद के लिए सोचा भी नहीं।और अब भी जरुरी काम है तब ही जा रही हूँ फिर भी पागल करार दी जा रही हूँ।
बोल पड़ी , " आदरणीय पति जी , आपको और बच्चों को लगता है कि मैं पागल हूँ ...! तो जी हाँ ...! मैं थोड़ी पागल तो हूँ ! आप, बच्चों और अपनी गृहस्थी के लिए ...! जरा सोचिये अगर मेरा दिमाग ठीक हो कर सेट हो गया तो आप सब का क्या होगा। "
उधर से एक जोर से हंसी की आवाज़ गूंजी जिसमे ढेर सारा प्यार था।
उपासना जी, बहुत ही मार्मिक शब्दों ने बहुत कुछ कह दिया , मुझे पागल ही रहने दो , शायद ये तो कहानी के रूप मै आपने व्यक्त किया .. . लेकिन मेने तो ऐसी महिलाओं को नजदीक से बात करके अनुभव किया , जो मानसिक रूप से विछिप्त है , जिनको उनके सगे अपने ने ही त्याग दिया , लेकिन वो यहाँ अपनाघर संस्था मै जब मेरे से बात करती है , तो कहती है भैया मुझे घर जाना है , वहां मेरे बच्चे है मेरा आदमी है ,
जवाब देंहटाएंअशोक जी आपने सच कहा , और यही सच्चाई भी है ...
जवाब देंहटाएंपागलपन ही था तभी, रही युगों से जाग ।
जवाब देंहटाएंभूली अपने आप को, भाया भला सुहाग ।
भाया भला सुहाग, हमेशा चिंता कुल की ।
पड़ी अगर बीमार, समझ के हलकी फुलकी ।
दफ्तर चलते बने, जाय विद्यालय बचपन ।
अब पचपन की उम्र, चढ़ा पूरा पागलपन ।।
बहुत -बहुत शुक्रिया रविकर जी ....
हटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने ...
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत शुक्रिया सदा जी .......
हटाएंबहुत -बहुत शुक्रिया रविकर जी एक बार फिर से ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सटीक ...महिलाओं के लिए ...उपासना सखी
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत शुक्रिया सखी..........
हटाएंकभी कभी मज़ाक हवी हो जाता है सोच पर ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत शुक्रिया संगीता जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंदो दिनों से नेट नहीं चल रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। आज नेट की स्पीड ठीक आ गई और रविवार के लिए चर्चा भी शैड्यूल हो गई।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-12-2012) के चर्चा मंच-1060 (प्रथा की व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत -बहुत शुक्रिया जी
हटाएंbahut sahi kaha ji ..:)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया नीता जी
हटाएंयही तो गृहस्थी का सुख है जिससे हम सब रोज रू-ब-रु होते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया वंदना जी ....
हटाएंअच्छी रचना ! :)
जवाब देंहटाएंहम सब पागल इसी में खुश हैं..... :))
~सादर!!!
बहुत बहुत शुक्रिया अनीता जी.....
हटाएंBahut achhi rachna ...hum sab Apni Grahsthi m Pagal hi hai...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया मंजुल जी ....
हटाएंwah wah ....nishabd kar diya aapne
जवाब देंहटाएंहा हा हा , सच्ची में कम शब्दों में अधिक :)उपासना
जवाब देंहटाएंwow upasna bhut sunder likha hai
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