"पति -सेवा हर भारतीय नारी का धर्म है और ये हमारी संस्कृति भी है. पति की सेवा से, पति प्रसन्न हो कर कोई भी वरदान दे सकते हैं..."ये पंक्तियाँ 24 साल पहले मैंने एक किताब में पढ़ी थी और अब पिछले दिनों की एक घटना ने पुष्टि भी कर दी..
विवाह के बाद जब सभी मेहमान चले गए .घर में बस सासू-माँ ,ससुर जी ,देवर जी, पति देवऔर मैं ही थे .मेरा मन ही नहीं लगा. रह -रह कर मायका याद आ रहा था कहाँ तो वो घर जहाँ सारा दिन रौनक भरी हो जैसे जिन्दगी वहीँ बसती हो और कहाँ यहाँ हवेलीनुमा घर जहाँ कोई बोलता ही नहीं और अगर खुद से ही बात करो तो खुद की आवाज़ भी दूसरे दिन सुनायी दे ...!
ऐसे ही एक दिन घूमते -फिरते स्टोर में चली गयी और वहां पर रखी एक अलमारी खोल ली और उसमें जो देखा तो मुझे जैसे खज़ाना ही मिल गया ...!
विवाह के बाद जब सभी मेहमान चले गए .घर में बस सासू-माँ ,ससुर जी ,देवर जी, पति देवऔर मैं ही थे .मेरा मन ही नहीं लगा. रह -रह कर मायका याद आ रहा था कहाँ तो वो घर जहाँ सारा दिन रौनक भरी हो जैसे जिन्दगी वहीँ बसती हो और कहाँ यहाँ हवेलीनुमा घर जहाँ कोई बोलता ही नहीं और अगर खुद से ही बात करो तो खुद की आवाज़ भी दूसरे दिन सुनायी दे ...!
ऐसे ही एक दिन घूमते -फिरते स्टोर में चली गयी और वहां पर रखी एक अलमारी खोल ली और उसमें जो देखा तो मुझे जैसे खज़ाना ही मिल गया ...!
बहुत सारी किताबें पड़ी थी और मुझे क्या चाहिए था...! कई तरह की धार्मिक किताबें थी ,वहां मैंने "कल्याण "पत्रिका को भी देखा जो मुझे हमेशा से पसंद है. मेरी नज़र एक थोड़ी सी मोटी किताब पर पड़ी तो उत्सुकता वश उठा लिया ,उसका शीर्षक था 'स्त्री -शिक्षा '.
मैंने सोचा आज तो इसे ही पढ़ा जाये .उसमें एक स्त्री को क्या करना चाहिए कि घर -परिवार में सुख-शान्ति रहे . इस पुस्तक में एक स्त्री की कहानी थी .
" पुराने ज़माने की औरत थी(किताब मेरी सासू माँ के ज़माने की थी ) . उसे सभी काम हाथों से करना होता था ,तब सहायता के लिए कोई मशीन कहाँ होती थी . एक दिन वह स्त्री दोपहर में धान कूट रही थी पर उसका ध्यान था दूसरे कामों की तरफ भी कि इसके बाद कपडे़ धो कर सुखाने डालने है फिर पशुओं को चारा भी डालना है उसके हाथ और दिमाग एक साथ चल रहे थे..तभी उसके पति आ गए और एक गिलास पानी की मांग करके अपने कमरे की तरफ बढ़ गए और जब तक वह पानी ले कर पहुंची उसके पति को गहरी नींद आ चुकी थी . उसकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि उसे जगा कर पानी पिलाये या गिलास ही रख कर बाहर जा कर काम करे . बस खड़ी रही ना जाने कितनी देर ,बहुत देर बाद जब पति की आँख खुली तो उनको अहसास हुआ कि बेचारी पत्नी तो वहीं खड़ी है.पति बहुत प्रसन्न हो गए और सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया ,वह जिस भी काम को हाथ लगाएगी वही काम अपने आप ही हो जायेगा .....बाहर आ कर उसने देखा, उसका धान कुट चूका है कपडे़ भी सूख रहे हैं और पशुओं को चारा भी मिल गया ...!"
यह कहानी पढ़ कर मुझे बहुत ही अजीब लगा पर पति की आज्ञा पर चलना चाहिए ही ये शिक्षा तो ग्रहण कर ली मैंने उस किताब से ...
लेकिन मैंने उनकी सारी बातें मान-मान कर उन को बिगाड़ लिया. वे ठहरे पक्के मेहमान नवाज़ कोई भी मिल जाये तो बिना चाय के तो जाने ही नहीं देना और गाँव में जब गैस -सिलेंडर ख़त्म हो जाता तो चूल्हे पर चाय बनाने में मौत ही आ जाती पर पति की आज्ञा कैसे टाली जाती भला ,वरदान का मामला जो था पता नहीं कब पति जी प्रसन्न हो कर कृपा ही कर दें.
फिर शहर में आकर रहने लगे ,यहाँ भी उनकी आदतें कहाँ गयी. सुबह उठते ही घर से बाहर खड़े हो जायेंगे और जो भी परिचित जा रहा हो उसे ले कर आ जायेंगे चलो चाय तो पी कर ही जाना ..कोई अपनी कार में भी जा रहा हो तो उसे भी रुकवाकर चाय पिला कर ही भेजना और कोई ना मिले किसी दिन तो फोन कर के ही बुला लेते हैं कि उसके बहाने से उनको भी चाय मिल जाएगी. बहुत खीझ होती है जब कई बार सारा काम छोड़ कर चाय बनानी पड़ती है .थोडा़ सा भी मुँह बनाओ तो सुनना पड़ता है अच्छा जी, अब आपके घर कोई आये ही ना ...!
मैंने सोचा आज तो इसे ही पढ़ा जाये .उसमें एक स्त्री को क्या करना चाहिए कि घर -परिवार में सुख-शान्ति रहे . इस पुस्तक में एक स्त्री की कहानी थी .
" पुराने ज़माने की औरत थी(किताब मेरी सासू माँ के ज़माने की थी ) . उसे सभी काम हाथों से करना होता था ,तब सहायता के लिए कोई मशीन कहाँ होती थी . एक दिन वह स्त्री दोपहर में धान कूट रही थी पर उसका ध्यान था दूसरे कामों की तरफ भी कि इसके बाद कपडे़ धो कर सुखाने डालने है फिर पशुओं को चारा भी डालना है उसके हाथ और दिमाग एक साथ चल रहे थे..तभी उसके पति आ गए और एक गिलास पानी की मांग करके अपने कमरे की तरफ बढ़ गए और जब तक वह पानी ले कर पहुंची उसके पति को गहरी नींद आ चुकी थी . उसकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि उसे जगा कर पानी पिलाये या गिलास ही रख कर बाहर जा कर काम करे . बस खड़ी रही ना जाने कितनी देर ,बहुत देर बाद जब पति की आँख खुली तो उनको अहसास हुआ कि बेचारी पत्नी तो वहीं खड़ी है.पति बहुत प्रसन्न हो गए और सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया ,वह जिस भी काम को हाथ लगाएगी वही काम अपने आप ही हो जायेगा .....बाहर आ कर उसने देखा, उसका धान कुट चूका है कपडे़ भी सूख रहे हैं और पशुओं को चारा भी मिल गया ...!"
यह कहानी पढ़ कर मुझे बहुत ही अजीब लगा पर पति की आज्ञा पर चलना चाहिए ही ये शिक्षा तो ग्रहण कर ली मैंने उस किताब से ...
लेकिन मैंने उनकी सारी बातें मान-मान कर उन को बिगाड़ लिया. वे ठहरे पक्के मेहमान नवाज़ कोई भी मिल जाये तो बिना चाय के तो जाने ही नहीं देना और गाँव में जब गैस -सिलेंडर ख़त्म हो जाता तो चूल्हे पर चाय बनाने में मौत ही आ जाती पर पति की आज्ञा कैसे टाली जाती भला ,वरदान का मामला जो था पता नहीं कब पति जी प्रसन्न हो कर कृपा ही कर दें.
फिर शहर में आकर रहने लगे ,यहाँ भी उनकी आदतें कहाँ गयी. सुबह उठते ही घर से बाहर खड़े हो जायेंगे और जो भी परिचित जा रहा हो उसे ले कर आ जायेंगे चलो चाय तो पी कर ही जाना ..कोई अपनी कार में भी जा रहा हो तो उसे भी रुकवाकर चाय पिला कर ही भेजना और कोई ना मिले किसी दिन तो फोन कर के ही बुला लेते हैं कि उसके बहाने से उनको भी चाय मिल जाएगी. बहुत खीझ होती है जब कई बार सारा काम छोड़ कर चाय बनानी पड़ती है .थोडा़ सा भी मुँह बनाओ तो सुनना पड़ता है अच्छा जी, अब आपके घर कोई आये ही ना ...!
जब चाय की फरमाइश करनी हो तो बहुत मीठा स्वर गूंजता है तो लगता है आ गयी चाय की फरमाइश तो मैं भी कह देती हूँ "मैं आज घर में नहीं हूँ ..! फिर मीठा सा स्वर गूंजता है ये आवाज़ जो सुनायी दे रही है वो किसकी है ....तो मेरा जवाब होता है "आज मैं 'मिस्टर-इण्डिया ' हूँ ..."वे हंस पड़ते हैं कि
चलो बहुत मजाक हो गया चाय बनाओ ...!
लेकिन मैं तो पति सेवा कि बात कर रही थी और उनकी शिकायत ले बैठी ;तो ऐसे हुआ कि कुछ दिन पहले मैंने किट्टी पार्टी का आयोज़न करना था , जो मेरा रसोई का सहायक था वो भी छुट्टी पर चला गया और ऊपर के काम करने वाली बाई क़ी भी माँ गुज़र गयी ...
चलो बहुत मजाक हो गया चाय बनाओ ...!
लेकिन मैं तो पति सेवा कि बात कर रही थी और उनकी शिकायत ले बैठी ;तो ऐसे हुआ कि कुछ दिन पहले मैंने किट्टी पार्टी का आयोज़न करना था , जो मेरा रसोई का सहायक था वो भी छुट्टी पर चला गया और ऊपर के काम करने वाली बाई क़ी भी माँ गुज़र गयी ...
अब क्या करूँ उसे भी कुछ कहा नहीं जा सकता .....ये तो उसे भी पता था कि मुझे पार्टी करनी है तो उसका फोन आ गया के वह आ जाएगी पार्टी वाले दिन ,मुझे भी राहत मिली पर एक दिन पहले फोन उसका फोन आ गया , वो नहीं आ सकती क्यूँ कि उसकी तबियत खराब हो गयी ...मुझे तो पार्टी के बाद के बर्तन दिखाई दे रहे थे.हाय वो कौन करेगा ...! जो सफाई करने वाला था वो भी जवाब दे गया कि उसे बाहर जाना है ....मेरा तो पार्टी करने का उत्साह ही भंग हो गया और सहली को फोन किया कि तू कुछ कर नहीं तो मुझे नींद ही नहीं आएगी और अच्छे से सोउंगी नहीं तो मेरी आँखों के नीचे डार्क सर्कल ही हो जायेंगे ! वह जोर से हंस पड़ी और बोली कोई बात नहीं तू चिंता मत कर सो जा ,मेरी वाली बाई भेज दूंगी .....!
अगले दिन सुबह बहुत काम था सोचा पहले क्या करूँ ,तभी पति देव एक बैग ले कर आये और बोले "इसमें कुछ मेरे कपडे़ हैं जो ठीक कर दो, ले तो कल ही आया था और दुकान वाला ठीक भी कर के दे रहा था पर तुम तो सिलाई में माहिर हो तो सोचा कि तुम से ही ठीक करवाऊंगा "
अगले दिन सुबह बहुत काम था सोचा पहले क्या करूँ ,तभी पति देव एक बैग ले कर आये और बोले "इसमें कुछ मेरे कपडे़ हैं जो ठीक कर दो, ले तो कल ही आया था और दुकान वाला ठीक भी कर के दे रहा था पर तुम तो सिलाई में माहिर हो तो सोचा कि तुम से ही ठीक करवाऊंगा "
एक बार तो बहुत गुस्सा आया और तमक कर जवाब भी दे देती ,पर अगले दिन, उनको कई दिनों के लिए बाहर भी जाना था तो फिर मुझे अफ़सोस होता रहता उनको मैंने जवाब दे दिया .
बहुत इत्मीनान से उनका काम किया ,सभी कपडे सहेज कर रख दिया और सोचा ,चल अब लग जा काम आज तो 'मिस्टर-इण्डिया 'भी नहीं बना जा सकता ,ये सोच कर झाड़ू उठायी थी कि मेरी वाली बाई अपनी बेटी के साथ आती दिखी और झट से झाड़ू हाथ में ली और बोली "दीदी ;आपके काम के लिए तो मैं कहीं से भी आउंगी " तब मुझे वो किसी देव -दूत से कम नहीं लगी. और अचानक चौबीस साल पहले पढ़ी वरदान वाली कहानी याद आ गयी और लगा सचमुच पति की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है ...आज उनका वरदान मिल ही गया .
बहुत इत्मीनान से उनका काम किया ,सभी कपडे सहेज कर रख दिया और सोचा ,चल अब लग जा काम आज तो 'मिस्टर-इण्डिया 'भी नहीं बना जा सकता ,ये सोच कर झाड़ू उठायी थी कि मेरी वाली बाई अपनी बेटी के साथ आती दिखी और झट से झाड़ू हाथ में ली और बोली "दीदी ;आपके काम के लिए तो मैं कहीं से भी आउंगी " तब मुझे वो किसी देव -दूत से कम नहीं लगी. और अचानक चौबीस साल पहले पढ़ी वरदान वाली कहानी याद आ गयी और लगा सचमुच पति की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है ...आज उनका वरदान मिल ही गया .
उपासना जी ....की पति सेवा और मिली मेवा ......हाह...
जवाब देंहटाएंबहुत उचित लेख है आपका ...........
यहाँ एक बात कहूँ ..हम लोग आधुनिकता में बहुत सी बातों का मखौल बनाते हैं ...........लेकिन
हमारे यहाँ हर कायदा , हर फ़र्ज़ , हर वो बात जो हमें अच्छी नहीं लगती या गुलामी की ज़ंजीर सी जकड़ती है .....तर्क की कसौटी पर खरी उतरती है .......
में यहाँ अंध विश्वास का समर्थन नहीं करती या पति की जूती बनने का उपदेश नहीं दे रही पर .....'अगर 'पति धर्म 'शब्द है तो
कुछ है तो ख़ास है ..............बहुत अच्छा लिखा .आपने ......:)..
a few seconds ago · Like
waah sakhi.....mazak me kitni baate keh di or samjha bhi di sarlta se .....uttam lekh....
जवाब देंहटाएंबात तो गहन है
जवाब देंहटाएंहा हा हा , लेख क्या खूब लिखा तुमने उपासना ! .....
जवाब देंहटाएंha.ha.ha.ye bhi khoob rahi....khush rahne ko galib ye khayal bhi acchha hai....pati ka bag banaya to bayi saakshaat prakat ho gayi. aur aap khush.
जवाब देंहटाएंapke blog par pahli baar aana hua...iske liye aapka dhanywad jo aapne apna marg sujhaya mere blog tak aakar.
मेरी पत्नी के लिए बहुत ज़रूरी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आकर आपकी रचनात्मकता से वाकिफ होना एक नया अनुभव रहा और बहुत कुछ नया जानने को मिला .....हर पोस्ट पर टिप्पणी करना संभव नहीं .....समय आने पर देखते हैं .....आपका लेखन सशक्त है इसलिए इसे जारी रखें ...! अनवरत लेखन के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंSaral aur prabhaavshaali aalekh...
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा पोस्ट |उपासना जी ब्लॉग पर आने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक पोस्ट...यह बात सोलह आने सच है..
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