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शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

राम मुरदा है !

          कई बार शब्दों के हेर - फेर से भी गड़बड़ हो जाती है। हम चाहे कितनी भी हिन्दी में बात कर लें ; स्थानीय भाषा का समावेश हो ही जाता है। बड़ा बेटा अंशुमान जब सातवीं /आठवीं कक्षा में था तो उसने अपनी कक्षा में हुए  किस्से को सुनाया तो हँस कर लोट - पोट हो गए। 

        उसने बताया कि आज हिन्दी की कक्षा में , अध्यापिका जी ने अचानक ही टेस्ट ले लिया। कॉपी चैक करते हुए उन्होंने एक बच्चे का नाम पुकारा तो वह खड़ा हुआ। 

                 अध्यापिका जी हैरान से होते हुए , " यह क्या लिखा है ? "

               बच्चा , " मैडम , राम मुरदा है।  "

                         " राम मुर्दा है ! "

                     " हाँ जी मैम , राम मुरदा है ! "

                       " मुर्दा है ? "

                     " हाँ जी  मुरदा है ? " बच्चा नासमझी के भाव से अध्यापिका को देख रहा था। 

                   " कमाल है , वाक्यों में प्रयोग करने कहा गया था।  राम को किसान , मंत्री , ड्राइवर  आदि बनाना तो ठीक था लेकिन तुमने तो मुर्दा ही बना दिया !" कहते हुए  अध्यापिका ने बच्चे को नाराजगी से देखा। 

               " तुमको पता भी है , मुर्दा का क्या मतलब होता है ! "

            " हाँजी मैम ,  मुरदा का मतलब , कमजोर होता है....! "

      अब तो कक्षा में बच्चों समेत अध्यापिका जी की भी हंसी छूट गई थी। और मैं भी कभी -कभी बच्चों का बचपन याद करते हुए हँस लेती हूँ। 

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