Text selection Lock by Hindi Blog Tips

मंगलवार, 21 मई 2013

छोटा राजकुमार और रहस्यमयी तोता ( बाल कहानी )

वीरपुर एक बहुत बड़ा राज्य था। वहां के राजा सुमेर सिंह एक कुशल प्रशाशक थे। उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों की देखभाल के लिए मंत्रियों की व्यवस्था कर रखी थी। विशाल सेना थी। जिससे उनकी प्रजा को कोई दिक्कत का सामना ना करना पड़े।
जगह -जगह सरायों का निर्माण करवाया हुआ था। जिससे किसी बाहर  से आने वाले यात्री को परेशानी  का सामना न करना पड़े।
उनके राज्य में अपराधों की संख्या ना के बराबर थी , इसका मुख्य कारण था वहां पर कोई बेरोजगार नहीं था।और दूसरा  कारण था वहां की सशक्त न्याय व्यवस्था जिसके चलते अपराधियों को कड़ा  दंड मिलना।
लेकिन कुछ दिनों से राजा और उनके मंत्री बहुत परेशान  थे।
कारण...?
कारण था , राजा के आम बाग़ से , कई दिनों से आम चोरी हो रहे थे।और कोई सुराग भी नहीं मिल रहा था।राजा ने सभा बुलाई कि  क्या किया जाये...! उसके राज्य में ऐसी किसकी हिम्मत हो गयी जिसको अपनी जान की परवाह ना हो ...
राजा के चार बेटे थे ...
बड़े बेटे वीर सिंह ने कहा , " पिता जी आप चिंता ना करें , आज रात मैं निगरानी रखूँगा बाग़ की , चोर मेरी नज़रों से बच  कर नहीं जायेगा। "
राजा ने अनुमति दे दी।
राज कुमार वीर सिंह ने बाग़ में ऐसी  जगह पर अपनी बैठने की व्यवस्था कर ली जहाँ से उसे हर कोई आने-जाने वाला नज़र आता रहे।
आधी रात हो गयी।
पर ये क्या हुआ ...! अचानक यह कैसी महकी सी हवा चली। और वीर सिंह एक मदहोशी में डूब गया और पता ही नहीं चला उसे कब नींद आ गयी।  सुबह किसी ने उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो आँखे खुली। देखा सामने सभी लोग चिंता के मारे उसे घेरे खड़े है। रानी माँ की आँखों से तो आंसूं थम ही नहीं रहे थे।
और वीर सिंह ...?
वो तो बेहद शर्मिंदा था ,एक राज कुंवर हो कर भी एक चोर का पता नहीं लगा पाया। पर उसका कोई कुसूर भी तो ना था।
पर राजा की परेशानी तो वैसे की वैसी ही रही। इस बार मंझले राजकुमार समीर सिंह ने अपने पिता से वादा किया  के वो चोर को पकड़ेगा ...
पर उसके साथ भी वीर सिंह वाला किस्सा हुआ। इसके बाद तीसरे राजकुमार सुवीर सिंह के साथ भी यही किस्सा हुआ।
अब तो राजा बहुत फिक्रमंद हुआ कि  एक चोर को कोई भी नहीं पकड तो क्या कोई सुराग भी नहीं पा सका है।तभी सबसे छोटा राजकुमार जोरावर सिंह कहता है, " महाराज ,आज की रात मुझे  कोशिश करने दी जाये।" राजा ने समझाया भी कि  वह छोटा है। पर उसने जिद की तो राजा को मानना ही पड़ा।
आखिर राजकुमार छोटा था तो क्या हुआ ...! था तो राजसी खून ही , तो हिम्मत भी बहुत थी और समझ भी...
वह भी वही बैठ गया जहा उसके दूसरे  भाई बैठे थे।
जैसे -जैसे मध्यरात्री का समय आ रहा था , राजकुमार और  भी चौकन्ना  हो गया था कि उसे सोना नहीं है। यह बात भी सही है अगर इन्सान दृढ निश्चय कर ले तो बहुत कुछ संभव है उसके लिए।
तो उसने क्या किया ...? जिससे उसे नींद ना आये ...!
उसने अपनी एक ऊँगली को तलवार की धार पर रगड़ कर जख्मी कर लिया। जिससे पीड़ा के कारण उसे नींद ना आये।
अब समय हो आया मध्य रात्री का ...! एक महकी हुई सी हवा चलने लगी पर छोटे  राजकुमार ने तो हवा के विरुद्द रुख कर रखा था। उसने देखा बहुत सारे तोते उड़ते हुए चले आ रहे है।और सभी आम के पेड़ों पर से एक -एक आम चुरा कर भाग रहे हैं। राज कुमार ने भाग कर बड़ी मुश्किल से एक तोते को पकड लिया।
तोते को एक पिंजरे में बंद करके रख लिया गया। अगली सुबह उसे लेकर राजकुमार , राजदरबार में उपस्थित हुआ। वहां पर एक जमघट सा लगा था के एक तोता चोर कैसे हो सकता है।
अब समस्या थी कि  तोते से क्या और कैसे पूछा जाये ...!
तभी तोता मानवीय आवाज़ में बोल पड़ा , " महराज , मुझे मुक्त कर दिया जाय , मैं बेकुसूर हूँ , दूर काली पहाड़ियों पर एक महा राक्षस है हम उसी के गुलाम है। उसी ने हमें अपने माया जाल में बाँध कर यहाँ भेजा था और हमने चोरी की।"
राजा सुमेर सिंह एक दयालु व्यक्ति था। उसने तोते को मुक्त कर दिया।
लेकिन समस्या तो वहीँ की वहीँ ही रही। अब काली पहाड़ियाँ कहाँ थी , किसे मालूम , खोज के लिए किसे भेजा जाए ...! तभी बड़ा राज़  कुमार आगे हो कर अपने जाने की आज्ञा मांगने लगा। और राजा ने अनुमति भी दे डाली।क्यूँ कि वह राजा था और उसकी प्रजा उसकी संतान थी। इसलिए उसने प्रजा या अपनी सेना में से किसी को भेजने के बजाय अपने पुत्र को ही भेजना उचित समझा।
अगले दिन राजकुमार वीर सिंह घोड़े पर सवार हो कर चल दिया। कई दिन तक चलता रहा, पूछता रहा काली पहाड़ियों का पता । एक दिन उसने पाया कि सडक का रास्ता तो ख़त्म हो गया है और आगे घना  जंगल था। उसमे राह ढूंढता हुआ चल ही रहा था। उसे दूर एक बूढी औरत, जिसने  सर पर बड़ा सा लकड़ियों का गट्ठर लिया हुआ था, नज़र आई।
उसने बेरुखी से उसे पुकारा , "ए बुढ़िया ...! जंगल के पार जाने का रास्ता कौनसा है और तूने किन्ही काली पहाड़ियों के बारे सुना है क्या ...?"
पर यह भी क्या बात हुई ...!अब राजकुमार को क्या ऐसे बोलना चाहिए था ...? एक बाहुबली को एक मजबूर और लाचार  के साथ ऐसी वाणी और भाषा में तो नहीं बोलना चाहिए था।
तभी वह बूढी औरत बोल पड़ी , " पहले बेटा  मेरा ये गट्ठर तो उठा कर मेरी झोंपड़ी तक ले चलो ..."
" मुझे इतना समय नहीं है जो मैं फ़ालतू के काम करूँ ...!", राज़ कुमार उपेक्षा से कहता हुआ घोड़े को आगे की तरफ ले चल पड़ा।
बहुत मुश्किल से जंगली जानवरों से बचता कभी लड़ता आखिरकार वह जंगल से पार पहुँच ही गया। आगे विशाल नदी दिखाई पड़  रही थी। अब एक बार फिर से परेशानी में पड़  गया राज़ कुमार। अब क्या किया जाये , सोच में पड़ गया वह। फिर हिम्मत करके आस -पास नज़र दौड़ाई तो वहां एक लकड़ी का  बड़ा सा  चौकोर पटरा सा था। अपने घोड़े को वही छोड़ कर उस पर सवार हो कर नदी भी पार कर ली। आगे एक खुला मैदान आया। वहां पर उसने क्या देखा ...!
उसने देखा के वहां पर असंख्य पत्थर की मूर्तियाँ थी और वो भी इंसानों जैसी। उसे बहुत हैरानी हो रही थी कि  यहाँ वीराने में ये मूर्तियाँ कौन बनता होगा भला ...!
वह चलता रहा लेकिन तभी ....
"ओ राज़ कुमार ...!  कहाँ जा रहे हो , एक बार मुड़  कर तो देखो ...!" कोई पीछे से पुकार रहा था।
राज़ कुमार ने जैसे ही मुड़ कर देखा और वह पत्थर का बन गया।
उधर वीर पुर में सभी चिंता में डूबे  हुए थे। राजकुमार तो बहुत दिन हो गये ना खबर थी और ना ही वापस आया।इस पर राजकुमार समीर सिंह ने जाने की आज्ञा मांगी , उसका कहना था के वह चोर और अपने बड़े भाई दोनों का पता ले कर आएगा।
वह भी चल पड़ा उसने भी उस बूढी औरत की अवहेलना की और आखिरकार वह भी  पत्थर की मूर्ति में बदल गया। ऐसा ही हाल तीसरे राजकुमार का हुआ।
और अब बारी थी छोटे राजकुमार जोरावर सिंह की। पर इस बार राजा भी सहमत नहीं था और ना ही राजा के सलाहकार ... और रानी माँ का भी बुरा हाल था। वह अपने पुत्रों के वियोग में बार-बार गश खा कर गिरती रहती थी। लेकिन जोरावर सिंह अपनी बात पर अटल रहा और आखिर में उसे अनुमति मिल ही गयी।
जोरावर सिंह भी चल पड़ा। उसको भी  वही घना जंगल दिखा और वही सामने आती हुई  बूढी औरत ...!
लेकिन राजकुमार बहुत विनम्र और दयालु था। वह घोड़े से उतरा और बूढी औरत के पास जाकर बोला," माँ , लाओ ये मुझे दो , कितना बोझ है इसमें आपके कैसे उठेगा यह , मुझे बताओ , लाओ मैं इसे रख आता हूँ।"
बूढी औरत ने उसे  गट्ठर थमा  कर अपनी झोपडी की तरफ ले गई।
वहां उसने राजकुमार को पानी और थोडा गुड खाने को दिया जिससे उसके अन्दर एक शक्ति का सा संचार हुआ लगा। जब राजकुमार ने बूढी औरत से अपने भाइयों और काली पहाड़ी के बारे में पूछा तो ...
अचानक उसने क्या देखा ...!
वो बूढी औरत तो एक सुंदर से देवी में बदल गयी। उसने बताया कि  वह " वन-देवी " है। वह ऐसे ही वेश बदल कर लोगों की परीक्षा लेती  और रक्षा भी करती है। क्यूंकि जोरावर बहुत ही नेक इन्सान था इसलिए देवी ने उसकी सहायता करने का निश्चय किया।
देवी ने उसे उसे एक पतली रस्सी का बड़ा सा गोला दिया और कुछ अनाज के दानो की पोटली दी।
और  कहा, " इस गोले का एक सिरा पकड कर इसे जमीन पर छोड़ देना , यह लुढकता हुआ तुमको जंगल पार ले जायेगा। आगे एक नदी आएगी , उसमे तुम यह पोटली के दाने डालते रहना , जिससे नदी में तुम्हारे लिए राह खुद - ब - खुद ही बनता जायेगा। नदी पार कर लोगे तो तुम्हें आगे एक विशाल मैदान नज़र आएगा। उस मैदान में तुम्हें बहुत सारी पत्थर की मूर्तियाँ नज़र आएगी ,वे पत्थर की मूर्तियाँ असल में इंसान ही है। काली  पहाड़ी के राक्षस   ने उसके आसपास एक माया जाल फैला रखा है। जो भी उसके क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसको पीछे से कई सारी आवाजें पुकारने लग जाती है।जो भी मुड़  कर देखता है वही पत्थर हो जाता है। अब तुम यह ख्याल रखना के पीछे मुड़  कर नहीं देखना है। उसके बाद तुम अपने विवेक से काम लेते हुए आगे बढ़ना ..."
राजकुमार को आशीर्वाद दे देवी अंतर्ध्यान  हो गयी।
राजकुमार भी चल पड़ा रस्सी वाले गोले के पीछे-पीछे ...बड़ी सुगमता से जंगल पार कर लिया। अब सामने नदी थी। अपने घोड़े को वहीँ छोड़ कर दानो वाली पोटली से दाने नदी में डालता रहा और नदी भी रास्ता बनाती रही। सामने मैदान और उसमे खड़ी मूर्तियाँ देख वह समझ गया कि अब राक्षस का मायावी क्षेत्र आ गया है।
सामने ही काली पहाड़ी थी।
 राजकुमार आगे बढ़ चला।  उसको भी पुकारा जाने लगा पीछे से । एक बार तो वह ठिठक ही गया जब उसे लगा उसे उसके तीनो भाई पुकार रहें है। पर वह सावधान था ... मन तो भर आया था अपने भाइयों की पुकार पर लेकिन उसने खुद  को दृढ कर लिया था  , उसे मुड़  कर तो देखना ही नहीं है।
अब वह पहाड़ के सामने था। उस पर जाने का रास्ता तो सामने ही था। सोच ही रहा था के ...अचानक धरती में कुछ कंम्पन सा महसूस हुआ और आसमान में गर्जना सी सुनायी दी। सामने से राक्षस चला आ रहा था। राजकुमार को कुछ नहीं सुझा तो वह भाग कर एक पेड़ के पीछे की झाड़ियों में छुप  कर देखने लगा।
राक्षस बहुत विशालकाय था। बड़े- बड़े दांत , नाख़ून  और सर पर सींग और सारे शरीर पर बाल थे। पास से गुज़रा तो भयंकर बदबू  आ रही थी।
उसके जाने के बाद राजकुमार जल्दी से पहाड़ी पर चढने लगा। थोड़ी देर में की एक महल के सामने था। बाहर का दरवाज़ा खुला था। वहां  दरवाज़े पर कोई भी नहीं था और राक्षस को जरूरत भी क्या थी।उसने  अपनी माया ही ऐसी फैला रखी थी कोई उसके महल तक जा ही नहीं सकता था।
अंदर जा कर उसने देखा , बहुत सुन्दर दृश्य था वहां पर बहुत सारे  कक्ष थे हर कक्ष  की सज्जा दर्शनीय थी।लेकिन एक कक्ष के पास से गुज़रा तो उसे धीरे - धीरे रोने की आवाज़ सुनाई दी तो वह रुक गया और जहाँ से रोने की आवाज़ आ रही थी उस कक्ष की तरफ बढ़ चला। एक बार तो उसने सोचा कहीं ये भी कोई राक्षस की माया ना हो।फिर भी वह हिम्मत करके भीतर की ओर बढ़ा।
देखा एक सुंदर सी लड़की रोये जा रही थी।उसे देख कर घबरा कर खड़ी हो गयी। राजकुमार ने उसे डरने को मन करते हुए अपनी सारी कहानी  बताई।
लड़की ने बताया ,वह सुंदर नगर की राजकुमारी फूलमती  है। राक्षस ने उसके पिता से कोई शर्त लगाई थी और राजा शर्त हार गए तो उसके बदले राक्षस उसे उठा लाया। राजकुमार से हैरान हो कर वह बोली ," तुम यहाँ क्या करने आये हो राक्षस आते ही तुमको खा जायेगा।"
पर राजकुमार तो राक्षस को मार कर उसका आतंक खत्म करने आया था। वह फूलमती से महल और राक्षस का राज़  पूछने लगा।
राजकुमारी भी क्या बताती। वह तो जब आयी थी सिवाय रोने के अलावा कुछ भी नहीं किया था।उसने राजकुमारी के साथ महल में घूमना शुरू कर दिया।उन्होंने देखा सभी कक्ष खुले हैं। एक कक्ष पर छोटे -छोटे सात ताले एक क़तर में क्रमवार लगे थे, देख कर दोनों हैरान से हुए। फिर दोनों ने एक योजना बनाई।
कुछ देर बाद जब राक्षस आया तो चकित रह गया ...! राजकुमारी रो नहीं रही थी बल्कि बाहर खड़ी थी।राक्षस के पूछने पर उसने बताया कि  जब उसे वहीँ रहना है तो वह मन लगाने की कोशिश कर रही है। इसके बाद वह धीरे - धीरे राक्षस से   घुलने मिलने भी लगी। एक दिन बातों ही बातों  में वह पूछ बैठी राक्षस से , " तुम कितने वीर हो और बहुत मायावी भी तो तुम्हें तो कोई मार ही नहीं सकता।"
राक्षस शरीर से बलशाली पर बुद्धि से जड़ ...!बोल पड़ा , " हाँ मुझे कोई मार नहीं सकता क्यूंकि मेरी जान तो एक तोते में बसी है ,उस तोते को मैंने मेरे बाग़ में छुपा कर रखा है। इस महल में एक कक्ष है उस  पर मैंने सात ताले लगा रखे हैं। उसमे भी सात कमरे है उसके बाद एक बाग़ है उसमे एक आम के पेड़ पर एक पिंजरे में तोता है अगर उसे कोई मार दे तो ही मैं मर सकता हूँ ...! लेकिन चाबी सदैव मेरे पास ही रहती है।"
राजकुमार छुप कर सारी  बात सुन रहा था।
अब सिर्फ चाभी ही हासिल करनी थी राजकुमार ने , मंजिल तो उसके सामने ही थी। और यह भी संयोग ही था के महीनो ना नहाने वाला राक्षस उस दिन नहाने चला गया। उसके जाते ही फूलमती ने चाबी उठा कर राजकुमार को दे दी। राक्षस को  राजकुमारी  ने बातों में उलझा लिया। और बातों ही बातों में राक्षस चाबी को भूल ही गया। महल से बाहर  भी  चला गया।
उसके जाते ही बिना मौका गवांये वे दोनों बंद कक्ष के सामने थे। एक -एक कर के ताले खोलने लगे। सातवे ताले को खोल ही रहे थे के राक्षस महल में आ पहुंचा। राक्षस को थोड़ी दूर जाते ही चाबी की याद आ गयी थी।अब एक तरफ तो राक्षस आगे की और बढ़ रहा था।दूसरी तरफ वे दोनों ताला खोल चुके थे। और भागते हुए आगे जो क्रमवार कमरे बने थे उनके दरवाज़े धकेल कर खोलते हुए आगे भागते हुए जा रहे थे।
राक्षस के क्रोध की पारावार ही नहीं थी। उसके क़दमों से धरती और हुंकार से आकाश भी काँप  रहा था।वो बढ़ा चला जा रहा था।
तब तक वे दोनों बाग़ में पहुँच चुके थे। अब तलाश थी उनको तोते की ...! उस आम के पेड़ की जिस पर तोता था ...!
तभी सामने उनको पिंजरे में तोता दिख गया।
" नहीं ...!" राक्षस जोर से दहाडा।
" उसे हाथ मत लगाना ...!"राक्षस फिर दहाडा ...
लेकिन राजकुमार ने तोते को हाथ में ले लिया था और उसने तोते की एक टांग मरोड़ दी।
राक्षस एक टांग से लंगड़ा हो गया। फिर तोते की दूसरी टांग मरोड़ी और राक्षस नीचे गिर पड़ा लेकिन हाथों के सहारे रेंगता आगे बढ़ गया।
राजकुमार ने तोते का एक पंख मरोड़ दिया तो राक्षस का एक हाथ टूट गया। दूसरा पंख मरोड़ा तो दूसरा हाथ टूट गया।
और आखिर में तोते की गर्दन मरोड़ी तो राक्षस निढाल हो कर गिरा और मर गया।
उसके मरते ही उसका माया जाल भी खत्म हो गया। बाग़ के पेड़ों पर बैठे  सभी तोते उड़ गए उन्मुक्त हो कर आसमान में।
काली पहाड़ी भी अपने असली स्वरूप में आ कर  अपनी सुनहरी आभा से चमक रही थी।
जितने भी लोग मूर्तियों में बदले हुए थे वे सभी  फिर से इन्सान बन गए थे। राजकुमार अपने भाइयों से मिल कर बहुत ही खुश हुआ। जोरावर सिंह ने अपने भाइयों को  राजकुमारी का परिचय दिया और बताया अगर फूलमती  का सहयोग नहीं मिलता तो  राक्षस का मारा जाना संभव नहीं था।
फिर सभी वीर पुर की ओर चल पड़े। वहां पर सभी का बहुत भव्य स्वागत हुआ। राजकुमारी फूलमती के पिता राजा सुंदर सेन को भी बुलाया गया और राज़ कुमारी को उनके साथ विदा कर दिया।
इसके बाद वहां पर कोई भी अपराध नहीं हुआ सभी  सुख -चैन के साथ रहे।

उपासना सियाग







14 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कहानी दृष्टी को नया आयाम देती दुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. उपासना जी आपकी कहानिया छुट्टियों को सार्थक कर रही है
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. बचपन में सुनते थे आज बहुत दिन के बाद राजकुमार और राक्षस की कहानी पढ़ी
    बढ़िया कहानी

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही कहानी आपकी इस रचना के लिंक का प्रसारण सोमवार (03.06.2013)को ब्लॉग प्रसारण पर किया जायेगा. कृपया पधारें .

    जवाब देंहटाएं
  6. उपासना जी बहुत सुंदर कहानी. पढकर बचपन याद आ गया जब ऐसी कहानियाँ पढकर दूसरी दुनिया में ही पहुँच जाते थे.

    जवाब देंहटाएं
  7. Bachpan ki yad dila di ...
    Jab Dadi ma sunati this esi kahaniya

    जवाब देंहटाएं
  8. StripChat presents you with the chance to talk and socialize with different sexy teenage models located around the globe. An account must converse with most versions, which means that you are going to have to experience an email confirmation procedure to find that installation,
    https://www.smore.com/2scpr-stripchat-live-chat-reviews-2020

    जवाब देंहटाएं