" मलिक साहब ...! अब क्या होगा ? "
"अब...?"
दोनों चुप रहे |
परेशानी की बात तो थी ही ... तिहत्तर-चौहत्तर के लगभग मलिक साहब हैं तो शकुन्तला देवी भी उनसे दो-तीन साल छोटी होंगी !
उनके चार बच्चे हैं... दो बेटियाँ-दो बेटे ... साथ कोई नहीं रहता है | बेटे विदेश में है तो बेटियाँ अपने-अपने घरों में मस्त और व्यस्त है |
गाँव में पले बढ़े मलिक साहब रेलवे में नौकरी करते थे | विवाह होते ही पत्नी को साथ ले आये | फिर गाँव कम ही गये | जहाँ नौकरी ले गई, वहीं का दाना-पानी चुग लिया |
अब कई सालों से नोयडा के सैक्टर 71 की एक बिल्डिंग में तीसरी मंजिल पर आठ नम्बर फ्लैट में रह रहे हैं |
बेटे साल में एक बार आते हैं | बेटियाँ दो बार आती है | यह भी कोई नियम नहीं था कि वे दो बार ही आयें, कई बार हारी-बीमारी हो तो बीच में आना भी संभव हो जाता है |
एक दूसरे का मुँह ताक रहे थे कि बड़े बेटे हितेश का फोन आ गया | बहुत सारी चिन्ता के साथ निर्देश भी दिये |
" तू चिन्ता मत कर बेटा , सोहिली है न , सब संभाल लेगी .. और हमारा क्या है हम तो घर से निकलते ही कम है... मैं सैर कर आता हूँ, तेरी माँ मंदिर तक घूम आती है .... बस और क्या ? "
" लेकिन बाबूजी , अब आप सोहिली को भी मत आने देना ..."
बड़े से बात जारी थी कि छोटे बेटे कविश का फोन शकुन्तला जी के फोन पर आ गया | उसने भी बहुत सारी हिदायतें दे डाली |
" अभी उषा और संध्या के भी फोन आने बाकी हैं ! " मलिक साहब खीझे से बोले तो पत्नी मुस्करा पड़ी |
" मुस्करा रही हो ?"
" नहीं मेन्टली प्रिपेयर हो रही हूँ !"
" किस लिये ? "
" लॉकडाउन के लिये ..."
" अरे वाह ! जैसे इसमें तुमने बड़े दिन गुजारे हों ! "
" मैंने तो कभी नाम ही नहीं सुना इसका ! आज का काम तो हो चुका है ...अब सुबह ही सोचेंगे कि आगे क्या करना है ... शांति से सो जाओ ..."
तभी सोहेली का फोन आ गया |
" अम्मा ... आप परेशान मत होना ...आपके लिये तो मैं आ ही जाऊँगी ..."
सोहिली की बातें राहत भरी थी | एक वही थी जिसके सहारे पर उनके बच्चे निश्चिंत थे | वह उनके यहाँ कई सालों से काम कर रही है |
पाँच बजे बिना अलार्म उठ जाना मलिक साहब की आदत में शामिल है | सो , आज भी उठ गये | शकुन्तला जी को जल्दी उठना कम पसंद है | सोई हुयी पत्नी पर एक नजर डाल कर बाथरूम में चले गये |
पंद्रह से बीस मिनिट में वे सैर पर जाने के लिये तैयार थे | दोनों पर उम्र का असर ज्यादा दिखाई नहीं पड़ा है ,इसे वह अपनी सकारात्क सोच और जिन्दगी से शिकायत न रखने को श्रेय देते हैं |
लिफ्ट से उतर कर देखा तो वातावरण बहुत शांत था | थोड़ा रूके ... गर्दन ऊपर कर के बिल्डिंग को निहारा ... चुप सा माहौल था |
कंधे ऊपर-नीचे घुमा कर मुख्य दरवाजे की ओर मुड़े | दरवाजा अभी बंद ही था | छड़ी से दरवाजा बजाया तो दरवाजे के पास बने कमरे से अलसाता चौकीदार बाहर आया |
" अंकल जी ... अब यह गेट नहीं खुलेगा जी ..."
" क्यों भई ? "
" आपने कल टीवी नहीं देखा ... सरकार का आदेश नहीं सुना ? "
" हाँ देखा तो था ... लेकिन मैं बीमार नहीं हूँ ! "
" नहीं है बीमार ... लेकिन हो तो सकते हैं न ... ! कितनी भंयकर महामारी फैली हुई है ...यह बूढों और बच्चों को जल्द पकड़ में लेती है ... इसलिये आप अपने घर में ही रहिये ..."
" कमाल है भई ..." मन ही मन बुदबुदा कर वे घर की तरफ चल दिये |
सैर कर के जब तक घर पहुँचते थे तब तक शकुन्तला जी चाय बना चुकी होती थी. कपों में डालने की ही देरी होती थी |
लेकिन आज तो दरवाजे से ही लौट आये थे | दरवाजे पर हलचल हुई तो शकुन्तला देवी चौंकी और डर गई | उनको डरा देख कर वे हँस पड़े, " डरने की आदत जायेगी नही तुम्हारी ...!"
" डरना भी कोई आदत होती है भला ? आप जल्दी कैसे आ गये ?"
" मैंने सोचा कि आज जा कर देखता हूँ कि तुम मेरे पीछे से क्या करती हो , कितने बजे उठती हो ?"
" ओहो ... जासूसी ! स्टेशन मास्टर जी ,यह कब से ? "
"अरे मैं तो मजाक कर रहा था , आज चौकीदार ने दरवाजे पर ही रोक लिया | उसने कहा कि आप, आज से सैर करने नहीं जा सकते क्योंकि लॉक डाउन है ,करोना वायरस के कारण बीमारी फैली है |"
" ओ हो ऐसा !"
तब तक शकुंतला देवी चाय बना लाई थी | चाय पीते हुए आसपास के वातावरण को निहारने लगे | आज वातावरण बहुत शांत था | चिड़ियों की चहचहाहट मन को बहुत लुभा रही थी |
" सब कुछ ठहर सा गया लगता है ना शकुंतला !"
" शकुन से शकुंतला कब से हो गई मैं ?"
" अभी अभी से... हा हा "
" हँसने से कुछ नहीं होगा ... अब इक्कीस दिन हम करेंगे क्या ?"
" करेंगे क्या ... क्या मतलब है तुम्हारा ...पहले क्या करते थे ...? घर में ही तो रहते थे..!"
" पहले की और बात थी , पाबंदियाँ नहीं थी कि घर से नहीं निकलना है !"
बालकनी में चुप बैठे दोनों ही जैसे कुछ सोच रहे हों...., फोन की घंटी बजी तो सोच विचार से बाहर आए |
" बैठे रहो , मैं फोन देखती हूँ ़़..."
फोन सोहिली का था | उसने बताया कि उसे भी घर से निकलने की इजाजत नहीं है |
वे धम् से आकर बैठ गई | मलिक साहब ने सवालिया नजरों से देखा, वैसे वे वार्तालाप तो सुन चुके थे |
" अब मैं सारा काम कैसे करूँगी ...आदत भी नहीं रही ... खाना तो फिर भी बन जायेगा , सफाई-बरतन आदि कैसे होंगे ?"
" मुश्किल तो हो ही गई ...कोई बात नहीं ...मैं हूँ न ... !" पति को प्यार से देखते हुये वे भी मुस्करा पड़ी और कप ले कर रसोई की तरफ चली |
सिंक में धोने के लिये रात के बर्तन भी पड़े थे | कप रख कर , फ्रिज खोला , दूध दो तीन बर्तनों में रखा था ,मलाई उतार कर सबको एक भगोने में इकट्ठा किया |
" ये सोहिली भी न.."
" क्या बुदबुदा रही हो शकुन ! "
" कुछ नहीं ..."
" रात की दाल पड़ी है न , वही दोपहर में खा लेगें ... दही की लस्सी पी लेगें |"
" अभी सर्दी गयी नहीं है ... लस्सी नहीं दूँगी ...चिन्ता नहीं करो मैं हूँ ना...! " शकुन्तला जी हँसी |
उन्होने देखा , फ्रिज का हाल, बेहाल हो रखा था | दिनों से रसोई की ओर ध्यान दिया ही नहीं था | एक-दो दिन पुरानी दाल-सब्जी भी पड़ी थी | अलसाया धनिया , मूली आदि कुछ कटी हुई सब्जियाँ भी थी जो खुली ही रखी थी | सबको एक लिफाफे में इकट्ठा किया और डस्टबिन में डाल दिया |
" हे भगवान ... मैंने भी कैसे सारी रसोई सोहिली को सौंप दी है !" मन ही मन बुदबुदाती वे फ्रिज को व्यवस्थित करने लगी |
एक एयर टाईट डिब्बे में मटर के दाने रखे थे , गर्म पानी में भिगो दिये कि आज मटर -टमाटर की सब्जी और मिस्सी रोटी बनाऊँगी |साथ में बूँदी का रायता !
रसोई /फ्रिज संभालते हुए समय तो लगा लेकिन अपने हाथ से काम कर के जो संतुष्टि एक गृहणी को मिलती है , वही उनको महसूस हो रही थी |
तभी नजर घड़ी पर पड़ी , नौ बजने वाले थे | " अरे राम ! "
" क्या हुआ शकुन... ? "
" रसोई के चक्कर में तो आज पूजा -पाठ रह गई ..."
" जाने दो कुछ दिन पूजा-पाठ को, आओ टीवी देखो ... , हमारे शहर में भी कोरोना का संक्रमण हुआ है |"
" मतलब कि हम भी सुरक्षित नहीं है !"
" हाँ, अगर घर से बाहर निकलेंगे तो !"
" अगर घर से नहीं निकलेंगे तो हमें रोज का जरूरी सामान कैसे मिलेगा ..?"
" उसका भी कोई - न -कोई हल तो निकलेगा ही ..."
पति को टीवी देखते छोड़ वह नहाने चली गई | नहा कर आई तो पता चला कि दोनों बेटियों के फोन आ चुके थे |
" यार शकुन , मुझे लगता है कि हम तो बच्चे हैं... यह मत करना , वह मत करना ...और तो और ऊषा बोली कि हमारी उम्र में लापरवाही अच्छी नहीं है ...!"
" हाहा , आपको नसीहत पसंद नहीं आई या उम्र की बात पर चिढ़ गए ...! "
पत्नी को हँसता देख ,थोड़ा झेंप गये वे क्योंकि बात तो उम्र की ही थी | एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि उनको बुढ़ापा स्वीकार ही नहीं था ... होता भी क्यों ,वे खुद को सेल्फ मेड व्यक्ति मानते हैं !
नहाना -धोना भी हो गया ... पूजा-पाठ के नाम पर दीया जला कर हाथ जोड़ लिये कि प्रभु क्षमा करना...कुछ दिन ऐसे ही चलेगा ... हिम्मत देना !
खाने में क्या बनेगा यह भी योजना बन गई लेकिन सफाई का क्या किया जाये वह भी तो जरूरी है |
" सफाई आज रहने दो शकुन ...कल देखते हैं कि क्या करेंगे ... जोश में सारी ऊर्जा आज ही खर्च कर दोगी तो कल बहुत दिक्कत होगी | "
मलिक साहब की बात भी सही थी |
थकान तो होने लगी थी | सुबह छह बजे से काम कर रही थी | बेड पर लेटी तो नींद आ गई |
घंटा-सवा घंटा तो नींद ले ही ली थी | सोचने लगी सफाई हुई नहीं है , बासी घर में ही खाना बनाना पड़ेगा ..., ऐसे भी कभी होगा सोचा न था |
" ज्यादा सोचो मत ... सफाई नहीं हुई तो कोई बात नहीं... भूख लग आई है , आज चाय बिस्किट ही तो खाये थे ...!"
"ओह हाँ ! अभी बनाती हूँ ..! " फुर्ती से उठने की कोशिश की तो मलिक साहब ने चुटकी ली, " फुर्ती उमर के हिसाब से ही ठीक रहती है ... हा हा ..."
" आपसे तो कम ही है ! "
रसोई में पत्नी के पीछे पहुँच गये | " बहादुर हाजिर है मेम साहब ! कहिये क्या हुकुम है ! "
" अच्छा जी ! एक दिन काम पड़ गया तो बहादुर बन गये ...और मैं सारी उमर रसोई में बहादुरी दिखाती रही , वो ? "
" हाहाहा... तुमसे बातों में कौन जीत सकता है ...लाओ मैं आटा निकालता हूँ ... तुम सब्जी बनाने की तैयारी करो ..."
बात में से बात निकालना दोनों की आदत थी | थोड़ी देर में दोनों डाईनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे | दोनों ही संतुष्ट थे | जीवन में ऐसे मौके बहुत बार आये थे, जब मिल जुल कर काम किया था और अब तक गृहस्थी की गाड़ी सुचारू रूप से चला रहे थे |
पत्नी को गहरी नींद में सोते देख कर मलिक साहब के मन में प्रेम उमड़ आया | शकुन्तला जी ने आँखे खोली तो पति को प्रेम से निहारते देखा |
" क्या बात है..."
" देख रहा हूँ, थक गई हो... अभी तो एक ही दिन हुआ है ! " आखिरी वाक्य में अचरज के साथ चुहल भी थी |
वे सिर्फ मुस्कुराई |
उनकी दिनचर्या में कोई फर्क नहीं आने वाला था | फर्क तो बस इतना आएगा कि सोहिली नहीं आयेगी, बाहर की सैर / मंदिर जाना बंद हे जायेगा | बाकी काम तो सब घर बैठे हो जाता था |
नाश्ता करने की आदत नहीं थी | दोपहर का खाना ग्यारह बजे खा लेते थे | रात को सात बजे तक खाते थे |
"शकुन , आज दलिया या खिचड़ी बना लो | "
" ठीक है ... "
" आज मुझे गाँव, जमीन और सबसे ज्यादा बापू की बहुत याद आई ..."
उन्होने पत्नी को उदासी से देखा |
" आज क्या हुआ ... ? एक दिन में ही यह हाल हो गया क्या ! " शकुन्तला जी ने चुहल की |
" मजाक की बात नहीं है , आज गाँव में होते तो यूँ बालकनी में टँगे हुये नही होते ... तुम खुले आँगन में बैठी होती ... मैं अपने साथियों,भाईयों के साथ चौकी पर बैठा बतिया रहा होता ! क्यूँ.. है न ?"
" हाँ ... लेकिन हमने ये जीवन खुद चुना है ... हमारे बच्चों को शहरी जीवन ही पसंद है और हम कभी गाँव रहे भी तो नहीं न ...हमारे बच्चे वहाँ सिर्फ पिकनिक मनाने तक ही खुश रह सकते हैं ...! "
" तो मैं कौनसा गाँव जाने का कह रहा हूँ... तुम बातें ही बहुत बनाती हो..! गाँव क्या मैं तो बच्चों के पास परदेश भी जाना नहीं चाहता ..."
बच्चों की तरह ठुनक गये मलिक साहब |
यह तो बात बदलने की कवायद थी ,नहीं तो शकुन्तला जी जानती ही थी कि वे सच में उदास ही हैं |
शाम गहराने लगी थी | वे पूजा कर चुकी थी | खिचड़ी गैस पर चढ़ा कर वापस बालकनी में बैठ गई |
" हो गई पूजा ? "
" जी ..!"
" शकुन्तला जी ! आप क्या सोचती हैं कि यह सारा घर आपकी पूजा -पाठ की बदौलत ही खुशहाल है ...या सारा संसार ईश्वर ही चला रहा है ! "
शकुन्तला जी चौंकी कि यह ' शकुन्तला ' और वह भी ' जी ' और 'आप ' के साथ ! जरूर ही उनके मन में कुछ चल रहा है और शिकायत भी... सोचते हुए होठों पर गहरी मुस्कान आ गई |
" यार तुम ऐसे गहरे मुस्कुराया न करो..
इसके पीछे मुझे गहरा राज लगने लगता है ..."
" नहीं जी मैं तो बहुत बातें बनाती हूँ न ...चलिये कुकर सीटीयाँ बजा रहा है , खाना खाते है ... "
" सीटियाँ तो मेरी बजेगी , इक्कीस दिन तक ..."
पति की बात पर शकुन्तला जी खिलखिला कर हँस पड़ी | दोनों ने मिल कर डाइनिंग टेबल पर खिचड़ी के साथ खाने के लिये पापड़,चीनी और दूध रख लिया और घी भी रखा | दोनों ही घी के शौकीन है और यह तर्क भी कि सीमित मात्रा में घी खाने से शरीर में ऊर्जा और चिकनाई बनी रहती है |
अगली सुबह मलिक साहब की नींद तो अपने समय पर ही खुल गई | सोच रहे थे सैर करना नहीं है ... बिस्तर से उठुँ या नहीं... कल तो अखबार भी नहीं आये थे ...आज पता नहीं ....
" आ जायेंगे अखबार भी ... मैंने कल टीवी पर सुना था कि जरूरी चीजों की सप्लाई नहीं रूकेगी ..."
" शकुन तुम जाग रही हो ! तुम मेरा मन कैसे पढ़ लेती हो ... "
" जैसे आप मेरा मन पढ़ लेते हो ..."
शकुन्तला जी का सुबह नित्यकर्म के बाद का नियम है अपने छोटे से मंदिर की सफाई करना और वहाँ से दीपक, लोटा ,घंटी आदि उठा कर रसोई में रख देना होता है जिसे वह बाद में धो कर पूजा करती है | तब तक मलिक साहब सैर कर के आ जाते हैं |
लेकिन आज तो पति घर पर ही हैं इसलिये उन्होने केवल हाथ जोड़े और धीमे से मुस्करा कर बोली ," प्रभु , पति सेवा पहले ! "
" अरे शकुन ! अब यहाँ हाथ जोड़ने से कोई फायदा नहीं है ... बड़े-बड़े धर्म स्थानों ने भी अपने द्वार बंद कर लिये हैं | "
शकुन्तला जी फिर मुस्कुरा दी ," संध्या के पापा जी , भगवान मंदिर में थोड़ी न होता है ,वह तो सब जगह होता है ... जरा सी बात है और समझानी पड़ रही है ... धर्म - स्थल पर लोग जमा न हो इसलिये द्वार बंद किये हैं और यही ईश्वर की भी इच्छा है | उसने कब कहा कि मेरे..." बात बीच में रह गई क्योंकि दरवाजे की घंटी बजी थी |
मलिक साहब ने दरवाजा खोला तो सामने बिल्डिंग का सचिव था |
" नमस्ते सर , कुछ दिन के लिये काम वाली तो आएगी नहीं , सो हम आप के लिये खाना ला दिया करेंगे ... दूध आता रहेगा, और कुछ भी चाहिये , उसके लिये कॉल कर देना |"
" ठीक है , बहुत शुक्रिया .."
दरवाजा बंद कर के एक बार वे सोच में वहीं खड़े रहे |
" ऊषा की मम्मा , मैं क्या सोच रहा हूँ...?"
" हा हा ...आप सोच रहे हैं कि हम बाहर से खाना न मंगवाएं , क्योंकि पहली बात तो यह कि मैं बना सकती हूँ... और दूसरी बात यह है कि हमें बाहर का खाना हजम नहीं होगा ... ! क्यों ... ?"
" एकदम सही जवाब.."
उन्होने फोन कर के बोल दिया कि उनको अगर जरूरत होगी तो खाना मंगवा लेंगे | चाय पी कर दोनों ने मिल कर घर साफ किया |
" यार शकुन ऐसा लगता नहीं था कि इस उम्र में भी तुम काम कर लोगी ! ...मम् मेरा मतलब था कि हम दोनों... ऐसे घूर के मत देखा करो ... हाहा "
" अब हम ऐसे हँस कर ही यह लॉक डाउन बिताएगें ... हमारे बच्चे देश-विदेश में है | संक्रमण का भय सभी जगह है | वे भी बाल -बच्चों वाले हैं , वे अपने बच्चों की फिक्र करें या हमारी ! "
" सच कहा शकुन..."
" हमारे पास बहुत कुछ है करने को ... और नहीं तो प्रार्थना कर सकते हैं विश्व शांति की ! "
" बातों में तुमसे कोई जीत नहीं सकता तो मेरी क्या बिसात है ... चलो अब टीवी देखते हैं !"
"टीवी देखो तो दहशत आने लगती है , जैसे कुछ नहीं बचेगा.. मुझे नहीं लगता कि यह लॉकडाउन इक्कीस दिन ही चलेगा ...जैसे देश का और देश का ही क्यों हमारे शहर का ही हाल देख लो ... आगे भी बढ़ाया जा सकता है ..."
हाँ लगता तो यही है ... है तो यह हमारे लिये ही न.. जान है तो जहान है ..."
टीवी में समाचार देखो तो डर लगता है और दो-चार दिन में धारावाहिक भी बंद हो गए | धार्मिक सीरियल मलिक साहब को पसंद नहीं | अब किताबों का ही सहारा था या टीवी पर कोई मूवी देख ली |
पोते-पोतियाँ , दोहते -दोहितीयाँ... बेटे -बहू , बेटियाँ- दामाद सभी समय -समय पर कॉल/ वीडियो कॉल करते रहते थे |
" टेक्नोलोजी ने कितना करीब कर दिया है न सबको ..." मलिक साहब उत्साहित थे |
" हाँ भी और ना भी ... यह ठीक है कि हम अपनों को देख सकते हैं लेकिन कितनी देर तक ..इसकी भी एक सीमा ही है ...सारा दिन तो नहीं देख सकते न छू सकते ... क्या ये बाजू तरसते नहीं कि पोते -पेतियों को गोद में उठाएं... सीने से लगाएं... उनकी मासूम बातें सुने, कभी हँसे तो कभी कहानियाँ सुनायें..." शकुन्तला जी ने बात भर्राये गले से शुरू की थी ,आँसूओं से खत्म की |
पत्नी की बात तो सही थी | चुप रहे ,बस सर हिला दिया |
" हम अपने माता-पिता के साथ भी नहीं रहे ... और बच्चों के साथ भी नहीं रहना चाहते..आखिर कब तक ? जब कि बच्चों ने कितनी बार कहा भी है ..."
" शकुन... यह श्राप है जो हमें हमारे माता-पिता ने दिया है ...हमने उनकी सेवा नहीं की ... तभी हम अकेले हैं..."
" वे हमें कभी श्राप नहीं देंगे... यह आपकी सोच है ... आपने दूर रह कर भी सारी जिम्मेदारी पूरी की थी न ? अब हमारे बच्चे हमें बुला रहें है तो हम क्यों नहीं जाते ... ? "
" ठीक है भई ... ये महामारी का ताण्डव समाप्त हो जाये फिर देखते हैं ... चलो उठो ... आज रात दीप जलाना है ...प्रधानमंत्री जी का आव्हान याद है न..."
शकुन्तला जी दीया जलाने की तैयारी में जुट गई और मलिक साहब ने बड़े बेटे से फोन पर बात करने लग गये |
उपासना सियाग
(अबोहर)
ईमेल: upasnasiag@gmail.com
नाम -- उपासना सियाग
जन्म -- 26 सितम्बरशिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ) महारानी कॉलेज , जयपुर।
ज्योतिष रत्न ( आई ऍफ़ ए एस ,दिल्ली )
प्रकाशित रचनाएं --- 9 साँझा काव्य संग्रह , एक साँझा लघु कथा संग्रह। ज्योतिष पर लेख। कहानी और कवितायेँ ( सखी जागरण , सरिता , अंजुम, करुणावती साहित्य धारा , अटूट बंधन आदि )विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं ( दैनिक भास्कर आदि )में प्रकाशन।
पुरस्कार -सम्मान :-- 2011 का ब्लॉग रत्न अवार्ड , शोभना संस्था द्वारा। ' जय-विजय ' रचनाकार सम्मान, 2015 ( कहानी विधा )
bahut shukriya
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा उपासना जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
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