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रविवार, 11 अक्तूबर 2020

उसके बाद .....?


   
      गाँव की गलियों के सन्नाटे को चीरती एक जीप एक बड़ी सी हवेली के आगे रुकी।  हवेली की ओर बढ़ते हुए चौधरी रणवीर सिंह की  आँखे अंगारे उगल रही है  चेहरा तमतमाया हुआ है। चाल  में तेज़ी है जैसे बहुत आक्रोशित हो, विजयी भाव तो फिर भी नहीं थे चेहरे पर। चेहरे पर एक हार ही नज़र आ रही थी।
     अचानक सामने उनकी पत्नी सुमित्रा आ खड़ी हुई और सवालिया नज़रों से ताकने लगी। सुमित्रा को जवाब मिल तो गया था, लेकिन उनके मुंह से ही सुनना चाह  रही थी। जवाब क्या देते वह ...! एक हाथ से झटक दिया उसे और आगे बढ़  कर बरामदे में रखी  कुर्सी पर बैठ गए।
     सुमित्रा जाने कब से रुदन रोके हुए थी। घुटने जमीन पर टिका कर जोर से रो पड़ी, " मार दिया रे ...!  अरे जालिम मेरी बच्ची  को मार डाला रे ...!"
   रणवीर सिंह ने उसे बाजू से पकड कर उठाने की भी जरूरत नहीं समझी  बल्कि  लगभग घसीटते हुए कमरे में ले जा धकेल दिया और बोला , " जुबान बंद रख ...! रोने की, मातम मनाने की जरूरत नहीं है ! तुमने कोई हीरा नहीं जना था, अरे कलंक थी वो परिवार के लिए, मार दिया ...! पाप मिटा दिया कई जन्मो का ...पीढियां तर गयी ...!"
 बाहर आकर घर की दूसरी औरतों को सख्त ताकीद की,  कि कोई मातम नहीं मनाया जायेगा यहाँ, जैसा रोज़ चलता है वैसे ही चलेगा। सभी स्तब्ध थी। लेकिन हिम्मत  में थी जो कोई आवाज़ भी मुँह से निकाले। 
    घर की बेटी सायरा जो कभी इन्ही चौधरी रणवीर सिंह के आँखों का तारा थी , आज अपने ही हाथों उसे मार डाला।
     "मार डाला ...!" लेकिन किस कुसूर की सजा मिली है उसे ...!
         प्यार करने की सज़ा मिली है उसे ...!
       एक बड़े घर की बेटी जिसे पढाया लिखाया, लाड-प्यार जताया, उसे क्या हक़ है किसी दूसरी जात के लड़के को प्यार करने का ...! क्या उसे खानदान की इज्ज़त का ख्याल नहीं रखना चाहिए था ? चार अक्षर क्या पढ़ लिए ...! बस हो गयी खुद मुख्तियार ...!
     चौधरी रणवीर सिंह चुप बैठा ऐसा ही कुछ सोच रहा है। अचानक दिल को चीर देने वाली आवाज़ सुनाई दी। सायरा चीख रही थी ..." बाबा, मत मारो ...! मैं तुम्हारी तो लाडली हूँ ... इतनी बड़ी सज़ा मत दो अपने आपको ...! मेरे मरने से तुम्हें  ही सबसे ज्यादा दुःख होगा। तुम भी चैन नहीं पाओगे ...!"
       सुन कर अचानक खड़ा हो गया रणवीर सिंह और ताकने लगा की यह आवाज़ कहाँ से आई। फिर कटे वृक्ष की भांति कुर्सी पर बैठ गया क्यूँकि यह आवाज़ तो उसके भीतर से ही आ रही थी। पेट से जैसे मरोड़ की तरह रुलाई ने  फूटना चाहा।
   लेकिन वह क्यूँ रोये ...! क्या गलत किया उसने। अब बेटी थी तो क्या हुआ, कलंक तो थी ही ना ...! कुर्सी से खड़े हो बैचेन से चहलकदमी करने लगा।
   "अपने  मन को कैसे समझाऊं कि इसे चैन मिले। किया तो तूने गलत ही है आखिर रणवीर ...! कलेजे के टुकड़े को तूने अपने हाथों से टुकड़े कर दिए। किसी का क्या गया , तेरी बेटी गयी , तुझे कन्या की हत्या का पाप भी तो लगा है , क्या तू उसे और समय नहीं दे सकता था। "  रणवीर सिंह सोचते -सोचते दोनों हाथों से मुहं ढांप  कर रोने को ही था कि बाहर से आहट हुई। किसी ने उसे पुकारा था। संयत हो कर फिर से चौधराहट का गंभीर आवरण पहन बाहर को चला।
   आँखे छलकने को आई, जब सामने बड़े भाई को देखा। एक बार मन किया कि लिपट कर जोर से रो पड़े। माँ-बापू के बाद यह बड़ा भाई रामशरण ही सब कुछ था उसका।  मन किया फिर से बच्चा बन कर लिपट  जाये भाई से और सारा दुःख हल्का कर दे। वह रो कैसे सकता था ? उसने ऐसा क्या किया जो दुःख होता उसको। सामने भाई की आँखों में देखा तो उसकी भी आँखों में एक मलाल था। ना जाने कन्या की हत्या का या खानदान की इज्ज़त जाने का। चाहे लड़की को मार डाला हो कलंक तो लग ही गया था।
    दोनों भाई निशब्द - स्तब्ध से बैठे रहे। मानो शब्द ही ख़त्म हो गए सायरा के  साथ -साथ। लेकिन रणवीर को भाई का मौन भी एक सांत्वना सी ही दे रहा था। थोड़ी देर बाद रामशरण उसके कंधे थपथपा कर चल दिया।
  चुप रणबीर का गला भर आता था रह - रह कर, लेकिन गला सूख रहा था। आँखे बंद, होठ भींचे कुर्सी पर बैठा था।
   " बापू पानी ..." , अचानक किसी ने पुकारा  तो आँखे खोली।
    'अरे सायरा ...!'
       यह तो सायरा ही थी सामने हाथ में गिलास लिए। उसे देख चौंक कर उठ खड़ा हुआ रणवीर। बड़े प्यार से हमेशा की तरह उसने एक हाथ पानी के गिलास की तरफ और दूसरा बेटी के  सर पर रखने को बढ़ा दिया।                     लेकिन यह क्या ...?
 दोनों हाथ तो हवा में लहरा कर ही रह गए। अब सायरा कहाँ थी ! उसे तो उसने इन्ही दोनों हाथों से गला दबा कर मार दिया था। हृदय से एक हूक सी निकली और कटे वृक्ष की भाँति कुर्सी पर गिर पड़ा।
    रणबीर की सबसे छोटी बेटी सायरा जो तीन भाइयों की इकलौती बहन भी थी। घर भर में सबकी लाडली थी। जन्म हुआ तो दादी नाखुश हुई कि  बेटी हो गयी कहाँ तो वह चार पोतों को देखने को तरस रही थी और कहां सायरा का जन्म हो गया। तीन ही पोते हुए अब उसके, जोड़ी तो ना बन पाई।
    रणबीर सिंह तो फूला ही नहीं समा रहा था। घर में लक्ष्मी जो आयी थी। बहुत लाड-प्यार से पल रही थी सायरा। जिस चीज़ की मांग की या जिस वस्तु पर हाथ रखा वही उसे मिली।
      तो क्या उसे जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं था ?
     यही सवाल लिए सायरा से बड़ा और रणबीर का छोटा बेटा  यानि तीसरे  नंबर की संतान राजबीर सामने खड़ा था। तीनों भाइयों में राजबीर ही सायरा के पक्ष में बोल रहा था कि वह सोमेश से शादी कर सकती है। जब लड़का हर तरह से लायक है, सायरा को खुश रख सकता है, तो जाति कहीं भी मायने नहीं रखती। आखिर बात तो सायरा की ख़ुशी की है। लोगों का क्या वह चार दिन बात बना कर रह जायेंगे। सारी  उम्र का संताप -दुःख तो सायरा को नहीं भोगना पड़ेगा।
     रणवीर सिंह के दूसरे दोनों  बेटे  अपने पिता जैसी ही सोच रखते थे। लेकिन रणवीर ने अपने तीनो बेटों को ही किसी बहाने से शहर भेज दिया। क्यूंकि वह नहीं चाहता था कि जो कुछ भी वह करने जा रहा था उसके लिए उनके बेटे और उनके परिवार किसी मुसीबत में आये।
  अब राजबीर सामने खड़ा था अपनी आँखों में लिए क्रोध , दर्द और विशुब्ध सा बेबस -लाचार । पिता ने उसे धकेल कर आंगन में आवाज़ लगाई कि खाना क्यूँ नहीं बना आज।
 लेकिन क्या रणवीर सिंह को भूख थी भी या ऐसे ही सामान्य दिखने का ढोंग कर रहा था ...! यह तो वह भी नहीं जानता था। बेचैन सा था जैसे कलेजा फट ही जायेगा उसका।
   कालू राम जो कि घरेलू काम-काज के लिए रखा हुआ था, खाने की थाली सामने रख गया। रणबीर सिंह खाना, खाना तो दूर देखना भी नहीं चाह रहा था।
     रह -रह कर सुमित्रा की सिसकियाँ गूंज रही थी घर में फैले सन्नाटे में। सिसकियाँ कभी करूण  क्रन्दन में बदलना चाहती तो उनको मुहं पर अपनी ओढ़नी को रख कर वापस अंदर ही धकेल दिया जा रहा था।
     ऐसे माहोल में कोई इन्सान कैसे सामान्य रह कर खाना खा सकता था। लेकिन रणबीर ने फिर भी जी कड़ा कर के रोटी का एक कौर तोड़ा, सहसा उसे लगा कि उसके हाथों से खून बह रहा है । रोटी का कोर उसके हाथों से गिर गया।
   हाँ ...! वह तो खूनी है।  अपनी ही बेटी का।  ऐसे खून भरे हाथों से खाना कैसे खा सकता था रणवीर सिंह ?
    तभी एक छोटा सा हाथ उसके सामने आया और रोटी का कोर उसके मुहं में डाल दिया। यह नन्ही सायरा ही थी। बचपन में जब उसको बापू पर लाड़  आता तो वह अपने हाथों से ऐसे ही खाना खिलाया करती थी। रणवीर सिंह पर जैसे जूनून सा छा गया। वह नन्हे हाथों से खाना खाता  रहा और उसके हाथों से खून रिसता रहा। आंसुओं को रोकते -रोकते आँखों में खून उतर आया था  ...!
     " वाह बापू ....! भोजन कर रहा है , अभी पेट नहीं भरा क्या ...?" राजबीर ने थाली उठा ली उसके आगे से और चेहरे पर लानत -धिक्कार ला कर बोल पड़ा।
    रणबीर उसे धकेलते हुए से अपने कमरे की तरफ गया। सावित्री की हालत बुरी थी। गश खा रही थी बार -बार । रणबीर को देख जोर-जोर से दहाड़ें मार रो पड़ी। भाग कर उसके कुर्ते को पकड कर जोर से झंझोड़ने लगी। एक बार तो उसका मन भी हुआ की वह सावित्री को गले लगा कर जोर से रो पड़े।
      लेकिन वह क्यूँ रोये ! उसने तो कलंक ही मिटाया है खानदान का।
    सावित्री को धकेल कर वह घर की छत पर चला गया। वहां पड़ी चारपाई पर  बेजान सा  गिर गया। आँखें मूंद कर कुछ देर लेटा रहा।आँखे खोली तो सामने खुला आसमान था। काली अमावस सी रात थी। कुछ मन के अँधेरे ने रात का अँधेरा और गहरा दिया था। तारे टिमटिमा रहे थे या जाने रणवीर सिंह को देख सहम रहे थे।
      अचानक उसे लगा नन्ही सी सायरा उसके पास आकर उसकी गोद में बैठ गयी हो।जब वह छोटी थी तो ऐसे ही उसकी गोद में  बैठ कर आसमान में तारे देखा करती थी।रणबीर को याद आ रहा था कि कैसे एक रात को बाप -बेटी ऐसे ही तारे देख रहे थे। सायरा बोल पड़ी, " बापू  ...! ये तारे कितने सारे है, मुझे गिन के बताओ ना ...," और दोनों बाप - बेटी तारे गिनने में व्यस्त हो गए। अचानक रणवीर ने रुक कर कहा, " अरे बिटिया, मुझे तो दो ही तारे नज़र आते हैं, तेरी दोनों आँखों में बस ...!"कह कर अपने गले लगा लिया था।
    जब उसकी माँ का देहांत हुआ था तब भी उसने सायरा को यह कह कर बहलाया था कि उसकी दादी उससे दूर नहीं गयी है बल्कि आसमान में तारा  बन गयी है। सायरा भोले पन  से पूछ बैठी, " बापू  , एक दिन मैं भी ऐसे ही तारा बन जाउंगी क्या ? फिर आप भी मुझे देखा करोगे  यहाँ से ...!"
   सुन कर रणबीर काँप उठा था। उसके मुहं पर हाथ रख दिया था और बोला , " ना बिटिया ना , ऐसे नहीं बोलते ...!" आँखे भर कर सीने से लगा लिया था।
  और आज सच में ही वह आसमान को ताक रहा था कि कहीं  शायद सायरा दिख जाये किसी तारे के रूप में।दिल में एक हूक सी, कलेजा फटने को हो रहा था। अब वह केवल पिता बन कर सोच रहा था। एक हारा  हुआ पिता, जिसने  अपने कलेजे के टुकड़े को अपने ही हाथों गला दबा कर मार डाला था वहीं चिता  बना कर अंतिम संस्कार भी कर दिया। आँखे भरती  ही जा रही थी अब रणबीर की।
     तभी छत पर बने कमरे में रोशनी नज़र आयी। यह कमरा सायरा का था। उठ कर कमरे के पास गया तो उसे लगा जैसे सायरा अन्दर ही है। दरवाज़ा धकेला तो आसानी से खुल गया। लेकिन रोशनी कहाँ थी वहां ...! एक सूना सा अँधेरा भरा सन्नाटा ही फैला था। हाथ बढ़ा कर लाईट जला दी रणबीर ने।
           सजा संवरा कमरा लेकिन उदास हो जैसे ..., जैसे उसे उम्मीद हो सायरा के आ जाने की !
रणबीर की नजर सामने की अलमारी पर पड़ी तो उसे खोल ली। अलमारी में सायरा की गुड़ियाँ रखी हुयी थी। उसे गुडिया खेलने का बहुत शौक था। जब भी बाज़ार जाना होता तो एक न एक खिलौना तो होता ही था साथ में गुडिया भी जरुर होती थी। रणबीर सिंह गुड़ियाँ देखता -देखता जैसे रो ही पड़ा जब उसकी नज़र अपने हाथों पर पड़ी। हूक सी उठी , तड़प  उठा , उसने अपनी ही गुडिया का गला दबा दिया। जोर से रुलाई फूटने वाली ही थी कि सामने गुड्डा रखा नज़र आया।
    'ओह यह गुड्डा ! यह गुड्डा कितनी जिद करके लाई थी सायरा।'
  उसे याद आया,  एक बार वह सायरा को शहर ले कर गया था तो बहुत सारे खिलौने दिलवाए थे जिस पर हाथ रख दिया वही खिलौना उस का हो गया। दोनों हाथों में खिलौनों के थैले अभी जीप में रखे ही थे कि सायरा ठुनक गई ! छोटा सा -प्यारा सा मुहं और नाक सिकोड़ कर बोली, " बापू , आपने मुझे गुड्डा तो दिलाया ही नहीं ...! "
रणबीर ने हंस कर उसे गोद में उठा कर कहा , " बिटिया , अगली बार जब हम आयेंगे तो ले दूंगा , अब तो देर हो गयी , रात होने को है। "
  " नहीं बापू , मुझे तो अभी ही लेना है नहीं तो मैं घर ही नहीं जाउंगी ...!" सायरा ने रुठते हुए कहा।
इतनी प्यारी बेटी और रणबीर के कलेजे का टुकड़ा, उसकी बात को वह कैसे नहीं मानता  ...! आखिरकार कई दुकानों पर ढूंढते - ढूंढते सायरा का मन पसंद गुड्डा मिल ही गया था। घर आकर दादी और माँ की डांट पड़ी तो थी लेकिन गुड्डे मिलने की खुशी ज्यादा थी।  डांट एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी गई।
   आज वही गुड्डा हाथ में लिए सोच रहा था रणबीर , कि बेटी के इस बेजान गुड्डे लेने की जिद तो पूरी की लेकिन एक जीते -जागते गुड्डे की मांग पर उसने बेटी की जान ही ले ली ! सायरा ने अपना मन पसंद गुड्डा ही तो माँगा था जो उसे खुश रखता। और उसने क्या किया बेटी की ही जान ले ली ...!
    "हाय ...! मेरी बच्ची, यह  क्या किया मैंने ?" हाथ में गुड्डा ले कर भरे हृदय और  सजल आँखों से सोच रहा था वह। सामने की दीवार पर सायरा की तस्वीरें थी छोटी सी गुड़िया  से ले कर कॉलेज जाने तक की। हर तस्वीर में हंसती हुई सायरा बहुत प्यारी दिख रही थी। मेज़ पर भी एक तस्वीर थी।  रणबीर ने उसे उठा लिया। तस्वीर जैसे चीख पड़ी हो।  सायरा जीवन की भीख मांगती जैसे चीख रही थी, वैसे ही चीख रही थी तस्वीर।
  रणबीर ने तस्वीर को सीने से लगा लिया और जोर से रो पड़ा , " ना मेरी बच्ची ना रो ना , मैं तेरा बापू नहीं हूँ अरे पापी हूँ , कसाई हूँ मैं ...!"
  रोते -रोते कमरे के बाहर आ गया गुड्डे और सायरा की तस्वीर को सीने से लगा रखा था। छत पर ही एक कोने में सिकुड़ कर बैठ गया और रोता रहा ना जाने कितनी देर तक।  कितनी ही देर बाद उसने गर्दन उठाई और आसमान की तरफ ताकने लगा जैसे सायरा को खोज रहा हो। सामने भोर का तारा  जगमगा रहा था। रणबीर को लगा कि उसमें सायरा है। तारे को देख वह फिर रोने लगा।
    अचानक भोर के तारे के पास एक तारा और जगमगाने लगा। कुछ देर में ही सवेरा हो गया। सवेरा होने के साथ -साथ गाँव दीनासर में एक चर्चा सरे आम थी। एक तो भोर के तारे के पास एक तारे के दिखने का और दूसरी चौधरी रणबीर सिंह की मौत की।


 उपासना सियाग
नई सूरज नगरी
गली नम्बर 7
नौवां चौक
अबोहर ( पंजाब ) 152116

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