मंगनी का अखबार
बुजुर्ग मकान मालिक के अखबार मांगने की आदत से परेशान हर्षिता अपने पति से बहस कर रही थी, " हमें यहाँ आए हुए लगभग एक साल होने को आया है , और तभी से मलिक साहब हम से अखबार माँग कर ले जाते हैं और वापस देने का नाम नहीं...! "
" तो क्या हुआ..! शाम को ही तो ले जाते हैं.. हमारे लिए तब तक बेकार ही होते हैं न.., "
" अपने रुपयों से ली चीज कोई बेकार कैसे हो सकती है, अरे भई, हमारा अखबार है कुछ भी करें,अलमारी में बिछाना हो या कुछ भी करें और फिर ऐसा भी नहीं है कि उनके अखबार आता नहीं..!
" कोई बात नहीं हर्षिता, वो बुजुर्ग हैं, उनके बच्चे भी बाहर रहते हैं ... अखबार उनके समय काटने का साधन भी तो है! "
वर्तालाप चल ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई. देखा तो मलिक साहब खड़े थे. वे मुस्कुरा रहे थे. उनके हाथों में अखबार की जिल्द लगी दो किताबें सी थी.
उन्होंने आगे बढ़कर किताबें मेज पर रख दी. और बोले, " ये हर्षिता बिटिया और छोटी मुनिया के लिए मेरी तरफ से उपहार है.. "
मुनिया के सर पर हाथ फिरा कर मुस्कुराते हुए चले गए. पति- पत्नी सकपकाए से खड़े रहे कि कहीं उनकी बातें मलिक साहब ने सुन तो नहीं ली!
मेज पर रखी किताबें उठाई तो दोनों में अखबार से काटी गई कतरने चिपकाई हुईं थी... मुनिया की किताब में छोटे- छोटे कार्टून, सुविचार और कहानियों की कतरने थी तो हर्षिता की किताब में पाक कला, कोई व्रत, उत्सव और महिला उपयोगी लेख की कतरने चिपकाई हुईं थी.
उपासना सियाग
(अबोहर)
नई सूरज नगरी
गली न.7
9 वां चौक
अबोहर ( पंजाब)
पिन 152116
8264901089
Upasnasiag@gmail.com
वाह , कितनी सार्थक सोच , हम लोग बिना जाने ही कुछ भी अनुमान लगा लेते हैं .बढ़िया पोस्ट .
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-03-2021) को "किरचें मन की" (चर्चा अंक- 3998) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुंदर कहानी
जवाब देंहटाएंवाह! सुन्दर लघु-कथा।
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