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बुधवार, 12 दिसंबर 2012

ममता की मिठास ......

       माँ की जगह कोई भी नहीं ले सकता। हर औरत को  महसूस होता है कि वह अपनी माँ से बेहतर माँ नहीं  सकती। मुझे भी ऐसा लगता है,  जैसा मेरी माँ मुझे प्यार करती है वैसा और उतना प्यार  मैं अपने बच्चों को नहीं करती। एक घटना जिसका मैं वर्णन कर रही हूँ , वह मेरे कथन को प्रमाणित करती है।

     बात जुलाई की है इसी साल की जब  मेरा छोटा बेटा हॉस्टल चला गया। मैं बहुत उदास थी। लेकिन मुझे उससे मिलने का जल्दी ही संयोग मिल गया। मेरी बड़ी दीदी का छोटा बेटा  भी उसी स्कूल-होस्टल में है।वैसे दोनों भाई साथ ही जाते हैं पर इस बार किसी कारण -वश वह बाद में गया। दीदी के साथ मैंने भी जाना  तय किया।
           जिस दिन जाना था उस दिन मेरा शुक्रवार का व्रत था।इस व्रत में खास बात यह थी कि  इसमें बाहर यानि किसी के घर का कुछ भी यहाँ तक पानी भी नहीं पीना होता। सोचा व्रत करूँ या नहीं क्यूँकि यह शुक्रवार दूसरा ही था व्रत करने वाला। मन में आया अभी एक व्रत ही हुआ है तो दूसरा किसलिए छोड़ना। व्रत, वह भी प्रद्युमन के लिए था। वह बहुत शरारती है , मुझे उसके लिए भगवान् को बहुत मनाना  पड़ता है , शायद थोड़ी शरारते कम करके पढने लग जाये। उसके लिए मैंने ब्रेड और बीकानेरी भुजिया( ये दोनों ही चीज़ें मेरी कमजोरी है ) तक का त्याग किया हुआ है पिछले चार वर्षों से।भगवन को बोला हुआ है जिस दिन यह दसवीं पास करेगा उसी दिन इनको हाथ लगाउंगी।

हाँ तो मैं बेटे से मिलने जाने की बात कर रही थी ...!
सुबह आठ बजे निकले घर से। रास्ते में एक जगह दीदी और उसके बेटे ने खाना खाया तो मैंने चाय ही पी वह भी अपने  ही रुपयों से खरीद कर। सफ़र  में मुझे  वैसे भी बहुत घबराहट सी होती है। उस दिन तो खाली पेट था।
हाँ एक बात तो बताई ही नहीं मैंने ...! उन दिनों सावन का महीना था। और मैं सावन के महीने में चीनी का सेवन नहीं करती यानि कि  किसी भी प्रकार का मीठा भोजन। कहा जाता है के सावन के महीने में अगर किसी प्रिय वस्तु का त्याग किया जाए  तो शिव जी प्रसन्न होते है। अब सारा साल शिव जी के कानो में पता नहीं क्या-क्या गीत गाती रहती हूँ तो एक महीने कुछ  शिव जी के लिए छोड़ भी दिया तो क्या हुआ ...!

      एक तो खाली  पेट और उस पर चाय भी फीकी पी जी तो घबराना ही था।लेकिन बेटे के भविष्य का भी तो सवाल था।
 लगभग एक बजे के करीब वहां पहुंचे। बेटे का चेहरा देख कलेजा मुहं को आ गया ," अरे ...! ये स्कूल वाले भी न , बच्चों की जान ही निकाल देते है, हम कैसे खिला पिला कर ,अच्छा सा, सुन्दर सा बना कर यहाँ भेजते हैं और इन्होने तो एक सप्ताह में ही हवा सी  निकाल दी।" फिर पति -देव की बात याद आ गयी , ' या तो बच्चो को खिला-पिला लो या इनको पढ़ा लो'...बात उनकी भी सही है।

     आगे बढ़ कर बेटे को गले लगाया तो जल्दी से पीछे हट गया और बोला बस मम्मा सब देख रहे हैं। लो जी ये भी क्या बात हुयी ...! माना के वह दसवीं में आ गया खुद को बहुत बड़ा समझने लग गया , मुझे तो अभी भी वही छोटा सा मुन्ना ही लगता है।फिर भी ढेर सारा लाड तो उंडेल  ही दिया ...

              कुछ देर मिल कर बातें कर हम दोनों बहनें  वापस चल पड़ी। बिना कुछ खाए मेरा हाल खराब सा हुआ जा रहा था। रास्ते में रुक कर एक जगह नीम्बू -पानी पिया तो लगा कि कुछ जान सी आ रही है।

      रास्ते में मेरा मायका भी है। अब मायका रास्ते  में हो और कोई औरत मायके जाये बिना कैसे रह सकती है तो हमने भी ड्राइवर को मायके की तरफ गाडी मोड़ने को कह दिया।गाडी से उतरते ही माँ की वही प्रतिक्रिया थी जो मेरी , मेरे बेटे को देख कर हुई  थी। बोल पड़ी , "अरे ...! तुझे क्या हुआ ऐसा चेहरा क्यूँ उतरा हुआ है ...!"
मैंने व्रत का बताया तो नाराज़ होने लगी के सफर में कोई भूखा रहता है क्या।
मैंने कहा , " बेटे के भविष्य का मामला है , अब भूख के पीछे भगवान को नाराज़ कैसे कर सकती हूँ।"
माँ ने चाय या दूध का पूछा तो मैंने मना  कर दिया क्यूंकि इस व्रत में बाहर का नहीं खा सकते । माँ यहाँ भी नाराज़ हुयी के बाहर का या किसी और के घर का मत खाओ पर यह ते तेरा अपना ही घर है यहाँ तो कुछ ले लो।पर मैंने मना कर दिया क्यूंकि व्रत की किताब में ऐसा ही लिखा था।

    माँ ने एक सुझाव दिया के मैं दूध पी लूँ और दूध के बदले में उनको एक रुपया दे दूँ। उनके मुताबिक मैं खरीद कर तो कुछ खा पी सकती हूँ। एक गिलास दूध मेरे लिए  ले लाई। एक तो भूखे पेट उस पर इतनी गर्मी बहुत राहत सी महसूस हो रही थी। बंद हुयी आँखे खुलने लगी थी।मैंने पर्स टटोला  तो उसमे दो रूपये का सिक्का था तो मैंने कहा की एक रुपया वापस दीजिये।
माँ हंस पड़ी और बोली  , " मेरे पास भी नहीं एक का सिक्का , वैसे आज तो हमारी कमाई का दिन है इस लिए तुम एक गिलास दूध और पी लो , एक रुपया और कमा लूंगी  मैं ...!" और दूध का गिलास थमा दिया।
सच में बहुत राहत सी महसूस हुई ,  दूध से ज्यादा माँ की बातों  और प्यार से।

              कई देर से हमारा वार्तालाप सुन रहे पापा भी मुझे डांटते हए से ग्लुको - मीटर ले आये( माँ को मधुमेह है तो घर में ही रखते हैं यह )। वे कह रहे थे, " कुछ दिन पहले तुम्हारा शुगर  -लेवल नार्मल से कम था फिर  भी तुम मीठा छोड़ कर बैठी हो ...! लाओ चेक करवाओ ...अगर शुगर - लेवल कम हुआ तो तुम्हें अभी मीठा खाना पड़ेगा। "

       मैंने चुप चाप हाथ आगे कर दिया। मुझे उस पल  ऐसा लग रहा था  वही उनकी छोटी सी बेटी ' टिंकू ' हूँ एक बार तो अपनी उम्र ही भूल सी गयी । बचपन में हम बहनों में जो भी बीमार पड़ती थी तो पापा सरहाने ही बैठे रहते थे। तब लगता था के बार -बार बीमार पड़ें और पापा की स्पेशल बेटी बन जाएँ। आज भी जब बीमार पड़ती हूँ तो पापा की बहुत याद आती है।बेटी होने का बस यही दुःख है मुझे के अपने माँ -पापा से दूर रहना पड़ता है।

    हां तो ...!पापा ने शुगर चेक किया तो बिलकुल ठीक था अपने स्तर के मुताबिक ...! मैं हंस पड़ी , " देखो पापा ...! माँ के हाथों में ही मिठास है ...:)

और यही सच है के माता - पिता के प्यार के आगे सब कुछ गौण है। यह बात हम जब तक खुद माता - पिता ना बन जाएँ नहीं समझ सकते।

9 टिप्‍पणियां:

  1. इतना प्यार - दुलार माँ के आँचल के सिवा और कहाँ मिलेगा, सही है अपनी माँ से बेहतर कहाँ हो सकते हैं हम...

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  2. koi shabd nahi hai...meri aankh bhar aayi hai...meri shadi ko abhi 1.5 saal hua hai....apni maa ko bahut miss karti hoon..
    vo unka aage peecha ghomna,ab bhi apne hath sa khana khilana.
    meri ek aadat hai vo jab bhi khana khati hai toh unka hath sa ek bite zarror khati thi...

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  3. सुखद रचना....... पढ़कर माँ की याद आगाई मेरी माँ रोज ही फोन से मेरा हालचाल लेती रहती है

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  4. Upasna ....... Maa to maa hoti hain . speech less post mujhe apni maa ki thali se ek kor khana bahut bhata hain :)

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  5. बहुत सुंदर ढंग से अपने विचारों को लिख दिया ,ऐसे लगा जैसे आँखों के आगे चलचित्र हो ,माँ के आगे पूरी दुनिया गौण हो जाती है ,चाहे वो टिंकू की माँ हो या प्रदुमन की ,माँ बस माँ है और वो अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकती है

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  6. उपासना जी ..बहुत सुन्दर वर्णन ..माँ की ममता का ......मेरी तो माला ही अनवरत चलती रहती है ......कोई कुछ कहे ..कोई परवाह नहीं ....
    जय जय श्री राम ..

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  7. हर माँ के मन में यही भावनाएं होती हैं पर बच्चे जैसे जैसे बड़े होते हैं वो अपनी दुनिया में बस जाते हैं ॥

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