परमेश्वरी विवाह के एक दिन पहले की रात को अपने बाबा के पिछवाड़े के आँगन में लगे हरसिंगार के पेड़ के नीचे खड़ी थी। मानों उसकी खुशबू एक साथ ही अपने अन्दर समाहित कर लेना चाहती थी। रह -रह कर मन भारी हुआ जा रहा था। बाबुल का आंगन, माँ का आंचल और सखियों के साथ के साथ ही इस हरसिंगार के पेड़ की सखा -भाव, छाँवमय खुशबू भी तो छूट जाएगी। कदम ही नहीं उठ रहे थे लेकिन जाना तो था ! एक हसरत भरी नज़र डाल चल पड़ी। जिस पेड़ को उसने अपने हाथों से लगाया था। जिसे अपने सखा जैसा समझ कर बतियाती थी।
आज परमेश्वरी भी किसी दूसरे आंगन में अपनी जड़ें ढूंढने-पसारने चल पड़ी थी। विदाई की करुण बेला में जब उसकी दादी ने उसे एक छोटे से गमले में हरसिंगार का पौधा पकड़ाया तो उसे लगा जैसे कोई तो उसके मायके से उसके साथ है।
परमेश्वरी बहुत सुन्दर तो नहीं पर उसके सांवले रंग पर उसके तीखे नैन-नक्श खूब जँचते थे और जब हंसती तो लगता था जैसे हरसिंगार के फूल ही झर रहे हों ,ऐसा उसकी दादी कहती थी ...!
दुल्हन बनी हुई वह बहुत सुन्दर लग रही थी। ग्रामीण परिवेश और पुराने ज़माने में जैसा सिंगार होता था कुछ वैसा ही था। गहनों की तो कोई कमी ही नहीं। तिस पर बड़े जमींदार की बेटी और अब बड़े जमींदार की पत्नी थी पर यहाँ उसका नंबर तीसरा था। दो पत्नियों का देहावसान हो चुका था।
उस ज़माने में ऐसा ही होता था बेटी को, बहुत धन होगा तो राज़ करेगी ,विवाह कर देते थे। उस पर ससुराल वालों के पास कई गाँवो की जमींदारी भी हो तो क्या बात थी। बेटियों की मर्ज़ी पर कौन विचार करता था। परमेश्वरी बहुत आत्मविश्वासी और गलत का विरोध करने वाली लड़की होने के बावजूद बाबा का विरोध नहीं कर पायी और हांक दी गयी।
उस ज़माने में ऐसा ही होता था बेटी को, बहुत धन होगा तो राज़ करेगी ,विवाह कर देते थे। उस पर ससुराल वालों के पास कई गाँवो की जमींदारी भी हो तो क्या बात थी। बेटियों की मर्ज़ी पर कौन विचार करता था। परमेश्वरी बहुत आत्मविश्वासी और गलत का विरोध करने वाली लड़की होने के बावजूद बाबा का विरोध नहीं कर पायी और हांक दी गयी।
पति ने पहली रात ही परमेश्वरी को समझा दिया था कि उसकी माँ ने इस जमींदारी को बहुत तकलीफों के साथ बचाया है। उनके पिता बहुत छोटी उम्र में गुजर चुके थे। माँ ने उसे बहुत मुश्किल से पाला है तो उनके लिए माँ की बात ही सर्वोपरि रहेगी।
पति और उसकी उम्र का फासला भी पंद्रह साल का था। उनकी पहली दोनों पत्नियाँ सास के जुल्म ना सहते हुए दुनिया छोड़ चुकी थी।
सोलह वर्षीय परमेश्वरी बहुत संस्कार शील थी और सभी गुणों से युक्त होते हुए गज़ब की आत्म-विश्वासी भी थी। उसने सुना कि उसकी सास ने अपनी दोनों बहुओं को घोटने से मार डाला था।
उसकी सास अपने हाथ में मसाला पीसने वाला मोटा लकड़ी का घोटना रखती थी जब भी उसके मन मुताबिक काम नहीं हुआ वो दूर से उसे चला कर फेंकती अब इस बात से उसे मतलब नहीं था कि वो किस जगह जा कर लगता है चाहे सर ही क्यूँ ना फूट जाए ...! पहले वाली दोनों अपने घावों के ताप सहन ना कर पायी और मर गयी थी। लेकिन परमेश्वरी ने तो कुछ तय कर लिया था मन ही मन।
उसकी सास अपने हाथ में मसाला पीसने वाला मोटा लकड़ी का घोटना रखती थी जब भी उसके मन मुताबिक काम नहीं हुआ वो दूर से उसे चला कर फेंकती अब इस बात से उसे मतलब नहीं था कि वो किस जगह जा कर लगता है चाहे सर ही क्यूँ ना फूट जाए ...! पहले वाली दोनों अपने घावों के ताप सहन ना कर पायी और मर गयी थी। लेकिन परमेश्वरी ने तो कुछ तय कर लिया था मन ही मन।
नए घर में सभी को उस घर के अनुसार ढलना ही होता है तो परमेश्वरी भी कोशिश कर ही रही थी कि एक दिन गलती हो गयी कुछ। सास की आदत थी घोटना फेंकने की। आदतवश उस पर भी चला डाला। चौकन्नी परमेश्वरी ने अपना बचाव कर कर लिया और घोटना ले कर सीधे सास के पास पहुँच कर बोली "देखो माँ !अगली बार घोटना फेंकने से पहले आप सोच लेना ...! क्यूँ कि मेरे पीड़ा होगी और मैं सहन नहीं कर पाऊँगी। फिर मैं भी से आपके उपर वापिस चला कर मारूंगी तो ये मेरे संस्कारों के खिलाफ तो होगा लेकिन मैं ऐसा ही करुँगी...! लाओ ये घोटना मुझे दो इसका काम मसाला पीसना ही है किसी को मारना नहीं !" उसने वो घोटना ले कर रसोई घर में रख दिया। सास कुछ भी नहीं कह पायी।
अगले दिन ही उसने अपने हरसिंगार के पौधे को गमले से निकाल कर आँगन में लगा दिया । अपने आँगन में परमेश्वरी के साथ ही हरसिंगार ने भी आँगन में जड़े पकड ली। वह भी उसके बच्चों के साथ ही बढता रहा। महकता और घर-आँगन महकाता रहा। बाद उसकी छाँव तले उसके नाती -पोते भी खेले।
अच्छी लगती हैं ऐसी कहानियां जिनमे स्त्रियाँ विरोध करने का साहस रखती हैं और घर भी सम्हाले रहती हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया उपासना जी.
अनु
बहुत सुंदर ......आप की कलम में जादू है ...उपासना सखी ...
जवाब देंहटाएंप्रेरक कहानी
जवाब देंहटाएंBahut sunder Bahu ne Confidence ke saath galat ka virodh kiya hai
जवाब देंहटाएं:) achi hai
जवाब देंहटाएंbahut badiya badlaav jaruri hai ..
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंउसने बिलकुल समझदारी वाली काम किया.
जवाब देंहटाएंपरमेश्वरी तो मेरी प्यारी है... गलत करने से ज्यादा गलत सहने वाला व्यक्ति अपराधी होता है... क्योंकि वह गलत व्यक्ति के कामों को मौन रहकर बढ़ावा देता है... शाबाश परमेश्वरी...
जवाब देंहटाएंआप पहली बार आपके ब्लाग पर आया बहुत अच्छा लगा । आपके ब्लाग को युनिक तकनीकी ब्लाग पर ट्रेग किया गया है
जवाब देंहटाएंयुनिक तकनीकी ब्लॉग
बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,सुंदर कहानी,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
बहुत रोचक और प्रेरक कहानी...
जवाब देंहटाएं