ऐसे तो बहुत सारी घटनाएँ घटती ही रहती है जो हमें प्रेरित करती है पर एक घटना जिसने मेरी सोच ही बदल दी.
मेरे विचार में अगर किसी के पास पैसा है तो उसे किसी जरूरत मंद की सहायता जरुर करो ....देखा जाये तो ये विचार गलत भी नहीं पर "किसी की इतनी सहायता भी ना करो के वो आप के ऊपर ही निर्भर हो जाये और वो मेहनत ही ना करे"....ये विचार मेरे पति के हैं .
अक्सर इस बात पर हम दोनों में बहस हो जाया करती थी और मेरा तर्क था कि "क्या हुआ अगर किसी कि मदद कर दी जाये इतने रुपयों के तो हमारे बच्चे चोकलेट ही खा जाते हैं" और उनका अकाट्य तर्क था "क्यूँ कि मैं मेरे बच्चों के लिए दिन -रात मेहनत करता हूँ तो वो इन सभी सुविधाओं के हकदार है."
तो घटना कुछ इस प्रकार है ...मैं जिस जिम में जाती हूँ वहां की सहायिका बेहद मजबूर और विवाह के मात्र छह महीने बाद ही पति-ससुराल वालों द्वारा त्याग दी गयी जबकि वो गर्भवती थी .बच्चा एक महीने का ही था तो उसे काम पर आना पड़ा .घर में दो बहने और एक छोटा भाई भी थे .माँ घरों में काम करती और पिता रिक्शा चालक था .जब तक उसका बेटा छोटा था तब तक तो ठीक रहा पर तीन साल का हुआ तो घर में देखने वाला भी ना था सभी काम करते थे बाकी छोटे भाई -बहन थे ....तो एक दिन वो अपने बेटे को जिम ले आयी वहां पर एक तो बच्चे के चोट लगने का डर और उसके काम में व्यवधान .तो वो मजबूर हो कर रो पड़ी .इस पर मेरी सहेली रेनू ने हम सभी को कहा कि हम सब मिल कर इसके बेटे के लिए एक क्रेच का प्रबंध कर देते है ,हमारा तो सिर्फ सौ रूपये ही लगेंगे और इसकी सहायता हो जाएगी .सभी महिलाओं ने ऐसा ही किया और उसका बेटा क्रेच जाने लगा ..इसके बाद मैं नियम से रूपये देने लगी एक दिन वो बोली के और तो कोई नहीं देता अब आपसे रूपये किसलिए लेना फिर भी मैंने जबरदस्ती पकड़ा दिए .बाद में मौका मिलने पर मैंने रेनू से पूछा के क्या वो अभी भी वो उसे रूपये दे रही है या नहीं ...
उसके जवाब ने मुझे लाजवाब कर दिया और मैं सोचने पर मजबूर हो गयी .उसने कहा " देखो उपासना ,एक तो उसका अब वेतन भी बढ़ गया , उसको गौर से देखो वो कैसे हाथ पर हाथ धर कर टी वी देख रही है अगर उसमे कमाने का जज्बा हो तो वो जिम की सफाई का काम भी कर सकती है पर उसे मालूम है उसे रूपये अपने आप ही मिलने है तो मेहनत की जरूरत ही क्या है उसे तो हम निकम्मा बनाते जा रहे हैं".........!
रेनू की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर किया और विचार भी बदलने को भी ....!
मेरे विचार में अगर किसी के पास पैसा है तो उसे किसी जरूरत मंद की सहायता जरुर करो ....देखा जाये तो ये विचार गलत भी नहीं पर "किसी की इतनी सहायता भी ना करो के वो आप के ऊपर ही निर्भर हो जाये और वो मेहनत ही ना करे"....ये विचार मेरे पति के हैं .
अक्सर इस बात पर हम दोनों में बहस हो जाया करती थी और मेरा तर्क था कि "क्या हुआ अगर किसी कि मदद कर दी जाये इतने रुपयों के तो हमारे बच्चे चोकलेट ही खा जाते हैं" और उनका अकाट्य तर्क था "क्यूँ कि मैं मेरे बच्चों के लिए दिन -रात मेहनत करता हूँ तो वो इन सभी सुविधाओं के हकदार है."
तो घटना कुछ इस प्रकार है ...मैं जिस जिम में जाती हूँ वहां की सहायिका बेहद मजबूर और विवाह के मात्र छह महीने बाद ही पति-ससुराल वालों द्वारा त्याग दी गयी जबकि वो गर्भवती थी .बच्चा एक महीने का ही था तो उसे काम पर आना पड़ा .घर में दो बहने और एक छोटा भाई भी थे .माँ घरों में काम करती और पिता रिक्शा चालक था .जब तक उसका बेटा छोटा था तब तक तो ठीक रहा पर तीन साल का हुआ तो घर में देखने वाला भी ना था सभी काम करते थे बाकी छोटे भाई -बहन थे ....तो एक दिन वो अपने बेटे को जिम ले आयी वहां पर एक तो बच्चे के चोट लगने का डर और उसके काम में व्यवधान .तो वो मजबूर हो कर रो पड़ी .इस पर मेरी सहेली रेनू ने हम सभी को कहा कि हम सब मिल कर इसके बेटे के लिए एक क्रेच का प्रबंध कर देते है ,हमारा तो सिर्फ सौ रूपये ही लगेंगे और इसकी सहायता हो जाएगी .सभी महिलाओं ने ऐसा ही किया और उसका बेटा क्रेच जाने लगा ..इसके बाद मैं नियम से रूपये देने लगी एक दिन वो बोली के और तो कोई नहीं देता अब आपसे रूपये किसलिए लेना फिर भी मैंने जबरदस्ती पकड़ा दिए .बाद में मौका मिलने पर मैंने रेनू से पूछा के क्या वो अभी भी वो उसे रूपये दे रही है या नहीं ...
उसके जवाब ने मुझे लाजवाब कर दिया और मैं सोचने पर मजबूर हो गयी .उसने कहा " देखो उपासना ,एक तो उसका अब वेतन भी बढ़ गया , उसको गौर से देखो वो कैसे हाथ पर हाथ धर कर टी वी देख रही है अगर उसमे कमाने का जज्बा हो तो वो जिम की सफाई का काम भी कर सकती है पर उसे मालूम है उसे रूपये अपने आप ही मिलने है तो मेहनत की जरूरत ही क्या है उसे तो हम निकम्मा बनाते जा रहे हैं".........!
रेनू की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर किया और विचार भी बदलने को भी ....!
बहुत सही कहा हैं तुम्हारी सहेली ने ...मदद उसकी भली जो इसका हक़दार हो
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंSahi kaha he HELP TO NEEDY.
जवाब देंहटाएंBahut sahi kaha jise jarurat ho uski help jarur kare...
जवाब देंहटाएंSahi he Upasnaji,bina jarurat ke nahi dena chhiye.
जवाब देंहटाएंसही काहा आप की सहेली ने सखी लेकिन हम क्या करे ये लोग इस तरह खुद को बताते हैं की हम लोगो से रहा है जाता ......
जवाब देंहटाएंसही बात है जब वो इसे अपना हक मानने लगी है और इसका फायदा उठा रही है तो ...मदद ना देना ही सही है
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapki sehli ne sahayta usi ki karni chahiye jo eska sahi hakdaar ho ..
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