चौथा दिन
हम अक्सर बचपन को बहुत याद करते हैं। गर्मियों की छुटियों में ननिहाल आना। पूरे डेढ़ महीने की धमा - चौकड़ी याद है। गुड्डियां खेलना , बैल -गाड़ी पर खेत जाना और ट्रैक्टर की ट्राली में बैठ कर शहर आना। कितना अच्छा समय था।
ननिहाल ही क्यों , जहाँ हम रहते थे , वहाँ क्या कम मजे थे ! पढ़ने का तो हम चारों बहनों शौक था। गर्मी में जब स्कूल का टाइम सुबह का होता था और दोपहर में छुट्टी होने के बाद घर लौटते तो चूल्हे पर पक रही सब्जी की महक भूख बढ़ा दिया करती थी।
सर्दी में शाम को चाय या बोर्नविटा वाला दूध मिलता था। तब कॉफी नहीं पीने को मिलती थी कि 18 साल से पहले नहीं पीते।
एक दिन स्कूल से लौटे तो माँ एक सब्जी बेचने वाली आंटी से उलझी थी। उनका वार्तालाप यह था।
आंटी ," बेन जी , 26 जनवरी कब है ? "
माँ , "26 तारीख को। "
" नहीं बेन जी , मैं 26 जनवरी का पूछ रही हूँ। "
" हाँ तो ! मैं और क्या बता रही हूँ ? "
" बेन जी ,आप तो 26 तारीख बता रही है और मैं 26 जनवरी पूछ रही हूँ ! "
" क्यों क्या है 26 जनवरी को ? "
" मेरे भाई का ब्याह है ! " आंटी जी खुश हो कर बता रहे थे।
माँ को हंसी आ गई। मुझ से कैलेंडर मंगवाया और उनको दिखा कर पूछने लगे ," बताओ ये कौनसे महीने का नाम लिखा है ?"
" जनवरी !"
" आज क्या तारीख है ?"
" तीन ! "
" मतलब कि तीन जनवरी , ऐसे ही देखो ये 26 तारीख है और जनवरी का महीना है तो 26 जनवरी कि नहीं !"
आंटी जी एक बार चुप हो कर सोचने लगी और फिर खिलखिला कर हंसने लगी , " अरे मैंने तो सोचा था कि जैसे दूसरे त्यौहार होते हैं वैसे ही ये भी होता होगा !"
माँ ने समझाया कि है तो यह एक त्यौहार ही ये निश्चित तारीख को ही आता है।
बहुत सारे साल बीत गए लेकिन 26 जनवरी को एक बात ये वाकया जरूर याद करती हूँ।
यह भी खूब रही
जवाब देंहटाएं