सुमन ने जैसे ही घर में कदम रखा नवविवाहिता भाभी के शब्द कानों में पड़े , " क्यों अमित , हम अकेले भी तो जा सकते हैं। हर समय दीदी को साथ ले जाना अच्छी बात है ? "
" देखो सुमन , दीदी ने हम भाई -बहनों को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया है। कभी माँ -पापा की कमी महसूस नहीं होने दी। मैं उनको घर में अकेला कैसे छोड़ कर जा सकता हूँ ?"
" इसमें अकेले छोड़ कर जाने वाली क्या बात है , चंद घंटे की ही तो बात है , फिल्म देखेंगे , खाना खाएंगे और बस घर आ जायेंगे ! हमारी भी तो कोई प्राइवेसी है , और देखना वह हमेशा की तरह जाने के लिए मना भी कर देगी !"
" जब जानती हो तो पूछ लेने में हर्ज ही क्या है ! " भाई ने चिरौरी की।
" ना भई , कहीं अबकी बार हाँ कर दी तो ? उकताए स्वर में भाभी बोल रही थी।
वार्तालाप सुन कर सुमन का मन न जाने कैसा हो आया। कमरा बंद कर के खिड़की के पास खड़ी बाहर देखने लगी। वह सोच रही थी कि उसे कॉलेज की तरफ से घर मिला है ,उसके लिए एप्लाई कर देगी। तभी उसकी नज़र सड़क पर पड़े पत्थर पर पड़ी ,जिसे सड़क के एक तरफ किया जा रहा था। यह वही पत्थर था जो पिछले दो दिन तक बारिश के पानी से भरी सड़क पर लोगों के आने -जाने का सेतु बना हुआ था।
उपयोगिता ही वस्तु की कीमत तय करती है, इस जगत का यही नियम है. स्वयं की कीमत यदि हम खुद नहीं जानते तो जगत अपनी जरूरत के हिसाब से हमारी कीमत घटाता-बढ़ाता रहेगा।
जवाब देंहटाएंयह तो यही बात हुई कि नदी पार तो नाव को लात
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं हो सकता ऐसे स्वार्थी लोगों का, उन्हें तो वक्त ही समझा सकता है और कोई नहीं
जब अपना मतलब निकल जाता है तो लोग ऐसे ही दरकिनारे कर देते हैं ।
जवाब देंहटाएंअच्छी लघु कथा ।
उपयोगिता समाप्त होने पर किस तरह लोगों को किनारे कर दिया जाता है यह अच्छे से दर्शाती लघु-कथा। सुन्दर।
जवाब देंहटाएं