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सोमवार, 21 मार्च 2016

मुनिया की मिठाई

"क्या हुआ मुनिया, कुछ कहना चाहती हो बिटिया ?"
" पापा मुझे वो खाना है ! "
" क्या खाना है ? "
" वो जोशी अंकल के घर पर कटोरी में रखा है ना , वह मुझे खाना है ? "
"अच्छा क्या है वो चीज़ ? "
"पता नहीं क्या है, गुलाबी रंग की है ! "
" अच्छा ! गुलाबी रंग की है ?"
" कोई नाम तो होगा ? "
" नहीं पता ! पहले कभी नहीं खाई ! "
" ऐसी क्या हो सकती है जो तुमने अभी तक नहीं खाई ! कोई मिठाई है या फल ? "
" पता नहीं ! "
अब मुनिया तो मचल गई !
  सारी मिठाइयों और फलों के नाम लिए गए। लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला ! माँ ने कहा कि जोशी जी के घर देख आया जाये कि आखिर खाने की ऐसी क्या चीज़ है , जिसे अभी तक उनकी दुलारी बिटिया को खिलाया नहीं गया।
पापा जी भी बेटी की ऊँगली थाम कर चले।
लेकिन यह क्या !
  जिस गति से गए थे उस से दूनी गति में घर लौट आये। चेहरा तमतमाया हुआ था। मुनिया को गोद से धम से दीवान पर बैठा दिया।
" क्या हुआ ? "
" उफ़ ! ये तुम्हारी लाड़ली बेटी भी ना ! कटोरी में जोशी जी के पिता जी के नकली दांत भिगोये हुए थे ! "